तारकासुर विजयार्थ कुमार कार्तिकेय ”विजित्वर“ नामक रथ पर आरूढ़ हो गये। यह रथ मन से भी अधिक वेगवान था। इस पर स्वर्णछत्र लगा हुआ था। कुमार के पीछे सभी देवता यथानुरूप अस्त्र-शस्त्रें से सुसज्जित होकर चल रहे थे। ग्यारह रुद्र भी बैलों पर आरूढ़ होकर कुमार के पीछे चल रहे थे। इस प्रकार देव सेना आकाश में तेज गर्जना के साथ चल रही थी। सेना का कोलाहल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में गूंजने लगा। देव सेना के प्रस्थान से उठी हुई धूल आकाश में पहुँचकर बादलों का भ्रम उत्पन्न कर रही थी। देवसेना के प्रस्थान का यह रूप देखकर अमरावती के लोग हर्ष का अनुभव कर रहे थे। इस प्रकार सम्पूर्ण चतुर्दश सर्ग में देव सेना के प्रस्थान का घटाटोप वर्णन है। वीर रस का सुन्दर स्वाभाविक वर्णन दृष्टिगोचर होता है।
Gunjan Kamal
11-Apr-2022 03:58 PM
Very nice
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