रिश्तों की राजनीति- भाग 1
भाग 1
पुणे के राजनितिक गलियारों में उथल पुथल होना आम बात है। पुणे के मौसम की तरह राजनितिक पार्टियाँ भी अपने रंग बदलतीं रहती है। आज सुबह से ही एम एल ए श्री जगताप पाटिल के घर में गहमा-गहमी का माहौल था।
आज जनता दरबार जो लगना था, जनता की समस्याओं से रूबरू होने के लिए। सप्ताह में एक बार जनता दरबार लगा करता था जगताप पाटिल के बंगले में। भारी संख्या में दुखियारों की भीड़ सुबह 7 बजे से ही जमा होने लगती थी बरामदे में, जबकि जनता दरबार का शुरू होने का समय 9 बजे का था।
मई के महीने की झुलसा देने वाली गर्मी और उस पर लोगों की भीड़ ने नेता जी के बंगले को रेगिस्तान सा तपा दिया था। लोग बेसब्री से नेताजी का इंतज़ार कर रहे थे और नेताजी अपने सेक्रेटरी गोपाल को समझा रहे थे…..लोगों की सारी समस्याएं रजिस्टर में नाम सहित लिख लेना और आश्वासन दे देना कि जल्दी ही सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी, बाकि हम देख लेंगे। ये ध्यान रखना कि लोग दूर से ही बात करें, हमारे पास ना आने पाएं।
जी मचलाता है हमारा, जब भी यह लोग पास आते हैं…..पसीने और गरीबी की बदबू से भरे हुए। तुम तब तक हमारे आने की सूचना दो, हम अभी आते हैं।
जगताप पाटिल सभा में जा ही रहे होते हैं कि उनका बेटा अक्षय आता है। अपने पिता के पाँव छूता है और कहता है….बाबा पैसे चाहिए थे थोड़े?
जगताप पाटिल….. थोड़े मतलब, कितने?
अक्षय….दस हजार चलेंगे, आज कोरेगांव के क्लब में पार्टी के लिए जाना है।
जगताप पाटिल…..कॉलेज में सिर्फ पार्टी हो रही है कि पढ़ाई भी हो रही है?
अक्षय….पढ़ाई तो रोज़ करता हूँ , लेकिन पार्टी कभी-कभी करता हूँ।
जगताप पाटिल अक्षय को दस हजार दे देते हैं और वो कॉलेज के लिए चला जाता है।
कॉलेज की पढ़ाई की ना अक्षय को पड़ी थी ना उसके बाबा को।
राजनीति का क्ष्रेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ शिक्षित होने की कोई खास आवश्यकता नहीं है। वैसे भी जिसका बाप एम एल ए जगताप पाटिल हो, उसे किस बात की चिंता? वैसे यही सोच जगताप पाटिल की भी थी। उन्होंने अपने बेटे को कॉलेज के पहले दिन ही गुरुमंत्र दे दिया था…. चोरी ऐसे करो कि पकड़े ना जाओ, ऐश करो पूरी लेकिन साधुओं में गिने जाओ।
थोड़ी देर बाद जनता दरबार में जय-जयकार होने लगती है जगताप पाटिल के नाम की। ऊँचा कद, साँवला रंग और चेहरे पर दाढ़ी,बड़ा ही रौबदार व्यक्तित्व था जगताप पाटिल का। हमेशा सफ़ेद कुर्ते पायजामे में ही नज़र आते थे जगताप पाटिल। जनता दरबार में पसरी हुई भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहते हैं…..आप सभी का जनता दरबार में स्वागत है। आप सभी भाई बहनों से मेरी प्रार्थना है सब एक एक करके अपनी समस्या बताएं।
गोपाल सबकी समस्याएं दर्ज करते जाओ....
जी पाटिल साहेब......
