लेखनी कहानी -09-Apr-2022 मां की व्यथा
रचयिता-प्रियंका भूतड़ा
शीर्षक-मां की व्यथा
मां ममता की नूर है,
मां के गर्भ में रहता भ्रूण है।
खुद दर्द सह कर देती बच्चे को जन्म,
गीले में रहती बच्चे को सूखे में सुलाती।
रात भर वह जाग कर, बच्चों को लोरी सुनाती।
खुद आधे कपड़े में रहती,
बच्चे को अपने आंचल में छुपाती।
खुद रहती है भूखी, बच्चे को भोजन खिलाती।
वह दुख सहकर, बच्चे को पढ़ाती
बच्चों के दुख को अपना समझती,
जब बच्चे बड़े होकर करे नादानी।
माता- पिता को कर देते अलग,
उनकी ख्याल का नहीं रहता स्मरण।
मां बच्चे को कहा,
क्या कसूर था मेरा।
तुमने दी जो यह मुझे पीर,
आंखों में दी तुमने नीर।
कहां जाऊंगी मैं, कौन है मेरा तेरे अलावा,
हमारे प्यार में किया तुमने छलावा।
अगर मैं चली गई, याद आएगी तुझे मेरी,
किसी भी कोने में नहीं मिलेगी छवि मेरी।
मां ने कहा करुणाई स्वर में
जिस दिन तेरे बच्चे, छोड़ जाएंगे तुझे
उस दिन याद आएगी मेरी तुझे।
मां वरदान होती है उसे घर से मत निकालो
उसकी एक दुआ घर को आबाद कर सकती हैं
और एक बद्दुआ विनाश कर सकती है।
Rohan Nanda
15-Apr-2022 12:45 AM
👍👍
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Swati chourasia
10-Apr-2022 01:33 PM
Very beautiful 👌👌
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Renu
10-Apr-2022 01:12 PM
🤗🤗
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