Farida

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संवेदना

संवेदना 

 
 
ज्यों ही बस बाएं-दाएं डिगती, वह अपने गोद के बच्चे के साथ उसी तरफ झुककर लगभग गिरने को होती। अभी गांव के स्टैंड से वह बस में चढ़ी थी। उसकी याचक दृष्टि सीट पर बैठे हर यात्री से थोड़ी जगह मांग रही थी। बस का डंडा पकड़े वह कभी सीधे खड़े रहने का प्रयत्न करती, कभी बीमार व कमज़ोर बच्चे का रोना सुनकर उसे कंधे से चिपकाए रखने की कोशिश करती।



बस अगले स्टैंड पर रुकी। कुछ यात्री और चढ़े। ‘ओ हो, आइए शर्मा जी, यहां आ जाइए। मैंने आपके लिए जगह रख छोड़ी है।’ गुप्ता बाबू ने खिसकते हुए कहा। शर्माजी बैठ गए। बस फिर चल पड़ी। अगले स्टैंड पर बस रुकी। शर्माजी व गुप्ता बाबू नीचे उतरे। वह दोनों सामाजिक सुधार सेवा समिति के कार्यालय की ओर बढ़ चले।



वह महिला भी उतरी तथा उस कार्यालय की बगल में बने अस्पताल की तरफ चल पड़ी। गोद का बच्च अब भी कमज़ोर मिमियाहट के साथ मां के कंधे को मज़बूती से पकड़े रखने का प्रयत्न कर रहा था।

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