सेनापति वेष में कुमार कार्तिकेय अपने माता-पिता की चरण वन्दना करके स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं। सभी देवता कुमार का अनुगमन करते हैं। कुमार ने देवताओं को साहस बँधाते हुए स्वर्ग में प्रवेश करने की आज्ञा दी। स्वर्ग में प्रवेश करते ही सबसे पहले आकाश गंगा दिखाई दी। कुमार ने देवनदी मंदाकिनी को प्रणाम किया। तत्पश्चात् नन्दनवन को देखा। नन्दन वन उजड़ा सा दिखाई दे रहा था। कार्तिकेय ने अनुमान लगाया कि तारकासुर के आतंक से ही इस नन्दनवन की यह दुर्दशा हुई है। कुमार कार्तिकेय ने उजड़ी हुई अमरावती नामक सर्वश्रेष्ठ नगरी को देखा। अमरावती की हीन- दीन दशा देखकर कुमार कार्तिकेय को तारकासुर पर बहुत क्रोध आया। इन्द्र कुमार को वैजयन्त नामक भवन में ले गये। उस भवन की सुन्दर दीवारें दैत्यों के हाथियों के दन्ताघात से धवस्त हो गयी थीं। उसी भवन में महर्षि कश्यप विराजमान थे। कुमार कार्तिकेय ने महर्षि को प्रणाम किया। कुमार ने देवमाता अदिति को सिर झुकाकर प्रणाम किया। कुमार ने वहाँ बारी-बारी से इन्द्राणी, देवांगनाओं एवं महर्षि कश्यप की सातों पत्नियों को प्रणाम किया। उन सभी ने कुमार को विजयी होने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार इन्द्रादि देवताओं ने कुमार कार्तिकेय को अपना सेनापति बना लिया। कुमार का सेनापति पद पर अभिषेक होने के अनन्तर देवताओं को विश्वास हो गया, कि हम लोग तारकासुर को युद्ध में अवश्य जीत लेंगे।
Gunjan Kamal
11-Apr-2022 03:58 PM
Very nice
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