सर्दी की सुबह
नभ ने नीली आँखें खोली, सूरज ने सिगड़ी सुलगाई
धुंआ धुंध घाटी में, सर्दी बर्फ़-बर्फ़ मुस्काई
सुई नोक से पत्ते बूटे, हरी टोपियां ताने
बूँद ओस की अटकें यों, ज्यों मोती के हों दाने
एक किरण दरवाजे उतरी, टूटी कड़ी बजायी
टूटी चौखट पार करी; दी, जीवन को अंगड़ाई
दूध चढ़ा मिट्टी चूल्हे, और कूटी अदरक थोड़ी
गमक उठा छोटा सा चौका ,चाय उफ़न कर दौड़ी
लौंग दालचीनी इलायची, शहद नींबू की प्याली
ठिठुरी रातों की साथी ये, सिहरी सुबहों की आली
आंगन में भभका अलाव, नारंगी छटा बिखेरी
सुलगी लकड़ी; सौंधी खुशबू, चेहरे रंगे अबीरी
दानों पर चिड़ियों ने ढलवां छत से हमला बोला
मुर्गों ने दी बाँग, उड़े पँखों का लिये हिंडोला
सूरज घाटी के हर कोने, जा गुन गुन कर आया
उठो ! स्वप्न छोड़ो, देखो तो! फिर से सुखद सवेरा आया!
- कोकिला
Priyanka06
17-Dec-2022 11:26 PM
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने
Reply
Kumawat Meenakshi Meera
05-Feb-2021 05:11 PM
वाहहह
Reply
उदय बीर सिंह
27-Jan-2021 09:16 PM
वाह कोकिला जी लाजवाब कविता
Reply
Kokila Gupta
28-Jan-2021 11:17 AM
Thank you, Sir!
Reply