तू चल!
तू चल!
ऊँचे ऊँचे से पहाड़ो पे
जैसे कोई कंटीली डगर हो
चलते हुए बेरहम ठोकरों से
लहूलुहान कदम अगर हो।
उठते-सम्भलते फिर गिर-गिराके
बढ़ना है आगे को
इन आसमाँ कितने सितारे
गिनना है आज इनको।
तो मुस्कुराके बढ़ जा न आगे
कौन रोकेगा तेरे निशानों को
जा घर बना दे, फिर से बसा दे
इन उजड़े हुए आशियानों को।
माना कि होता है दर्द काफी
चोट लगती है जब दिल पे कही
माना कि जख्मी है, थोड़ा तू
छलाँग लगा, अब न कर कदम पीछे यूंही।
एक दिन आसमाँ में देख लेना
तारे झुकेंगे तुझे सलाम करने को
अपना हौसला न खोने देना
लाखो सूरज मिलेंगे तुझसे जलने को।
अरे बढ़ जा ना आगे, क्यों ऐसे रुका है?
हर एक कदम पर, क्यों तू ही झुका है?
मंजिल भी मिलने को बेकरार है तुझसे
चल अब बाकी यहां क्या है रुकने को
मुस्कुराकर भूला दे, ये दर्द सारा
अब रुत भी तैयार है जख्म भरने को।
गिरते-सम्भलते फिर गिर-गिराके
आंसू भी पोंछें और मुस्कुरा के
बेसब्र है राहें अब चलने को
मंजिल झुकी है, थम गई, रुकी है
तेरी फतह अब हो ही चुकी है
आसमाँ झुका है सलाम करने को।
#MJ
मनोज कुमार "MJ"©
ऋषभ दिव्येन्द्र
05-Jul-2021 07:20 PM
बहुत अच्छे बन्धु 👌👌
Reply
मनोज कुमार "MJ"
06-Jul-2021 08:03 AM
Dhanyawad
Reply
Niraj Pandey
04-Jul-2021 04:13 PM
वाह बहुत खूब👌
Reply
मनोज कुमार "MJ"
04-Jul-2021 04:46 PM
Shukriya aapka
Reply
Kumawat Meenakshi Meera
04-Jul-2021 03:04 PM
बेहद खूबसूरती से लिखते हो ,wah
Reply
मनोज कुमार "MJ"
04-Jul-2021 04:46 PM
Bahut shukriya ma'am
Reply