Ahmed Alvi

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19-Apr-2022 لیکھنی پیروڈی ساحر لدھیانوی

साहिर को समर्पित

मेरे बच्चे जो हैं छ सात किसे पेश करूं।
ये बुढ़ापे की खुराफात किसे पेश करूं।।

तेरे अब्बा तो मेरी बात समझ लेते हैं।
तेरी अम्मी के ख्यालात किसे पेश करुं।।

ये खरीदे हुए अशआर नशिसतों में पढूं।
ये चुराये हुए नग़मात किसे पेश करूं।।

एक कल सीधी नहीं ऊंट की सूरत जिस की।
सास ने दी है जो सौगात किसे पेश करूं।।

सारा दिन आती नहीं कोई पड़ोसन छत पर।
इश्क़ की गर्मी ए जज़्बात किसे पेश करूं।। 

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2 Comments

Amir

21-Apr-2022 04:57 PM

bahut khub

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Fareha Sameen

20-Apr-2022 07:31 PM

Nice

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