Lekhika Ranchi

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-कालिदास


मालविकाग्निमित्रम्-2 
 
 प्रथम अङ्क

नाटक के प्रारम्भ में रानी धारिणी मालविका को राजा की दृष्टि से छिपाये रखना चाहती हैं। रानी धारिणी की आज्ञा से मालविका के नृत्य और गायन की शिक्षा की प्रगति के संबंध में नाट्याचार्य गणदास से जानकारी करने के लिए जा रही वकुलावलिका की भेंट कौमुदिनी से हो जाती है जो रानी के लिए सांकित अँगूठी लेकर स्वर्णकार के यहाँ से लौट रही थी। उन दोनों की वार्ता से ज्ञात होता है कि मालविका के सौन्दर्य के कारण रानी धारिणी उसे राजा अग्निमित्र की दृष्टि से दूर रखना चाहती है। परन्तु एक दिन चित्रशाला में चित्र देखती हुई महादेवी के निकट उपस्थित होकर राजा मालविका का चित्र देख लेता है, और उसके बारे में पूछने पर वसुलक्ष्मी बालभाव से कह देती हैं कि यह मालविका है। मालविका को देखकर राजा उसके सौंदर्य पर मोहित हो गया। कौमुदिनी धारिणी के पास चली जाती है और वकुलावलिका गणदास के पास, गणदास मालविका की निपुणता और गृहणशक्ति की प्रशंसा करता है। इसी को देवी अपने विश्वासपात्र नाट्याचार्य गणदास के पास संगीत नृत्य की शिक्षा के लिए रख छोड़ती है और मालूम होता है कि वह बड़ी कुशलता से नृत्य की प्रायोगिक शिक्षा ग्रहण कर रही है।

इस मिश्रविष्कम्भक के बाद दूसरे दृश्य में राजा अग्निमित्र पत्र लेख लिए हुए मन्त्री के साथ दिखाई पड़ता है। उनके सम्भाषणों से ज्ञात होता है कि पहले राजा ने विदर्भ शासक को पत्र दिया था उसके प्रत्युत्तर में ही यह लेख आया है अमात्य वाहतक बतलाता है कि वैदर्भ अपना विनाश चाहता है पत्र से ज्ञात होता है कि अग्निमित्र से माधवसेन की मित्रता है तथा वह प्रतिश्रुत सम्बन्धी है। माधवसेन अपनी कुमारी बहिन को देने का वचन दे चुका है इसी अपने पितृव्य पुत्र भाई माधवसेन को अग्निमित्र के पास विदिशा जाते हुए रास्ते में ही यज्ञसेन के अंतपाल ने बहिन तथा स्त्री सहित पकड़ लिया उसी की मुक्ति के लिए अग्निमित्र के विदर्भ शासक को संदेश देने पर वह प्रत्युत्तर में अभिसंधि के रूप में अपने साले मौर्य सचिव को छोड़ने को लिखता है।

    मौर्यसचिव विमुञ्चति यदि पूज्यः संयतं मम श्यालम् । 
    भोक्तामाधवसेनं ततोऽहमपि बन्धनात्सद्यः ॥

अग्निमित्र कार्य विनिमय की इस अभिसंधि से रूष्ट होकर विदर्भ के समूलोन्मूलन के लिए आज्ञा देता है। अमात्य भी राजा के वक्तव्य का शास्त्र द्वारा समर्थन करता है। फलतः उसने अपने साले धारिणी के भाई को विदर्भ देश पर आक्रमण करके शत्रु को पराजित करने के लिए भेज दिया। दूसरी ओर अमात्य के निष्क्रमण के पश्चात कार्यान्तर (नर्म) सचिव विदूषक, जिसकी प्रतीक्षा राजा बड़ी उत्सुकता से कर रहा है प्रवेश करता है। इसके बाद राजा विदूषक से मालविका विषयक अपनी काम पीड़ा को कहता है और कोई उपाय ढूंढने का उपाय करता हैं। उसके द्वारा ज्ञात होता है कि राजा से चित्र में देखी मालविका के प्रत्यक्ष दर्शन के उपाय को भेजा है और अब उसका उपाय भी कर दिया गया है। तभी गणदास तथा हरिदत्त दोनो तू-तू मैं-मैं करते हुए प्रवेश करते है। यही विदूषक की कूटनीति प्रयोग विस्तार पाता है। दोनों नाट्याचार्य एक दूसरे को विद्या आदि में हेय समझते हैं परस्पर निन्दा करते हैं और राजा से ही प्राश्चिक के रूप में इसका निर्णय चाहते हैं कि दोनो में शास्त्र तथा प्रयोग ज्ञान में श्रेष्ठ कौन है।

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1 Comments

Gunjan Kamal

10-Apr-2022 12:04 PM

👌👏🙏🏻

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