काजर की कोठरी--आचार्य देवकीनंदन खत्री
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इस बात का जवाब तो लालसिंह ने कुछ न दिया मगर सूरजसिंह का पंजा, उम्मीद-भरी खुशी और मुहब्बत से पकड़ के बोला, ‘मेरे मेहरबान सूरजसिंह जी! आज आपका आना मेरे लिए बड़ा ही मुबारक हुआ’। यदि आप आकर इन सब भेदों को न खोलते तो न मालूम मेरी क्या अवस्था होती और मेरे नालायक भतीजे किस तरह मेरी हड्डियाँ चबाते।
उड़ती हुई खबरों और भतीजों की रंगीन बातों ने तो मुझे एकदम से उल्लू बना दिया और बेचारे हरनंदन की तरफ से बड़े-बड़े शक मेरे दिल में बैठा दिए, मगर आज आपकी मेहरबानी ने उन स्याह धब्बों को मिटाकर मेरा दिल हरनंदन की तरफ से साफ कर दिया। आज हरनंदन और बाँदी को हाथ में हाथ दिए सरे बाजार टहलता हुआ भी अगर कोई मुझे दिखा दे तो भी मेरे दिल में उसकी तरफ से कोई शक न बैठेगा, हाँ, बेचारी सरला का पता लगना-न-लगना यह आपकी मेहरबानी और मेरे भाग्य के आधीन है।”
सूरजसिंह: बेचारी सरला का पता लगेगा और जरूर लगेगा। हरनंदन ने खुद मुझे अपने बाप के सामने कहा है कि बाँदी ने सरला को दिखा देने का वादा किया है और इस बात का भी निश्चय दिला दिया है कि सरला पारसनाथ के कब्जे में है।
लालसिंह: (चौंककर) पारसनाथ के कब्जे में !!
सूरजसिंह : जी हाँ। इस बात का निश्चय कर लेने के बाद हरनंदन नहीं चाहता था कि बाँदी के घर में कभी पैर रखे, मगर उसके बाप कल्याणसिंह ने उसे बहुत समझाया और बाँदी के साथ चालबाजी करने का रास्ता बताया तथा उस काम में मैंने भी उसे ताकीद की, तब लाचार होकर उसने बाँदी के यहाँ आना-जाना शुरू किया और ऐसा करने के बाद उसे बहुत-सी बातों का पता लगा।
लालसिंह: (कुछ सोचकर) बेशक ऐसा ही होगा, क्योंकि इस काम में पारसनाथ ही मुझसे ज्यादे बातें किया भी करता है।
सूरजसिंह: अगर आप मुनासिब समझें तो वे बातें भी कह सुनावें जो पारसनाथ ने इस विषय में आपसे कही हैं, क्योंकि मैं उन बातों से हरनंदन को होशियार करूँगा और तब वह अपना काम और भी जल्दी तथा खूबसूरती के साथ निकाल सकेगा।
लालसिंह: बेशक मैं उसकी बातें आपको सुनाऊँगा और आपसे राय करूँगा कि अब मुझे क्या करना चाहिए।
इतना कहकर लालसिंह ने पारसनाथ की बिलकुल बातें जो ऊपर के बयानों में लिखी जा चुकी हैं सूरजसिंह से बयान की और इसके बाद पूछा कि ‘अब मुझे क्या करना चाहिए?’
सूरजसिंह: इस बात को तो आप भी समझते होंगे कि रंडियाँ कैसी चालबाज और शैतान होती हैं तथा बड़े-बड़े घरों को थोड़े ही दिनों में बर्बाद कर देने की शक्ति उनमें कितनी ज्यादे होती है, क्योंकि आप अपनी नौजवानी का कुछ हिस्सा इन लोगों की सोहबत में गँवाकर हर तरह से होशियार हो चुके हैं।
लालसिंह: जी हाँ, मैं इन कमबख़्तों की करतूतों से खूब वाकिफ हूँ। ऐसे ही कोई सरस्वती के कृपा-पात्र होते हैं जो इनके फंदे से अपने को बचा ले पाते हैं नहीं तो केवल लक्ष्मी के कृपा-पात्रों को तो वे लोग लक्ष्मी का वाहन ही बनाकर दम लेती हैं। तिसमें भी उन रंडियों से तो ईश्वर ही बचावे तो कोई बच सकता है जिनके यहाँ नायिकाओं1 की प्रधानता बनी हुई हो।
सूरजसिंह: बस तो इसी से आप समझ लीजिए कि बाँदी के यहाँ जब पारसनाथ और हरनंदन दोनों जाते हैं, तो बाँदी इस बात को जरूर चाहेगी कि जहाँ तक हो सके दोनों ही से रुपए वसूल करे, मगर उसे ज्यादे पक्ष उसी का रहेगा जिससे ज्यादे आमदनी की सूरत देखेगी। ..
लालसिंह : बेशक!
सूरजसिंह : अस्तु, जब तक वह पारसनाथ के रुपए वसूल करने का मौका देखेगी, तब तक उसको अपना दुश्मन बनाने में भी जहाँ तक होगा टालमटोल करती ही रहेगी, इसलिए सब के पहिले काम वही करना उचित है, जिसमें पारसनाथ रुपए के बारे में बार-बार बाँदी से झूठा बनता रहे …
लालसिंह: (बात काटकर) ठीक है, ठीक है, मैं आपका मतलब समझ गया, वास्तव में ऐसा होना ही चाहिए। हाँ, मुझे एक और भी बहुत ही जरूरी बात पर आपसे सलाह करनी है।
सूरजसिंह: मुझे भी अभी आपसे बहुत-सी बातें करनी हैं।
इसके बाद सूरजसिंह और लालसिंह में घंटे-भर तक बातचीत होती रही, जिसके अंत में दोनों आदमी एक साथ उठ खड़े हुए। लालसिंह ने अपने दरबारी कपड़े पर से उतारकर पहिरे और हाथ में एक मोटा-सा डंडा लिया, जिसके अंदर गुप्ती बँधी हुई थी, इसके बाद दोनों आदमी कमरे के बाहर निकलकर किसी तरफ को रवाना हो गए।