महादेव द्वारा मदनदहन की घटना के उपरान्त पार्वती ने अपने सौन्दर्य की निन्दा करते हुए तप द्वारा महादेव को पतिरूप में प्राप्त करने का निश्चय किया। पार्वती की माँ ने उन्हें तप करने से मना किया, किन्तु वह अपने निश्चय से विचलित नहीं हुई। अपने पिता की आज्ञा से पार्वती ने हिमालय के उस शिखर पर तपस्या आरम्भ कर दी, जिसका कालान्तर में गौरी शंकर नाम पड़ गया। पार्वती की तपस्या ऋषि-मुनियों को भी विस्मित करने वाली थी। तपोरत पार्वती के आश्रम में कुछ दिनों के पश्चात् महादेव गुप्त वेश में उनके निकट गये। ब्रह्मचारी बने हुए महादेव ने पार्वती से तप का कारण पूछा। पार्वती का संकेत पाकर उसकी सखी ने ब्रह्मचारी को बताया, कि मेरी सखी महादेव को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए इतना कठोर तप कर रही हैं। ब्रह्मचारी ने अनेक प्रकार से भगवान शिव की आलोचना एवं निन्दा की। अपने आराधय की निन्दा को असहनीय जानकर पार्वती ने अपनी सखी से, ब्रह्मचारी को मौन रहने के लिए कहा। शिव निन्दा श्रवण में अक्षम पार्वती ने अन्यत्र गमन का उपक्रम किया। उसी क्षण महादेव प्रकट रूप में आ गये एवं पार्वती से बोले - हे देवि! मैं आपकी तपस्या से खरीदा हुआ आपका दास हूँ। इसी के साथ पंचम सर्ग का समापन होता है।
Gunjan Kamal
11-Apr-2022 03:55 PM
Very nice
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