Hem singh

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स्वाभिमान

1947 का वह कत्लओ गारत  वाला दौर उस दौर में इंसानियत इंसान से शर्मसार हो चुकी थी इंसान ही इंसान के खून का प्यासा था यह कुदरत की इनायत थी या सियासत के खुदाओं की अता जो भी था मासूम इंसान पर मर रहे थे लाहौर के गांव में सिख समुदाय का छोटा सा परिवार था उस परिवार का छोटा बच्चा महज 10  साल का रहा होगा उसका नाम था फौजा सिंह वह किसी तरह अपनी जान बचाकर अपने परिवार समेत पाकिस्तान छोड़कर भारत के पंजाब प्रदेश में आ गए .लुधियाना जिले के एक छोटे से गांव में उन्हें आश्रय  मिला .कुछ समय बाद उस परिवार को एक छोटा सा कच्चा मकान 5 एकड़ खेती लायक जमीन मिली पर सिंचाई की व्यवस्था ना होने के कारण जमीन बंजर हो चली थी फौजा सिंह के पिता जी ने कठिन परिश्रम करके गुजारे लायक अनाज पैदा करना शुरू कर दिया .फौजा सिंह को स्थानीय स्कूल में दाखिला मिल गया वह सिर्फ आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई कर सका .जो भी छोटा मोटा काम मिलता वह करने लगा इसी तरह समय चक्कर आगे बढ़ता रहा फौजा सिंह अब 19 साल का जवान हो गया था खेती के काम में उसे तरक्की नहीं लग रही थी इसलिए 1956 में काम की तलाश में नंगल चला  गया .तब वहां भाखड़ा डैम का काम बड़े जोरों से चल रहा था वहां उसे 50 पैसे प्रति दिन की पगार पर नौकरी मिल गई .उसके साथ उसके 3 साथी दिलबर ,चमन लाल ,और अमन भी थे  .वह चारों हमउम्र थे .वह वहां सरिया काटने और उठाने का काम करते थे ओवर टाइम लगा कर उन्हें महीने के ₹20 मिल जाया करते थे खा पीकर हर कोई 10 ₹12 घर के लिए जमा कर लेते थे .सस्ता जमाना था गुजारा हो जाता था .कंस्ट्रक्शन साइट  से थोड़ी ही दूर उन्होंने एक झोपड़ी बना ली थी काम से थक हार कर झोपड़ी में आकर सो जाते थे .गरीबी के बावजूद भी बो बहुत खुश थे .1 दिन फौजा सिंह ने देखा के कंस्ट्रक्शन  साइट पर एक बेसहारा गौ माता आई जो घायल अवस्था में थी वहां पर एक अंग्रेज अधिकारी भी था जो शायद ठेकेदार रहा होगा उसने फौजा सिंह को गौ माता को पकड़ने के लिए बोला वह पकड़ कर अपनी झोपड़ी के पास ले आए और गाय की मलमपट्टी की और उसे चारा आदि खिलाया गया .अंग्रेज अधिकारी की मंशा  कुछ और थी वह बीफ  का शौकीन था और खाना चाहता था मगर फौजा सिंह ने उसे ऐसा नहीं करने दिया बल्कि उस गऊ की सेवा की इसकी वजह से वह अंग्रेज उनसे अक्सर दुश्मनी करने लगा मगर फौजा सिंह ने परवाह नहीं की कुछ ही हफ्तों में गौमाता बिल्कुल स्वस्थ हो गई और फिर वक्त आने पर गोवंश  को जन्म भी दिया .चारों मिलकर उसकी पूरी सेवा किया करते थे वह चारों खुद भी दूध पीते थे कभी-कभी जरूरतमंदों को भी पिला दिया करते थे फौजा सिंह अकसर दिलवर  अमन और चमनलाल से अक्सर कहा करता था के 1 मा घर पर है बह जन्म देने वाली है यह गौ माता हमारी धर्म माता है .1 दिन छुट्टी वाले दिन फौजा सिंह गौ माता और गोवंश को घुमाने के लिए खुले मैदानों  में ले गए वहां की हरी-हरी घास गौ माता को बहुत पसंद थी .फौजा सिंह को अकेला पाकर अंग्रेज अधिकारी ने उस पर हमला करवा दिया फौजा सिंह ने डटकर मुकाबला किया और गौ माता ने उसका पूरा साथ दिया अफसर के भेजे गुंडों की वो पिटाई हुई के वह चलने फिरने के भी काबिल नहीं रहे वापस आकर  सिंह ने सारा किस्सा अपने साथियों को बताया .अंग्रेज अधिकारी ने फौजा सिंह को बहलाने के लिए कुछ रकम देने की बात रखी मगर स्वाभिमान इंसान फौजा सिंह ने  लेने से इनकार कर दिया और कहा मैं सच्ची कृीत करता हूं और मिल बांट कर खाता हूं मुझे हराम की कमाई नहीं चाहिए तुम अपना भला चाहते हो तो जहां से निकल जाओ .एक  दिन गांव से संदेशा आयाके चमन लाल के पिताजी सख्त बीमार हैं उसके लिए पैसों की जरूरत है .