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सपनों का बलि चढ़ाऊं

क्या निश्ब्दता के सीमा में  जीकर  होगा?
इससे बेहतर है सपनों को  बलि  चढ़ाऊं!!

बहुत शौक़ से तुमने ही तो मुझे चुना  था..
आओ अंतश का खालीपन तुझे दिखाऊं!!

दिवस अनेकों  बीत  गए   प्रतीक्षा   करते
आख़िर कबतक आंखों से धक धक करवाऊं!!

आज तुम्हीं आकर मरने का इल्म सिखाओ
हो  सकता   है   मर  कर   ही   मैं    जी  पाऊं!!

यहां मयस्सर   है  पहरा  जीवन  का मुझपर..
शायद  मृत्युदामन    में     आजादी     पाऊं!!

दीपक झा रुद्रा

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3 Comments

Mukesh Duhan

10-Apr-2022 04:20 PM

Nice ji

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Gunjan Kamal

10-Apr-2022 02:56 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Shnaya

10-Apr-2022 02:29 PM

Nice

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