*बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला*
इस तरह के वाक्य हम लिखे देखते हैं बहुत से वाहनों के पीछे, और साथ में जूता लटक रहा होता है, या फिर कोई मटकी पर पुता हुआ राक्षस का चेहर. हमेशा से ही बुरी नजर से बचाने के लिए तरह-तरह के टोटके किए जाते हैं.... और इन टोटकों को बेचने के लिए भारत के छोटे - बड़े सभी उद्योगपति, तरह-तरह के उपकरण बेचते हैं. चाहे वे वास्तु पिरामिड हों,तरह-तरह के कागज पर छपे हुए यंत्र हों, या फिर अंगूठी में लगाने वाले तरह-तरह के नगीने.
हमारे उद्योगपति माहिर हैं बाजार की नब्ज पहचानने में.
कोई सोच सकता था भला कि प्लास्टिक के नींबू और मिर्ची दुकानों पर दिखने लगेंगे.
अपनी दुकान पर बहुत से दुकानदार हर रोज, प्रातकाल एक धागे में बांधकर नींबू और हरि मिर्ची लटका देते हैं, और मान लेते हैं की बुरी बला है टल जाएगी. दुकानदार को कुछ नहीं करना होता. एक सेल्समैन आता है, आपकी दुकान के बाहर नींबू मिर्ची लटका कर चला जाता है. और पहले यह एक रुपए में मिल जाती थी.
अब ढाई सौ रुपए किलो नींबू का भाव है. तो आप कैसे सोच सकते हैं कि लोग नींबू की शिकंजी बनाने की बजाय उसे अपनी दुकान के बाहर बुरी बला को भगाने के लिए लगाएं....
लेकिन हमारे उद्योगपति बहुत ही दूर दृष्टि है... दूर की सोचते हैं. दो-तीन साल पहले से ही प्लास्टिक के नींबू मिर्ची सड़कों पर बिकने शुरू हो गए थे. अब असली नींबू मिर्ची की बजाय नकली नींबू मिर्ची से बुरी बला भागे या न भागे, लेकिन बहुत से उद्योगपतियों का पेट भरता रहेगा. आपको ध्यान होगा , पुराने जमाने में, हिंदी भाषा में भी तरह तरह की किताबें आती थी.... जूते की पॉलिश कैसे बनाएं, फेस पाउडर कैसे बनाएं, ट्रांजिस्टर रेडियो कैसे बनाएं, प्लास्टिक की चप्पल कैसे बनाएं.... और तो और टेलीविजन कैसे बनाएं तक की किताबें बाजार में मिलती थी.
दिल्ली-110006 में ऐतिहासिक जामा मस्जिद है. चावड़ी बाजार की तरफ चलिए. चौराहे पर एक दुकान है. इसका नाम है देहाती पुस्तक भंडार.
इस चौक को बोलते हैं बड़शब्ऊलआ चौक. तीन भाइयों ने मिलकर यह पब्लिशिंग हाउस शुरू किया था. बाद में दो भाई ठंडी राम और मूलचंद अलग हो गए.
उन्होंने पुस्तक महल की स्थापना की. देहाती पुस्तक भंडार में हर तरीके के सामान बनाने की, सरल भाषा में लिखी हुई, किताबें मिला करती थी.
शायद 75 से 80 साल पहले देहाती पुस्तक भंडार की स्थापना की गई थी.
इन किताबों में विस्तार से किसी भी सामान को बनाने का तरीका, उस में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री और वह कहां उपलब्ध होती थी, उस की बढ़िया जानकारी मिलती थी. पुस्तक महल ने इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स जैसी पुस्तक प्रकाशित की. बहुत से पब्लिशर ने उनकी नकल मारी. उन्होंने भी बेची. सारे देश को अंग्रेजी सिखाने में सब ने योगदान दिया. पुस्तक महल का अपनी पेरेंट् संस्था देहाती पुस्तक भंडार से रैपिडेक्स को लेकर मुकदमा भी चला.... और भी बहुत से पब्लिशर्स में इस पुस्तक को लेकर मुकदमे बाजी हुई.
माया की माया बड़ी विचित्र है... असली नींबू महंगा हुआ तो क्या हुआ... प्लास्टिक का नींबू मिल रहा है बाजार में... आपको बुरी बला से बचाने के लिए..
आर्किटेक्ट की डायरी में पढ़ते रहिए... तरह-तरह के रोचक और मजेदार संस्मरण. चाहे आर्किटेक्चर हो, उद्योग जगत हो या पब्लिशिंग इंडस्ट्री, हर तरह की जानकारी आपको मिलेगी अशोक गोयल की डायरी में....
Shnaya
12-Apr-2022 03:57 PM
Very nice 👌
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Punam verma
11-Apr-2022 08:37 AM
Very nice
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Abhinav ji
11-Apr-2022 08:07 AM
Very nice👍
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