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गुरुर

गुलाब के पौधे के शाख पर एक गुलाब था ,वह आकर्षित करने वाली सुंदरता और मुग्ध करने वाली महक से परिपूर्ण था।भला जिसके पास इतना सब कुछ हो और गुरुर ना हो..? गुलाब मे भी मगरूरी थी 
                 मगर उसी शाख पर एक कांटा भी था जो गुलाब की येश्वर्य पर दाग था और गुलाब को इस बात को बेहद मलाल था। 
              एक बार एक तितली गुलाब पर मुग्ध हो गई ... उसने अपना प्रेम प्रस्ताव गुलाब के समक्ष रक्खी।पर गुलाब पर प्रेम ना हावी होकर मगरुरता हावी हो गई ।वह बोला मै तब तक तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता जब तक कांटा समाप्त नहीं हो जाता।
                  तितली निराश होकर प्रतीक्षा करने लगी ,....समय ढलता गया पर कुछ बदलाव नहीं हुआ।ना गुलाब मै और ना ही कांटा में ।लम्बे समय के इंतजार के बाद तितली सब्र की दामन छोड़ दी और निश्चय कि क्यों ना खुद को कांटो पर रगड़ कर कांटो को समाप्त कर दूं ...उसने एसा ही किया ....और हुआ भी ऐसा,कांटा समाप्त हो गया। पर जब गुलाब की आंखे खुली तब तक तितली की आंखे बंद हो चुकी थी ....l 


राघवेन्द्र मिश्रा

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2 Comments

🤫

04-Jul-2021 12:55 PM

बहुत बढ़िया...!!

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बढ़िया

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