कौन है वो–२

कौन है वो


गतांक से आगे:
पालने में लेटी अबोध बालिका, दीन दुनिया से बेखबर सो रही थी। उसे क्या मालूम उसने आते ही अपने परिवार में कैसी खलबली मचा दी। श्याम वर्ण की कृशकाय सी वो बालिका अभी ये भी नही जान पाई थी कि कौन उसकी माता है, कौन उसका पिता, और कौन उसके सगे संबंधी।
उसे तो अभी प्यार, नफरत, घृणा, स्नेह इन सब भावों का कुछ भान भी नही था। अभी तो उसने अपनी आंखें खोल कर भी दुनिया को ठीक से देखा ही ना था।
सुधा, उसकी मां, के लिए तो वो साक्षात देवी का स्वरूप थी, उसकी अनथक पूजा का एक अनोखा वरदान, उसकी सूनी गोद को हरा भरा करके खिलने वाला एक पुष्प और न जाने क्या क्या। जब एक मां किसी अबोध बच्चे को नौ महीने कोख में पालती है और असहय पीड़ा उठा कर उसे इस दुनिया में लाती है तो उसके लिए बालक और बालिका का भेद समाप्त हो जाता है।
एक नया रिश्ता जुड़ता है मातृत्व का, माता और संतान का। उसके हृदय से उसके उद्गार स्नेह की धारा बन कर अपने रक्त को दूध में बदल देते हैं। जब जब वह अपने शिशु को स्तनपान कराती है साथ साथ अपना एक अटूट बंधन बनाती चली जाती है।
पर बाकी का संसार ये सब नहीं देख पाता। उन्हें केवल दिखाई देता है तो केवल बालक या फिर बालिका।
बालक यानी कुल का संचार, बालिका यानी खर्चों का आधार। बस इसी संकीर्ण और कुंठित सोच के साथ ही रहता था रामेश्वर जी और उनका पूरा परिवार।
सोमेश ने जैसे ही घर जा कर बेटी के जन्म की खबर सबसे सांझा की मानो असमय ही काले काले बादल घिर आए।
उसकी माता जी तो एक दम सकते में आ गई, उन्होंने तुरंत रोते रोते सुधा और अपनी फूटी किस्मत को कोसना प्रारंभ कर दिया।
ना जाने किस मनहूस घड़ी में इस करमजली को बहु बना कर लाए थे। एक तो दान दहेज के नाम पर ठेंगा दिखा दिया इसके रिश्तेदारों ने फिर लाखों फूंक दिए इस बांझ की गोद हरी करने में और अब जब पैदा करने का नंबर आया तो कुलक्षणी अपने ही जैसी एक और ले आई हमारी छाती पर मूंग दलने को, जाने किस जन्म की सजा भगवान हमें दे रहा है, वो रोते रोते बड़बड़ाती जा रही थी।
उधर सोमेश और उसके पिता मुंह लटका कर बैठे थे मानो लड्डू की जगह किसी ने ढेर सारी कुनेन की गोलियां उनके मुंह में जबरदस्ती घुसेड़ दी हों।
जब बहुत देर तक माताजी का रोना कोसना बदस्तूर चलता रहा तो उसके पति ने जोर देकर कहा, अब बस भी करो, कोई मर नही गया है। शुक्र मनाओ बहु ने बच्ची को जन्म तो दिया है, वरना तो कितने बरसों से किसी बच्चे की किलकारी सुनने को कान तरस गए थे।
और सुनो, रामेश्वर के सामने अपना दुखड़ा लेकर मत बैठ जाना, बेचारा वैसे ही दुखी होगा, तुमको रोते बिलखते देखेगा तो और टूट जायेगा।
जग दिखाई के लिए ही सही चुप हो जाओ और बहु के लिए कुछ हरीरा, पंजीरी और सोंठ के लड्डू बना दो, उसके बहाने हमको भी कुछ अच्छा खाने को मिल जायेगा, कह कर वो चुप हो गए।
हां..... हां.... मैं ही खटती रहूं तुम्हारी महारानी बहु के लिए, ये बनाओ, वो बनाओ, नौ महीने से कर रही हूं सेवा उसकी और बदले में मिला क्या.... लौंडिया, मुंह बिचका कर सुधा की सास बोली,
अरे अभी तो मोहल्ले वालों को नही पता, पता चलते ही सब मुंह उठा कर चले आयेंगे।
