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नागफेनी


नागफेनी--7

बँसी और काशी टीम से आगे चल रहे थे।फिर पंक्तियों में टीचर और बच्चे ,और सबसे पीछे मँगल।

नदी के किनारे पकड़कर चलते चलते सभी जंगल में पहुंच गए।

वे सभी चलते जा रहे थे।एक जगह पर पूरी टीम ठहर गई।वहां के फोटोज अपने मोबाइल और कैमरे में कैद करने लगे। यह उनके रिसर्च का हिस्सा था।

मँगल बहुत मुँहफट और बातूनी था। वह बोलने लगा

--बाबू ,देखो आगे लगभग एक कोस के बाद जंगल बहुत गहरा जाता है,वहां पर दिन में भी रात दिखता है,उधर तो कभी जाना मत।

कहते हैं कि किसी देवता के शाप से शापित होकर वह परी  इधर आ गिरी है,तभी से वह यहीं रहती है। शायद शाप खत्म होने का इंतजार कर रही है।
यह नदी भी थोड़ा अलग ही है,कहाँ से आई..किधर जाती है,कुछ भी किसी को भी नहीं पता..!!
लोग कहते हैं कि आगे जाकर यह बहुत गहरी हो जाती है।

अमनः आपलोग कभी आगे नहीं गए हैं कभी..!!

मंगलः ना,बाबू ना।कभी नहीं।ऐसा गांव में बोलना भी मत।

रियाः अंकल,आपलोग जलावन के लिए लकड़ियां लेने नहीं आते हो?और फिर अपने पशुओं को चराने के लिए जंगल नहीं आते हो?

मंगलः आते हैं बिटिया..पर बहुत आगे नहीं जाते हैं।बस इतनी ही दूर या थोड़ी और दूर चले जाते हैं।

बँसीः एक बार गांव का छोरा बिशुन अपनी मवेशियों के साथ आगे निकल गया था,तो  कुछ मवेशी उसकी इधरउधर गुम हो गईं  और बिशुन ने उनको खोजने के चक्कर में क्या देख लिया बावला बनकर फिर रहा है।
आज तक उसकी मवेशियाँ नहीं मिलीं !!..न जाने कहाँ चली गईं।

अनुः अरे काका,तब इसका मतलब भूत वूत थोड़े ही है कोई जंगली जानवर भी हो सकता है।

काशीःअरे अरे छोड़ो भई,सारी बातें।ई सब बात मत करो।
पढाई वाले बच्चन सब हैं न ऐसी बातें ना करो।

मंगलः अरे बाबा,जानत हौ ना,वो जंगलीजानवरों के ही आवाज़ निकालकर डरावत है..अगर कोई जंगलीजानवर होता तो कबहुँ तो दिखाई देता।

काशीः देख साहब लोग..यहां पर हमार गांव के देवी माई..!!चलो सब प्रणाम कर लो।येही हमारी रक्षा करत हैं।

काशी ने अपने हाथों से इशारा करते हुए दिखाया।नदी किनारे पत्थरों पर स्थापित एक देवीमाई के पत्थर की प्रतिमा थी।
सारे लोग जाकर वहां प्रणाम किए।
**
दोपहर धीरेधीरे छुप रही थी।हवा तेज होती जा रही थी।

शोभित सर ने कहा--बच्चों,सबलोग अपना जल्दी जल्दी काम पूरे कर लो।शाम होने से पहले लौटना होगा।

विकास,मानव,अमन और अजय ये चारों अपने काम से अधिक बाकी बातें जानने को उत्सुक थे।

विकास बोला--सर थोड़ी और दूर तक चलते हैं न।देखते हैं कि आखिर माजरा क्या है?

अमनः हाँ,मुझे भी बहुत ही उत्सुकता हो रही है..थोड़ा आगे चलते हैं न।

शोभित सर और अविनाश सर दोनो को बहुत डांट देते हैं और कहते हैं

--नहीं,बिल्कुल भी नहीं..हमलोग यहां काम करने आए हैं न कि मुसीबत में फँसने।
..बस आधा घंटा और...फिर बैक टू गेस्टहाउस।,,

ये चारों आपस में डिसाइड करते हैं कि कल यहां आकर आगे तक निकलकर देखा जाएगा..!

अमन ः यार,इनके चक्कर में तो ये ट्रिप बस पढ़ाकूओं वाला बस रह जाएगा।
विकासः हाँ,कल हमलोग कोई न कोई बहाने से निकल लेंगे...!!
राजः ह्मम...!!
चारों दोस्त आँखों आँखों में इशारे करते हैं और कहते हैं ,,डन!!,,

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सभी लोग गेस्टहाउस लौट आए हैं।रात्रिभोज करके सबलोग अपने कमरे में अपने अपने बिस्तरपर हैं।ये चारों बच्चे अपने मोबाइल में व्हाट्सएप पर एक दूसरे को अपना प्रोग्राम शेड्यूल करते हैं फिर मोबाइल चार्जिंग पर लगाकर सोने चले जाते हैं।

~~

ये चारों बच्चे अमन,राज,विकास और मानव सर्पगंधा नदी के किनारे पहुंच जाते हैं।
अपनी शेड्यूल के अनुसार सभी अपने भोजन की सामग्री और पानी की बोतलें बैग मे रख लिए हैं।दिन का उजाला समग्र फैला हुआ है।
नदी में उतरकर बढ़ने लगते हैं।
पिछले दिन जहाँ तक पहुंचे थे,उसके आगे बढ़ने लगते हैं।
आगे नदी संकरी होती जा रही थी और नदी के दोनों तरफ बहुत ऊंचे ऊंचे  एकदम सीधे खड़े चट्टान  थे।

ये सभी आगे बढते जा रहे थे।अब नदी का पानी बढ़ने लगा था।रास्ता और भी संकरा हो गया था।
आगे बढने के अलावा अब कोई और उपाय भी नहीं रह गया था।
पानी अब एक ऊंचे चट्टानों से नीचे जलप्रपात की तरह गिरने लगा था,हवा भी बहुत तेज बह रही थी।
आगे बढ़ने का रास्ता बँद था..सामने जलप्रपात..अब पीछे लौटना..संभव नहीं था..!!

,,...यानि कि मंगल ठीक ही बोल रहा था।

,,अब..और कुछ नहीं..रास्ता बचा है सिवा आगे बढ़ने के!!

***क्रमशः
सीमा..✍️❤️

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8 Comments

Anam ansari

07-Apr-2022 07:38 PM

Buhat acha likha h

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Shnaya

07-Apr-2022 12:10 PM

Very nice👌

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Simran Bhagat

07-Apr-2022 10:57 AM

Nice

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