कौन है वो
कौन है वो
सुधा का नौवां महीना चल रहा है, घर में सास ससुर देवर और पति सब को बेसब्री से इंतजार है। सबको आशा है सुधा इस घर का चिराग लेकर आएगी।
सुधा, 32 बरस की हो चुकी है, शादी हुए 8 बरस हो गए हैं पर हर बार कुछ ही दिनों बाद गर्भ खुद ही गिर जाता। बहुत से डॉक्टर, वैद, हकीम इत्यादि से इलाज करवाया तब कहीं जाकर समस्या का निदान हुआ।
सास ससुर को बडी लालसा है अपना पोता खिलाने की। सुधा के पति रामेश्वर जी भी दिल ही दिल बेटे का इंतजार कर रहे हैं।
सुधा को चिंता है तो बस इस बात की कहीं गलती से लड़की पैदा हुई तो घर वाले ना जाने कैसे लेंगे।
खैर जो होगा सो होगा इसमें सुधा भी क्या कर सकती है, उसे तो अपने गर्भ की ही चिंता सबसे ज्यादा है, ईश्वर का धन्यवाद यही है कि इस बार गर्भ पतन नही हुआ। हर एक कदम संभाल के रखती, डॉक्टर की सलाह का अक्षरश पालन करते करते और ईश्वर का धन्यवाद देते हुए आखिर अब उसे लगने लगा है की उसकी सूनी गोद भर ही जायेगी।
जैसे जैसे प्रसव का समय नजदीक आता जा रहा था, परिवार में सबका ध्यान होने वाले बच्चे की तरफ ही था, सास ने आस पास के सारे मंदिरों की चोखट पर माथा रगड़ कर कितने ही गंडे ताबीज सुधा को पहना दिए थे। अब तो उन्हें पूरा ही यकीन था की कुछ ही दिनों में उनका पोता उनकी गोद में खेलने लगेगा।
राम राम करते वो दिन भी आ पहुंचा जब सुधा को प्रसव पीड़ा होनी शुरू हो गई, रामेश्वर जी फौरन टैक्सी लेकर सुधा को हॉस्पिटल लेकर पहुंच गए।
इधर सास ने ईश्वर के नाम का अखंड पाठ करना शुरू कर दिया, ससुर जी भी उत्सुकता से इंतजार करने लगे, और रामेश्वर जी का छोटा भाई दुकान बंद करके सीधा हॉस्पिटल आ पहुंचा।
अरे ..... अरे.... क्षमा कीजिए पहले कहानी के पात्रों का परिचय तो करवा दूं।
जी, तो ये कहानी है एक साधारण सी लड़की की, वही जो सुधा की कोख की पहली संतान बनेगी।
रामेश्वर जी और सुधा एक मध्यम वर्गीय परिवार के सदस्य हैं।
भरा पूरा परिवार है, घर में पिता जी, माता जी, छोटा भाई और दो ननदें हैं जो विवाह करके अपने अपने घर बसा चुकी हैं, बस गाहे बगाहे, तीज त्योहार पर माता पिता से मिलने आ जाती हैं और भाभी को दुनियादारी की कुछ बातें सुना जाती हैं।
सुधा एक अनाथ है, जिसके रिश्तेदारों ने बमुश्किल उसका विवाह उससे 10 वर्ष बड़े, विधुर रामेश्वर जी से करवा कर अपने हाथ झाड़ लिए। सुधा वैसे तो गृह कार्य में बहुत कुशल है पर दान दहेज न मिलने से सास खुश नहीं थी उसपर सुधा के मां ना बन सकने का दुख उन्हे हमेशा सताता रहता।
रामेश्वर जी और सोमेश्वर दोनो भाई मिल कर पिता की छोटी सी किराने की दुकान संभालते हैं। रामेश्वर जी सिर्फ दसवीं पास है, जबकि सोमेश्वर 12 जमात पास करके घर का सबसे पढ़ा लिखा सदस्य बन चुका है। छोटा शहर है, खुद का मकान है तो गुजर बसर आराम से हो जाती है।
चलिए, वापस कहानी को आगे बढ़ाते हैं, हां तो सुधा कस्बे के सरकारी अस्पताल में भर्ती हो चुकी है, और प्रसव वेदना चरम पर है।
बाहर रामेश्वर जी और सोमेश्वर खुशखबरी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
खैर साहब, कुछ ही घंटों में नर्स ने आकर रामेश्वर जी को खबर सुना ही दी, मुबारक हो आपके घर लक्ष्मी आई है।
खबर सुनते ही दोनो भाइयों को मानो लकवा मार गया.... क्या लड़की पैदा हुई है......दोनो एक साथ ऐसे बोले जैसे लड़की पैदा नही हुई आसमान से बिजली गिरी हो।
दोनो भाइयों के चेहरे के उड़े हुए भाव देखकर, नर्स की इनाम पाने की लालसा असमय ही दम तोड गई.....
हां, लड़की ही जनी है आपकी पत्नी ने, जाइए जाकर मिल लीजिए, जच्चा बच्चा दोनों ही वार्ड में आ चुके हैं, कह कर नर्स अपना कसैला मुंह लेकर होंठ बिचकाती हुई उल्टे पांव वापस चली गई।
हम्म् , रामेश्वर जी ने एक लंबी सांस भरी.... सुन सोमेश तू जाकर मां बाऊ जी को खबर दे.... मैं सुधा को देख कर आता हूं, कह कर भारी कदमों से रामेश्वर जी वार्ड की तरफ चल दिए।
सोमेश, भी झुके कंधों के साथ घर की तरफ निकल गया, उसे समझ नही आ रहा था ये खबर मां बाऊ जी को कैसे देगा।
वार्ड में पहुंच कर रामेश्वर जी ने एक उड़ती सी नजर नवजात शिशु पर डाली फिर अपनी पत्नी को देखा जो प्रसव वेदना के बाद थक कर निढाल सी सो रही थी और दबे पांव वापस बाहर निकल कर आ गए।
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – २३.०४.२०२२ 🙏🏻🙏🏻😀😀
# नॉन स्टॉप 2022
shweta soni
18-Jul-2022 12:26 AM
Nice 👍
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𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
09-May-2022 05:02 PM
बहुत खूब 👌👌 गजब। 😁 इंट्रेस्टिंग धारावाहिक है। पहले ही भाग में हर चीज का बहुत बारीकी से ध्यान रखकर लिखा है आपने। 👏👏 चाहे पात्रों के डायलॉगस हो, या परिस्थिति, उनके सोच, उनकी उम्मीदें, उनके व्यवहार, उनके टूटते सपने 🤣🤣 सबका जिक्र अत्यंत शानदार है। 😍 बस ये जमात और उड़ती सी नजर का मतलब बता दीजियेगा।
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Shrishti pandey
01-May-2022 09:52 PM
Nice part
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