गोपाल सबकी समस्याएं दर्ज करता जा रहा था और आश्वासन देता जा रहा था। यह खेल हर मंगलवार को चलता था। कुछ समस्याएं सुलझा दी जाती थीं और कुछ अधूरी छोड़ दी जातीं थी।
कभी देखा है किसी डॉक्टर को मरीज़ का पूरा इलाज़ करते हुए या किसी मैकेनिक को पूरी तरह से गाड़ी ठीक करते हुए। आधी-अधूरी चीजें लंबे समय तक चलती हैं क्योंकि उनमें गुंजाईश होती है बार-बार ठीक होने की।
अंत में जय महाराष्ट्र का नारा लगाकर जगताप पाटिल अपनी पार्टी "मराठी मानुस" की मीटिंग के लिए निकल जाते हैं।
पिम्पली सौदागर- मधुबन सोसाइटी
पिम्पली सौदागर- मधुबन सोसाइटी में महेश सावंत अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी अर्चना जो कि एक गृहणी है, बड़ा बेटा अभिजीत शिवाजी कॉलेज में बी.कॉम फाइनल इयर, छोटी बेटी सान्वी बी. ए फर्स्ट इयर में हैं। एक साधारण सा मध्यमवर्गीय संस्कारी परिवार है। महेश सावंत और उनकी पत्नी अर्चना की एक ही ख्वाहिश है कि बच्चे पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो जाएं।
कुछ ही दिन हुए थे सान्वी को कॉलेज में दाखिला लिए हुए। मन में नई उमंगे, कुछ करने की चाह यही सब सोचकर तो उसने कॉलेज में दाखिला लिया था। सान्वी रोज़ अपने भाई अभिजीत के साथ ही कॉलेज जाती थी, लेकिन आज अभिजीत की तबियत खराब होने के कारण सान्वी को अकेले कॉलेज जाना पड़ा था।
सान्वी की क्लास में में दो समूह थे। एक समूह तो उन लड़के-लड़कियों का था जिनका ताल्लुक समाज के ऊँचे तबके से था और दूसरे समूह में उसके जैसे माध्यम और निम्न वर्गीय आते थे। दरअसल उच्च वर्गीय समूह मध्यमवर्गीय को भी निम्नवर्गियों की श्रेणी में ही गिनता था।
सान्वी की सहेली रिया भी उसकी तरह मध्यमवर्गीय परिवार से थी। दोनों का एक ही लक्ष्य था पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करना। लेकिन सायशा और अनूप के समूह का एकमात्र लक्ष्य था अपने माता पिता के पैसे पर ऐश करना। वो लोग अक्सर सान्वी और रिया को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे।
सान्वी ने सर से उसकी शिकायत भी की थी एक बार। बस इसी वज़ह से सायशा और अनूप सान्वी से चिढ़ने लगे थे।
सायशा और अनूप का सेकंड ईयर के लड़के-लड़कियों के साथ उठना बैठना था। उन्हें सान्वी को सबक सिखाने का तरीका मिल चुका था। सायशा और अनूप के ऊपर अजित का हाथ था और अजित के ऊपर किसी और का।
आज कॉलेज में घुसते ही सान्वी को सेकंड ईयर के छात्र अजीत और उसके गैंग ने सान्वी को रैगिंग के नाम पर पकड़ लिया और जिद करने लगे उससे एक अश्लील गाने पर डांस करने के लिए। सान्वी बचपन से गर्ल्स स्कूल में ही पढ़ी थी जिस कारण वो लड़कों को देखकर बहुत घबराती थी। फिर भी उसने हिम्मत करके अजीत को मना कर दिया डांस करने के लिए और सीधा अपनी क्लास में जाने लगी।
अजीत के सभी दोस्त उसकी बेज्जती पर हँसने लगे। अजित गुस्से में आकर सान्वी का दुपट्टा खींचने की कोशिश करने लगा। सान्वी रोये जा रही थी और उससे अपने आपको छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। बाकि सभी लोग तमाशा देख रहे थे सान्वी की बेबसी का।
तभी अजित के मुँह पर तमाचा पड़ने की आवाज़ आती है और वो झट से सान्वी का हाथ छोड़ देता है। सबकी नजरें अब अजित से हटकर उस थप्पड़ मारने वाले के हाथ पर होती हैं। कुछ देर पहले जो शोर मच रहा होता है, अब वो सन्नाटे में तब्दील हो जाता है। आखिर होता भी क्यों नहीं वो थप्पड़ मारने वाला हाथ किसी साधारण लड़के का नहीं था, वो हाथ था एम एल ए जगताप पाटिल के लड़के अक्षय जगताप पाटिल का।
सान्वी डर के मारे अक्षय के पीछे छिप कर खड़ी थी। अक्षय ने अजित को धमकी दी अगर उसने फिर से सान्वी के साथ बदतामीजी की तो वो उसका वो हाल करेगा जो वो सोच भी नहीं सकता। उसने अजित को सान्वी से माफ़ी माँगने के लिए कहा। अजित गुस्से में बिना माफ़ी मांगे वहाँ से चला जाता है।
सान्वी रोते हुए अक्षय को धन्यवाद कहती है उसकी मदद करने के लिए। अक्षय सान्वी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहता है….तुम्हें कभी भी कोई परेशानी हो तो तुम मुझे फोन कर सकती हो। मेरा नाम अक्षय है और मैं सेकंड ईयर में पढ़ता हूँ इसी कॉलेज में। अक्षय सान्वी को अपना नंबर देता है, लेकिन सान्वी उसे अपना नंबर नहीं देती है। वो उसका आभार प्रकट करके अपनी क्लास के लिए चली जाती है।
जब तक सान्वी चली नहीं जाती तब तक अक्षय उसे जाते हुए देखता रहता है और फिर कुछ सोचकर मन ही मन मुस्कुराने लगता है।
❤सोनिया जाधव
shweta soni
18-Jul-2022 12:25 AM
Bahot badiya 👌
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विजयकांत वर्मा
20-Apr-2022 04:34 PM
✍🏻राजनीति का सटीक विश्लेषण.. बहुत ही अच्छा लिखा है..! क्योंकि राजनीति में कुछ भी गलत नहीं है, जब तक पकड़े ना जाओ..!
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Seema Priyadarshini sahay
13-Apr-2022 10:26 PM
बेहतरीन👌👌
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