Lekhika Ranchi

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-कालिदास


विक्रमोर्वशीयम्-4 
 
 यह सुनकर चित्रलेखा ने उर्वशी से कहा, "तुमने देवदूत के वचन सुने। अब महाराज से विदा लो।"

लेकिन उर्वशी इतनी दुखी हो रही थी कि बोल न सकी। चित्रलेखा ने उसकी ओर से निवेदन किया, "महाराज, उर्वशी प्रार्थना करती है कि मैं पराधीन हूँ। जाने के लिए महाराज की आज्ञा चाहती हूँ, जिससे देवताओं का अपराध करने से बच सकूँ।"

महाराज भी दुखी हो रहे थे। बड़ी कठिनता से बोल सके, "भला मैं आपके स्वामी की आज्ञा का कैसे विरोध कर सकता हूँ, लेकिन मुझे भूलिएगा नहीं।"

महाराज की ओर बार-बार देखती हुई उर्वशी अपनी सखी के साथ वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद विदूषक को पता लगा कि महाराज ने उसे उर्वशी का जो पत्र रखने को दिया था वह कहीं उड़ गया है। वह डरने लगा कि कहीं महाराज उसे माँग न बैठें। यही हुआ भी। पत्र न पाकर महाराज बड़े क्रुद्ध हुए और तुरंत उसे ढूँढ़ने की आज्ञा दी। यही नहीं वह स्वयं भी उसे ढूँढ़ने लगे।

इसी समय महारानी अपनी दासियों के साथ उधर ही आ रही थी। उन्हें उर्वशी के प्रेम का पता लग गया था। वह अपने कानों से महाराज की बातें सुनकर इस बात की सच्चाई को परखना चाहती थीं। मार्ग में आते समय उन्हें उर्वशी का वही पत्र उड़ता हुआ मिल गया। उसे पढ़ने पर सब बातें उनकी समझ में आ गई। उस पत्र को लेकर जब वह महाराज के पास पहुँची तो वे दोनों बड़ी व्यग्रता से उसे खोज रहे थे। महाराज कह रहे थे कि मैं तो सब प्रकार से लुट गया। यह सुनकर महारानी एकाएक आगे बढ़ीं और बोलीं, "आर्यपुत्र! घबराइए नहीं। वह भोजपत्र यह रहा!"

महारानी को और उन्हीं के हाथ में उस पत्र को देखकर महाराज और भी घबरा उठे, लेकिन किसी तरह अपने को सँभालकर उन्होंने महारानी का स्वागत किया और कहा, "मैं इसे नहीं खोज रहा था, देवी। मुझे तो किसी और ही वस्तु की तलाश थी।" विदूषक ने भी अपने विनोद से उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न किया, लेकिन वह क्यों माननेवाली थीं। बोली, "मैं ऐसे समय में आपके काम में बाधा डालने आ गई। मैंने अपराध किया। लीजिए मैं चली जाती हूँ।" और वह गुस्से में भरकर लौट चलीं। महाराज पीछे-पीछे मनाने के लिए दौड़े। पैर तक पकड़े, पर महारानी इतनी भोली नहीं थीं कि महाराज की इन चिकनी- चुपड़ी बातों में आ जाती।

लेकिन पतिव्रता होने के कारण उन्होंने कोई कड़ा बर्ताव भी नहीं किया। ऐसा करती तो पछताना पड़ता। बस वह चली गई। महाराज भी अधीर होकर स्नान-भोजन के लिए चले गए। वह महारानी को अब भी पहले के समान ही प्यार करते, लेकिन जब वह हाथ-पैर जोड़ने पर भी नहीं मानीं तो वह भी क्रुद्ध हो उठे।

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1 Comments

Gunjan Kamal

11-Apr-2022 03:51 PM

Very nice

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