Farida

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पुल

पुल 

 
 आज तीसरा दिन था जब पत्नी से आखिरी बार बात हुई थी। सिद्धांत की शादी के छह साल हो गए थे किन्तु पहली बार ऐसा हुआ था। दिन में १०-१२ कॉल, बीसियों मैसेज और एक दो वीडियो कॉल आम था। बोलते समय नियंत्रण रखना कितना जरूरी होता है, इसका एहसास शिद्दत से हो रहा था। कोई बड़ी बात थी भी तो नहीं। पर बहस विवाद में बदल गयी और कटु शब्द को वह रोक नहीं पाया। बात करने की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी पर अहं अभी भी हार मानने को तैयार न था। पत्नी बिटिया के माध्यम से बात कर अपना कर्त्तव्य निर्वाह पूरा कर रही थी।

आज बिटिया के सवाल का जबाब देना बहुत मुश्किल लग रहा था।

"पापा, पापा! आप मम्मा से बात क्यों नहीं करते हैं?"

.....

" आप नहीं बताइयेगा तो हम भी आपसे बात नहीं करेंगे।" बिटिया की आवाज़ में नमी साफ दिख रही थी।

"नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं है।"

.....

"बेटा, क्या हुआ? हेलो, हेलो...."

.....

" हेलो, हेलो!"

"फोन मुझे दे दिया है। शाम से ही रो रही है। पूछ रही है कि तुम पापा से बात क्यों नहीं करती हो?"

पत्नी की आवाज़ सुन जो खुशी हुई उसे छुपाना आसान न था," सही ही तो पूछ रही थी। गलती मेरी हो या तुम्हारी, दर्द तो ज्यादा उसी को हो रहा था। परिवार से दूर रहने पर गुस्सा ज्यादा ही आता है। गलती मेरी थी। माफ कर दो मुझे।आइंदा मैं बोलने समय ध्यान रखूँगा।"

"नहीं, गलती मेरी थी। मैं अगर ज्यादा न बात बढ़ाती तो यह सब न होता। आज अगर बिटिया न होती तो हम दोनों नदी के दो किनारे ही रह जाते न!"

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