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वो सात दिन

वो सात दिन!



वक़्त थम सा गया था, जैसे अब वक्त ही छाती पर बोझ बनने लगा था, साँसे रुकने लगीं थी। एक के बाद एक रहस्यमयी तरीके से हो रहीं मौतों ने मुंबई की गलियों को वीरान कर दिया था। रात में भी दिन की तरह शोरगुल मचाने वाला यह शहर अब दिन में भी बाहर निकलने से कतराने लगा था। चारों ओर घना सन्नाटा फैला हुआ था, पिछले दो-तीन दिन से लगातार रहस्यमयी घटनाएं हो रहीं थी, राज्य के गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर सहित अन्य कई लोगों की हत्या से पुलिस भी बौखलाई हुई थी। लोग तरह तरह की धारणाएं बनाने लगे थे, ज्योतिष तो अगले चार-पांच दिनों में दुनिया के अंत की घोषणा कर चुके थे, बार बार टीवी पर भी ऐलान होता रहता था कि घर से बाहर न निकलें, जब मुम्बई जैसे हाई अलर्ट और हाई सिक्योर्ड शहर में ऐसा हो रहा था तो बाकी देश में क्यों नहीं!


इसका लाभ छोटे-मोटे अपराधियों ने भी खूब उठाया था, अब उन्हें बैंक जाकर लूटने से रोकने वाला कोई नहीं था, पुलिस हर जगह नहीं हो सकते थे मगर चोर लुटेरे हर जगह थे। मगर सामान्य लोगो को इससे कोई जैसे मतलब नहीं था, वो अपने आखिरी पलों को बड़े सुकूँ से जीना चाहते थे।

दरअसल ऐसा तब हुआ जब एक रहस्यमयी शख्स ने गृहमंत्री जी को आने वाली मृत्यु से सचेत किया, वह स्वयं को ईश्वर का दूत कहता था। मगर गृहमंत्री नास्तिक थे इसलिए  उन्होंने उसकी पर ध्यान तक नहीं दिया, उसी शख्स ने कमिश्नर को भी उनके शहर में होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वसूचना दी मगर कमिश्नर ने उसकी बात को किसी पागल की कोरी गप्प मानकर धक्का देकर बाहर निकलवा दिया। तभी उसने भविष्यवाणी किया कि आने वाले सात दिनों में ये सम्पूर्ण पृथ्वी प्रलय में डूब जाएगी, कोई नहीं बचेगा। तब से हरेक भविष्यवक्ता उसी के शब्द दुहराकर स्वयं में बहुत बड़ा ज्योतिष समझने लगा था। हालांकि कमिश्नर की मृत्यु के बाद पुलिस ने उसकी बहुत तलाश की मगर अब तो वह ऐसे गायब हो गायब हो गया था, जैसे गधे के सिर से सिंग!


हालात ऐसे थे कि लोग बीमार की भांति अपने घर में पड़े रहते, उनके पड़ोस में भी कुछ होता तो उसपर जरा सा भी ध्यान न देते, इंसानियत पूरी तरह मर चुकी थी, डर ने अंदर के इंसान को मार डाला था, अब जिस्म को बस साँस लेना बंद करना था। एक-एक दिन सदियों की तरह गुजर रहे थे, लग रहा था जैसे प्रलय के आने से पहले ही दुनिया सूनी हो गई, डर एक ऐसा चीज है जो सोचने समझने की शक्ति को खत्म कर देता है। 

 

चारों तरफ कर्फ्यू लगा हुआ था, डर के मारे लोग अपनी खिड़कियां तक नहीं खोल रहे थे, इस समय आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगो की मौज थी, उन्हें किसी भी चीज का कोई डर, कोई चिंता न थी, वे मरते वक्त भी अपनी जेबें भरना चाहते थे। पुलिस बार बार बुरी तरह नाकाम हो रही थी, जैसे उन सभी को कोई पहले ही पुलिस के आने की खबर दे देता था। हरेक पुलिसकर्मी अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाकर अपना फर्ज निभा रहा था मगर हालात अब भी वहीं ढाक के तीन पात ही थे।



छठा दिन भी बीत गया, धड़कने इतनी तेज हो गईं कि कमरे की दीवारें भी उसे दोहराने लगीं। अब तक किसी नहीं पता था कि इस दुनिया का अंत कैसे होगा, NASA जैसे एजेंसीज भी यह पता लगा सकने में नाकाम हो रहीं थी। बार-बार जारी किये जा रहे अलर्ट लोगों को अपने सिर से बाल नोंचने पर मजबूर कर रहे थे।

सातवें दिन की शाम हो गई, अब तक न उल्का गिरा, न भूकम्प आया, न ज्वालामुखी फटा, न ही कोई न्यूक्लियर वेपन इस्तेमाल किया गया, धीरे-धीरे डर का साया छिटने लगा, लोग इसे कोरी गप्प मानने लगें थे।


