Lekhika Ranchi

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-कालिदास


ऋतुसंहार 
 
 ‘ऋतुसंहार’ का शाब्दिक अर्थ है- ऋतुओं का संघात या समूह। ऋतुसंहार कालिदास का दूसरा गीति काव्य है जिसमें उत्तर भारत की छै ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का छै सर्गों में विस्तार से वर्णन किया गया है। ऋतुओं के सजीव वर्णन के अतिरिक्त इसमें उन मनोभावों का भी भावपूर्ण वर्णन किया गया है जो बदलती ऋतुओं के साथ प्रेमी हृदयों में पैदा होते हैं।  प्रकृति के प्रांगण में विहार करनेवाले विभिन्न पशु-पक्षियों तथा नानाविध वृक्षों, लताओं व फूलों को भी कवि भूला नहीं है। वह भारत के प्राकृतिक वैभव तथा जीव जन्तुओं के वैविध्य के साथ-साथ उनके स्वभाव व प्रवृत्तियों से भी पूर्णतः परिचित है। प्रस्तुत काव्य को पढ़ने से भारत की विभिन्न ऋतुओं का सौंदर्य अपने संपूर्ण रूप में हमारी आँखों के समक्ष साक्षात उपस्थित हो जाता है। इस प्रकार शब्द लालित्य के साथ साथ नवरसों का भी इस काव्य में सम्यक ध्यान रखा गया है। कालिदास की सभी साहित्यिक कृतियों में ऋतुसंहार सबसे छोटी कृति है।

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1 Comments

Gunjan Kamal

10-Apr-2022 12:01 PM

👌👏🙏🏻

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