Farida

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लेखनी कविता -कविता संग्रह कौन जाने?

कौन जाने?


झुक रही है भूमि बाईं ओर, फ़िर भी
कौन जाने?
नियति की आँखें बचाकर,
आज धारा दाहिने बह जाए।

जाने 
किस किरण-शर के वरद आघात से
निर्वर्ण रेखा-चित्र, बीती रात का,
कब रँग उठे। 
सहसा मुखर हो
मूक क्या कह जाए?

'सम्भव क्या नहीं है आज-
लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की,
कर रही है प्रेरणा, 
यह प्रश्न अंकित? 

कौन जाने
आज ही नि:शेष हों सारे 
सँजोये स्वप्न,
दिन की सिध्दियों में
कौन जाने
शेष फिर भी,
एक नूतन स्वप्न की सम्भावना रह जाए।

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