कालिदास की तीसरी रचना विक्रमोर्वशीयम बहुत से रहस्यों से भरा हुआ है। पाँच अंकों के इस नाटक में राजा पुरुरवा और इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी के प्रेम विवाह और वियोग मिलन की कहानी को विस्तार दिया गया है। पुरुरवा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी से प्रेम करने लगता है। उर्वशी का ध्यान भी पुरुरवा में ही खो जाता है। एक दिन इंद्र की राज सभा में नृत्य गीत के समय पुरुरवा के ध्यान में खोए रहने के कारण उर्वशी के मुंह से इंद्र के लिए 'पुरुषोत्तम' के स्थान पर 'पुरुरवस' नाम निकल जाता है। इस पर इंद्र गुस्से में उसे धरती पर चले जान का शाप देते हैं। वह धरती पर आकर पुरुरवा से विवाह कर लेती है, एक पुत्र की माँ बनती है और इस पुत्र को पुरुरवा के देख लेने पर शाप से मुक्त हो वापस स्वर्ग लौट जाती है। विक्रमोर्वशीयम काव्यगत सौंदर्य और शिल्प से भरपूर नाटक है। स्वर्ग और पृथ्वी के अनेक दृश्यों के अतिरिक्त इसमें इंद्रजाल का बहुत सुंदर प्रयोग किया है। इस प्रकार की दृश्य संरचना को देखकर पता लगता है कि प्राचीन भारत की नाट्यकला कितनी विस्तृत थी।
Gunjan Kamal
11-Apr-2022 03:47 PM
Very good
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