अनपढ़
अनपढ़
बात कुछ पुरानी है, आज से करीब 40/50 वर्ष पुरानी जब लोग एक दूसरे की जुबान पर बहुत भरोसा किया करते थे।
हरियाणा का एक छोटा सा पर समृद्ध गांव, हरिपुर, ज्यादातर लोग खेती बाड़ी करते थे।
गांव में दो दोस्त थे रामसिंह और किशनचंद्र, दोनो के बीच बहुत गहरी दोस्ती थी, दोनो साथ साथ खाते पीते बड़े हुए, उन दिनों गांव में एक प्राइमरी स्कूल था रामसिंह पढ़ने लिखने में होशियार था तो उसने गांव के स्कूल से पढ़ाई की पर किशन को पढ़ने लिखने में कोई लगाव नहीं था, वो स्कूल जाने के बहाने घर से निकलता और गांव के पास नदी के किनारे समय गुजारता।
समय गुजरता गया रामसिंह ने पास के कस्बे से दसवीं की परीक्षा अच्छे नंबर से पास कर ली पर किशन ने अपना पूरा ध्यान घर की गाय भैंसों की देख रेख़ और खेतों में लगा दिया।
पर समय के साथ दोनो की दोस्ती में कोई फर्क नहीं आया। दोनो की शादी हो चुकी थी और दसवीं के बाद दोनो का गौना भी हो गया, दोनो के घर में उनकी बहुएं भी आ गई। समय के साथ दोनो दोस्तों की मित्रता उनकी पत्नियों की मित्रता में बदल गई।
ईश्वर की कृपा से दोनो की पत्नियां साथ साथ ही गर्भवती भी हो गई, तब दोनो दोस्तों ने अपनी मित्रता को रिश्ते की डोर में मजबूती से बांधने की सोच ली। दोनो परिवारों ने निर्णय लिया की यदि एक के बेटा और दूसरे के घर बेटी ने जन्म लिया तो दोनो को विवाह बंधन में बांध देंगे।
ईश्वर की कृपा से रामसिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और किशन को पुत्री। बच्चों के होने की खुशी के बीच दोनो ने एक दूसरे को वचन दिया कि वो बच्चो के बड़े होते ही उनका विवाह कर देंगे।
समय पंख लगा कर उड़ने लगा और शीघ्र ही रामसिंह का बेटा सूरज शहर पढ़ने चला गया, इधर किशन की बिटिया देवी ने गांव के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करके घर का कार्य संभाल लिया।
फिर जल्द ही सूरज शहर से सनातक होकर लौटा, और शीघ्र ही उसे शहर में एक अच्छी नौकरी भी मिल गई। अब देवी और सूरज दोनो ही 21 वर्ष के हो चले थे। आखिर एक दिन किशन ने रामसिंह को उसका वादा याद दिलाते हुए कहा, अब दोनो बच्चे शादी की उमर के हो चले हैं और सूरज की नौकरी भी लग चुकी है तो अब क्यों न दोनो को शादी के बंधन में बांध दिया जाए।
रामसिंह को अपना वादा याद था, वो तुरंत बोला, हां हां क्यों नहीं, हम कल ही पंडित जी से शुभ महुरत निकलवा लेते हैं फिर सूरज को बुला कर दोनो का विवाह करवा देंगे। मैं सूरज को बुला भेजता हूं, शुभ कार्य में देरी नहीं होनी चाहिए।
अगले ही दिन दोनो दोस्त पंडित जी के पास जाकर शुभ महुरत निकलवा लाए, दोनो परिवारों में खुशी का माहौल था।
पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था, सूरज ने शादी से साफ इंकार कर दिया, उसका कहना था कि वो अनपढ़ देवी को अपना जीवन साथी स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसने अपने साथ पढ़ने वाली एक आधुनिक लड़की को अपना जीवनसाथी बनाने का निश्चय कर लिया है।
उसकी बात सुनते ही रामसिंह गुस्से से झपट कर उस पर टूट पड़ा, पर पिता का गुस्सा, मां का प्यार और कातर देवी और उसके माता पिता की गुहार ने उस पर कोई असर न किया और वो सबको नाराज करके सदा सदा के लिए शहर की ओर चला गया।
रामसिंह ने भी सदा सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लिया।
इधर देवी, ने मन ही मन सूरज का घमंड तोड़ने की दिल में ठान ली। वो रोई नहीं, ना ही उसने आत्महत्या करने की सोची। उसने एक बार फिर से पढ़ाई करने का पक्का इरादा ठान कर पत्राचार द्वारा 8वी फिर 10वी की परीक्षा दी और अच्छे नंबरों से परीक्षा उत्तीर्ण भी की।
समय धीरे धीरे अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, कुछ ही समय में देवी ने स्नातक और स्नातकोत्तर परीक्षा भी अच्छे नंबरों से पास कर ली।
आज दस साल बाद देवी की मेहनत और लगन की बदौलत उसके गांव और आसपास के सभी गांव में कोई भी कन्या अनपढ़ नहीं है।
देवी ने सारी उमर किसी से शादी नहीं की और उसने अपना सारा जीवन शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगा दिया ताकि कल कोई और सूरज किसी दूसरी देवी को दुख के अंधियारों में धकेल कर न जा सके।
समाप्त
आभार – नवीन पहल – १८.०४.२०२२ 🙏🙏
# प्रतियोगिता हेतु
Abhinav ji
19-Apr-2022 09:03 AM
Nice👍
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Gunjan Kamal
19-Apr-2022 12:07 AM
बहुत सुंदर कहानी
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