सुनो, जग हंसाई से बचने के लिए कुछ जेब ढीली करो, सोमू को भेज कर कुछ 2/4 किलो लड्डू मंगवा लो और सब लोग अपनी शकल सूरत ठीक कर लो, वरना लोग क्या कहेंगे।
तो इस तरह परिवार के लोग खुद को हमारी नायिका के स्वागत के लिए तैयार कर रहे थे।
शाम होते होते तक पूरे मोहल्ले को खबर हो गई की सुधा मां बन गई है और उसने एक कन्या को जन्म दिया है। सब लोग रामेश्वर और पूरे परिवार को बधाई देने आने लगे, लड्डुओं के स्वाद के बीच बीच में आस पड़ोस की महिलाएं बधाई के साथ साथ बहुत सी चाही अनचाही सलाहें भी सरका रहीं थी।
पहला बच्चा है, लक्ष्मी आई है, दान दहेज तैयार करना शुरू कर दो, हवन कब करोगी, नामकरण छठी का क्या विचार है, बहु की और बच्चे की नजर जरूर उतारते रहना, उपरी हवा का साया पड़ जाता है, बहु को अच्छे से खिलाना पिलाना, मां का खाया पिया ही बच्चे को लगता है, हाय दैय्या, इतने साल बाद भी लड़की........
कुल मिलाकर हर कोई रामेश्वर, सोमेश, उसके माता पिता को अपने ज्ञान और विवेक से आत्म विभोर कर रहा था, अपना पड़ोसी धर्म निभा रहा था, और बाहर जा कर रस ले लेकर दूसरों को अंदर के ताजा समाचार बता रहा था।
जितने मुंह उतनी बातें.....
शकल देखी, कैसे बारह बजे हुए थे....
अरे इतने सालों बाद प्रभु ने सुनी तो सही....
शुक्र मनाओ बहु ने बच्ची को जन्म तो दिया, वरना तो  बेऔलाद ही रह जाता......
अब मालूम होगा आटे दाल का भाव बच्चू को.... इत्यादि इत्यादि
खैर साहब 2 दिन बाद सुधा नवजात को लेकर घर वापस आ गई, सास ने पूरे रस्मों रिवाज से उसका स्वागत तो किया पर उसमे उत्साह कम और औपचारिकता साफ नजर आ रही थी।
सुधा जानती थी वो अपने पति और ससुराल वालों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी है, पर करती भी तो क्या....??
बच्ची को देख कर घरवालों का मुंह और ज्यादा बिसूर गया।
ना ढंग की सूरत, तवे सा गहरा रंग, और एक दम मरगिल्ली सी लौंडिया जनी है इसने तो, सास ने जाते जाते धीरे से कह भी दिया, हालांकि इतना धीरे भी नही की सुधा सुन न सके।
6 दिन बाद एक सादे से समारोह में कुछ खास लोगों की उपस्थिति में छठी भी मना ली गई, दोनो बुआएं भी बुलाई गई और उन्हें भी बच्ची कुछ गले से नीचे नहीं उतरी।
पर हमे क्या लेना, भैय्या जाने उनका काम कह कर दोनो ने अपनी खुशी का इजहार भी कर दिया।
पूरे परिवार में केवल सुधा ही एक ऐसी थी जिसे अपनी बेटी मालती, हां, बताना भूल गया था यही नाम रखा गया हमारी नायिका का, से प्यार या यूं कहें लगाव था।
बाकी सब अपनी अपनी भूमिका बस निभा भर रहे थे।
तो ऐसे शुरू हुआ हमारी मालती का जीवन सफर......।।

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – २३.०४.२०२२ 💐💐🙏🏻🌹

# नॉन स्टॉप 2022


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8 Comments

Haaya meer

10-May-2022 06:27 PM

Amazing

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Neha syed

10-May-2022 11:34 AM

Very nice

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वाह👏 बहुत खूब। देखते है अब आगे क्या होगा। जले पर नमक छोड़कना हो तो कोई दादा जी से seekhe🤣🤣

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