Lekhika Ranchi

Add To collaction

-कालिदास


कुमारसंभवम् 
 
 कुमारसम्भवम् (अर्थ : 'कुमार का जन्म') महाकवि कालिदास विरचित कार्तिकेय के जन्म से संबंधित[1] महाकाव्य जिसकी गणना संस्कृत के पंच महाकाव्यों में की जाती है।

इस महाकाव्य में अनेक स्थलों पर स्मरणीय और मनोरम वर्णन हुआ है। हिमालयवर्णन, पार्वती की तपस्या, ब्रह्मचारी की शिवनिंदा, वसन्त आगमन, शिवपार्वती विवाह और रतिक्रिया वर्णन अदभुत अनुभूति उत्पन्न करते हैं। कालिदास का बाला पार्वती, तपस्विनी पार्वती, विनयवती पार्वती और प्रगल्भ पार्वती आदि रूपों नारी का चित्रण अद्भुत है।

कवित्व व काव्य-कला के हर प्रतिमान की कसौटी पर ‘कुमारसंभव’ एक श्रेष्‍ठ महाकाव्य सिद्ध होता है। मानव-मन में कवि की विलक्षण पैठ सर्वत्र दृष्‍टिगोचर होती है। पार्वती, शिव, ब्रह्मचारी आदि सभी पात्र मौलिक व्यक्‍तित्व व जीवन्तता से सम्पन्न हैं। प्रकृति-चित्रण में कवि का असाधारण नैपुण्य दर्शनीय है। काम-दहन तथा कठोर तपस्या के फलस्वरूप पार्वती को शिव की प्राप्‍ति सांस्कृतिक महत्त्व के प्रसंग हैं। कवि ने दिव्य दम्पत्ति को साधारण मानव प्रेमी-प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत कर मानवीय प्रणय व गार्हस्थ्य जीवन को गरिमा-मंडित किया है।

यह महाकाव्य १७ सर्गों में समाप्त हुआ है, किंतु लोक धारणा है कि केवल प्रथम आठ सर्ग ही कालिदास रचित हैं। बाद के अन्य नौ सर्ग अन्य कवि की रचना है ऐसा माना जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि काव्य आठ सर्गों में ही शिवपार्वती समागम के साथ कुमार के जन्म की पूर्वसूचना के साथ ही समाप्त हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि आठवें सर्ग मे शिवपार्वती के संभोग का वर्णन करने के कारण कालिदास को कुष्ठ हो गया और वे लिख न सके। एक मत यह भी है कि उनका संभोगवर्णन जनमानस को रुचि नहीं इसलिए उन्होंने आगे नहीं लिखा।

   1
0 Comments