धोखा
धोखा
रात भर इंतज़ार के बाद संगीता की आँख लगी ही थी कि आते ही दिनेश ने चौंका दिया," मुझे तलाक़ चाहिए!"
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"सुना नहीं तुमने, मैंने क्या कहा?"
" हाँ, सुन लिया। पेपर तैयार है। दे रही हूँ।"
"क्या? क्या मतलब?"
" अरे, तुमको तलाक़ चाहिये न तो पेपर तैयार करके रखा हुआ है। दे रही हूँ।"
"मतलब कि तुमको दीप्ति के बारे में सब कुछ पता लग गया।"
" उसके बारे में तो बहुत पहले से पता था।"
"अच्छा,जब पता लग ही गया है तो ठीक है।"
"ये लो पेपर। मैंने दस्तखत कर दिये हैं।"
"बहुत बढ़िया। तो घर कब खाली कर रही हो?"
"कौन सा घर?"
"यह घर। मेरा घर और कौन सा घर, जिसमें तुम अभी रह रही हो।"
"तुम्हारा घर!यह घर अब मेरे नाम पर है। इसका भी पेपर दे दूँ क्या?"
"क्या बकती हो तुम?"
"आवाज़ नीचे! और हाँ, दुकान पर आने की कोई जरूरत नहीं है। वह भी तुमने मेरे नाम कर दिया है।"
"क्या? धोखा, इतना बड़ा धोखा!"
" हा हा हा हा!धोखा!हाँ, धोखा। तुमने जो किया, वह क्या था?"
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