चारों दोस्तों ने अपनी जमा पूंजी पिताजी के इलाज के लिए गांव भेज दी .बहुत तंगी का दौर था रोटी तो खुद बना लेते थे मगर दाल सब्जी के नाम पर पानी में हरी मिर्ची और नमक घोला हुआ होता था वह इसी से खुश होकर खाना खा लिया करते थे और थोड़ा बहुत दूध पी लिया करते थे फिर फौजा सिंह ने गौ माता को चमन लाल के परिवार को सौंप दिया के आप माता की सेवा करो और दूध पियो .उनकी झोपड़ी के पास ठेकेदार की फैमिली के लिए पक्का मकान बना हुआ था.वह ठेकेदार संपन्न क्षत्रिय परिवार से था  वहां पर ठेकेदार अपने परिवार के साथ रहता था.चारों दोस्त झोपड़ी में जब खाना खाने बैठते तो उनका अंदाज बहुत ही निराला होता था होता तो उनके पास नमकीन पानी मिर्ची घोला हुआ पर चारों  उसे  कभी मटर पनीर कभी चिकन करी बोला करते थे फौजा सिंह ऊंची ऊंची आवाज में दिलबर से बोला करते थे के तूने मुझे चिकन कम दिया है चमन तुमने सारा रायता ले लिया  उनकी यह बातें  ठेकेदार की पत्नी रोज सुना करती थी के यह लोग है तो मजदूर मगर खाना इतना बढ़िया बढ़िया खाते हैं .वह बहुत नेक दिल  थी चारों मित्र कभी कबार उनके घर का काम भी कर दिया करते थे .1 दिन वह लोग खा तो वही नमक वाले पानी के साथ रहे थे मगर ऊंची ऊंची बातें लजीज खाने की कर रहे थे उस औरत का मन ललचा गया और एक कटोरी मटर पनीर या चिकन की लेने पहुंच गई .उसे अचानक झोपड़ी में आया देखकर फौजा सिंह खड़ा हो गया बोला आओ बीबीजी हुक्म करो की सेवा करिए उसने बताया कि मुझसे आज दाल में नमक ज्यादा पड़ गया है आज आपने शायद चिकन या  मटर पनीर बनाया है दोनों में से कुछ भी दे दो चारों मित्र हक्के बक्के रह गए फौजा सिंह ने कहा बीबी जी आपसे हमारी सब्जी नहीं खाई जाएगी यहां से शहर 4  किलोमीटर है मैं वहां से कुछ ला देता हूं मैडम ने कहा नहीं मैं तो आपके हाथ का बनाया खाना चाहती हूं फौजा सिंह क्या करता उसने एक कटोरा उठाकर मैडम के सामने रख दिया और बोला हमारे लिए यही दाल है चिकन है यही मटर पनीर है 1 साल से लगभग यही खा रहे हैं दाल सब्जी तो 10 दिनों में एक बार बनती है हमारे पास यह दृश्य देखकर और उनकी जिंदादिली को देखकर ठेकेदार की पत्नी की आंखों से अश्रु धारा बह चली और बड़े सम्मान से उनसे वही नमकीन मिर्ची वाला पानी लेकर चली गई और शाम को जब ठेकेदार साहब आए तो उनके सामने यही परोस दिया ठेकेदार आगबबूला होकर बोले क्या अब मुझे तुम यह वाला खाना खिलाओगी उसकी पत्नी ने बोला वह चारों भी तो इंसान है जो यही खाकर 1 साल से इतना काम कर रहे हैं मैं आपसे एक विनती करती हूं इन चारों को किसी ऐसी जगह पर काम दिला दो यहां पर यह कम से कम दो टाइम सब्जी से खाना तो खा सकें .ठेकेदार ने कहा के कार  में अंडे रखे हैं पहले वह बना दो सुबह बात करेंगे  .अगले दिन चारों को ठेकेदार ने अपने दफ्तर में बुलाया और फौजा सिंह को सुपरवाइजर की पोस्ट पर रख लिया और अमन ,चमन लाल ,दिलबर को उसका सहायक नियुक्त कर दिया और उनकी तनख्वाह दुगनी हो गई .चारों दोस्तों की खुशी का ठिकाना ना रहा भाखड़ा डैम पूरा होने तक चारों ने वहां पर खूब मन लगाकर काम किया तरक्की के साथ पैसा भी कमाया और गांव में ट्यूबेल लगाकर खेती-बाड़ी आसान कर दी .यह गौ माता का आशीर्वाद था जा स्वाभिमान फौजा सिंह की ईमानदारी और मेहनत का फल जो उन्हें मिला भी और उन्होंने भोगा भी .............सच्ची घटना पर आधारित ....हेम वाला .🙏

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2 Comments

Author sid

30-Jun-2021 11:43 AM

👍👍👍👍

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Renu Singh"Radhe "

30-Jun-2021 11:21 AM

बहुत खूब

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