अचानक ही जोर जोर से बादल गरजने लगें, मगर ये बादल सामान्य न थे, इनका रंग पीला था और इनकी पूर्वसूचना मौसम विज्ञानियों के पास भी न थी। आसमान से रिमझिम पीली बूंदे बरसनी शुरू हुईं, एक लड़की ने पानी को देखने के लिए खिड़की से अपना हाथ बाहर निकाला। मगर वह पानी नहीं था, जैसे ही बूंदे उसके हाथ पर पड़ी, उसका हाथ मोम की भांति पिघलने लगा। न्यूज़ में सभी को बार-बार इस पानी से बचने को कहा जा रहा था, अचानक टीवी की ब्रॉडकास्टिंग भी रुक गयी क्योंकि उस खतरनाक एसिड ने बिजली और संचार व्यवस्था के साधनों को गला दिया था।

इतनी जोर से बारिश हो रही थी कि रातभर में सबकुछ डूब जाता, घने अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, मौत के सिवा! लोग उस 'ईश्वर के दूत' को अपनी मदद के लिए पुकारने लगें मगर वह नहीं आया। आखिर मानव की आधुनिकता ने उसे पतन का मार्ग प्रशस्त कर ही दिया।


रात बीत गयी, किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि वह जीवित हैं। गलियों से वह अम्लीय जल हटाया जा चुका था, मुम्बई की सबसे ऊँची बिल्डिंग से लाउडस्पीकर पर कोई संदेश दिया जा रहा था।

"अब आप लोगों को घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी। दरअसल यह कथित 'ईश्वर के दूत' की चाल थी। उसने दुनिया के हर छोटे-बड़े अपराधी संगठन के साथ मिलकर अपने इस घिनौने प्लान को अंजाम दिया। हमारी पुलिस ने दिनरात मेहनत करके आखिरकार उस भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये को पकड़ ही लिया, आपको जानकर हैरानी होगी कि ये शख्स जो अपने आप को ईश्वर का दूत कहता था वह आपके ही राज्य का मुख्यमंत्री है!" लाउडस्पीकर से स्वर गूंज रहा था, पूरे शहर में लाउडस्पीकर्स की कतार लगी हुई थी।

"इसने अपने पद का लाभ उठाते हुए गृहमंत्री और कमिश्नर साहेब को मरवा दिया, सेंट्रल जेल से सभी कैदी भगा दिए और बादलों पर रिसर्च कर रहे सबसे बड़े वैज्ञानिक रवि गोयल के परिवार को अपने कब्जे में कर वह फार्मूला हासिल कर लिया जिससे सामान्य जल में एसिड की मात्रा को बढ़ाया जाता है। इन्होंने ये डर का माहौल बनाया ताकि लोग मौत से डरकर बाहर न निकलें और इनके साथी खूब मजे से लूटपाट कर सकें। मगर हमारे जाबांज इंस्पेक्टर प्रणव ने अपनी जान पर खेलकर इनके इस खूंखार मिशन को पूरा होने से पहले ही रोक दिया। दुनिया अब सुरक्षित है!" 


"हम जानते हैं इससे सारी दुनिया को बहुत क्षति पहुंची है, और उम्मीद है कि दुनिया की सारी सरकारें मिलकर काम करेंगी और आगे भी ऐसे किसी भी मंशा वाले व्यक्ति को नाकाम किया जा सकेगा। ये बीते सात दिन हम सबके लिए एक बुरे सपने जैसी हैं, पर अब सब ठीक हो जाएगा। हम मुख्यमंत्री जी की मदद से सभी को पकड़ने की कोशिश करेंगे। ताकि जान माल की जो हानि हुई है उसकी भरपाई की जा सके। 

हमारे देश को प्रणव जैसे बहादुर युवकों की जरूरत है, जो साक्षात मौत के सामने भी अपना फर्ज निभाते रहें और असलियत को सामने खींच लाये! आगे की बात आपसे प्रधानमंत्री जी एवं देश के गृहमंत्री जी करेंगे, जैसे ही संचार और बिजली व्यवस्था सही होगी वे आपसे जुड़ेंगे। कृपया धैर्य रखें और अपने घर जाएं।

जय हिंद!"


सभी के चेहरों पर संतोष था, सभी ने पिछले सात दिनों में बहुत कुछ खोया था मगर अब पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं था। अब भी दिल बुरी तरह सिहर जाता है जब भी याद आते हैं वे सात दिन!


#MJ
©मनोज कुमार "MJ"

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16 Comments

Aliya khan

07-Jul-2021 07:44 AM

Badiy

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Thanks

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Vfyjgxbvxfg

06-Jul-2021 07:22 PM

बहुत बढ़िया स्टोरी मनोज भाई

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Thanks

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बहुत बढ़िया कहानी

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Shukriya jii

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