प्रश्न
संघर्षों के पथ पर कबतक,
एक अकेला सूरज चलता?
लोग लगे आकाश पूजने,
कबतक केवल सूरज जलता?
एक अकेली धरती कबतक
पाषाणों का भार सहेगी?
एक नदी आखिर कब तक
मरुस्थल को उद्धार करेगी?
एक चांद से आखिर कब तक
रात चांदनी की आएगी?
और अकेली तुलसी कब तक
प्राण वायु को लाएगी?
एक कवि मन आखिर कब तक
प्रश्न करेगा उत्तर देगा?
एक कृष्ण ही आखिर कब तक
द्रौपदीयों का कष्ट हरेगा?
प्रश्नों को मापा तो पाया
झीलों की गहराई में।
किंतु सबने खुशियां ढूंढा
पावक की अंगड़ाई में।
मैं शब्दों का ज्वाल रूप हूं
हर उत्तर में प्रश्न करूंगा?
अगर प्रश्न में हो मादकता
तो उत्तर को व्यंग करूंगा!
दीपक झा "रुद्रा"
Dr. Arpita Agrawal
15-Apr-2022 07:19 AM
शानदार 👌👌
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Seema Priyadarshini sahay
15-Apr-2022 01:32 AM
बहुत खूबसूरत
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राजीव भारती
14-Apr-2022 11:55 PM
सुंदरतम अभिव्यक्ति।
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