लेखनी प्रतियोगिता -29-Apr-2022 कोर्टरूम
शीर्षक = कोर्टरूम
"आज तुम देखना मैं कैसे अपने बेटे आरुष को तुमसे लेती हूँ। कानून की मदद से जब तुम ये केस हार जाओगे तब देखना । मेने सबसे महंगा और सबसे अच्छा वकील किया है । अपने बेटे की कस्टडी अपने हाथ में लेने के लिए । बस आज ये फैसला हो जाए तो मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखूंगी। पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब 14 साल पहले मेने तुमसे शादी की थी । आज तक उसकी सजा भुगत रही हूँ, तलाक तो मिल गयी तुमसे बस अपना बेटा और हासिल कर लू । उसके बाद तुम मर भी रहे होगे तब भी तुम्हारी शक्ल देखने भारत नहीं आउंगी " सुधा ने कोर्ट की सीड़िया चढ़ते हुए अपने पति अनुभव जिससे अब उसने तलाक ले ली है कहाँ।
" हाँ, हाँ देख लेंगे कानून किस को आरुष की कस्टडी देता है । अगर तुमने अच्छा वकील किया है तो मेने भी उससे अच्छा वकील किया है अपने बेटे को अपने पास रखने के लिए । तुम चाह कर भी उसे मुझसे दूर नहीं ले जा सकती । कानून को जब पता चलेगा की तुम्हारा अफेयर किसी और के साथ चल रहा है तब वो तुम्हे मेरा बच्चा रखने की इज़ाज़त हरगिज़ नहीं देगा " अनुभव ने कहा
" अच्छा, अगर मेरा किसी के साथ अफेयर चल रहा है तो ये सब तलाक के बाद हुआ है , और तुम्हारी अपने बारे में क्या राय है मिस्टर अभिनव दयाल तुम तो शादी के पवित्र बंधन में बंधे होने के बावज़ूद अपनी ही ऑफिस की सेक्रेटरी के साथ रिलेशन में थे । जब अदालत को इस बारे में पता चलेगा तब क्या होगा सोचा है " सुधा ने कहा
" तुम्हारी वजह से मुझे किसी और के नज़दीक जाना पड़ा , सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी वजह से अगर तुम अपना पत्नि धर्म सही से निभाती तो आज हम यहाँ इस कोर्ट के बाहर खड़े होकर अपने बेटे को अपने पास रखने के लिए लड़ नहीं रहे होते। लेकिन तुम्हे तो मालूम ही नहीं था कि एक पत्नि का अपने पति के प्रति क्या कर्तव्य होता है तुम्हे तो बस शॉपिंग, किटी पार्टीज और अपने करियर और मोबाइल से प्यार था इन्ही में 24 घंटे लगी रहती थी " अभिनव ने कोर्टरूम के बाहर खड़ी सुधा से कहा
" अच्छा जी, सब कुछ मेरे ही मत्थे मड़ दो। और तुम, तुम तो जैसे गंगा की तरह पवित्र हो तुममें तो कुछ खामिया है ही नहीं। इन 14 सालो में एक भी रात ऐसी नहीं गयी की जब तुम दफ़्तर से आये हो और तुमने मेरे साथ लड़ाई नहीं की हो, दिन भर की ऑफिस की थकान तुम मुझसे लड़ाई कर के उतारते थे । क्यूंकि ऑफिस में बॉस से तो लड़ नहीं सकते थे । और उसके बाद लैपटॉप पर बैठ कर ना जाने किससे रात रात भर बाते करते थे हस हस कर " सुधा ने कहा
" वो क्लाइंट होते थे , जिनसे में ऑफिस की डील किया करता था क्यूंकि जब हमारे यहाँ रात होती थी तब उनके यहाँ दिन होता था इसी लिए मुझे रात को उनके साथ बात करना होती थी " अभिनव ने कहा
" झूठ मत बोलो, शादी के कुछ साल बाद ही तुमसे मेरा दिल भर गया था और तुमने अपने ही ऑफिस में काम करने वाली एक कुलीग के साथ अफेयर चलाने लगे थे और उसी के साथ मिलकर तुमने अब ये अपना बिज़नेस शुरू किया है और उसे अपनी सेक्रेटरी बना रखा है क्यूंकि वो तुम्हारे काले कारनामो की वाहिद गवाह जो है " सुधा ने कहा
तभी अभिनव को गुस्सा आया और उसने तमाचा मारने के लिए अपना हाथ उठाया लेकिन सुधा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली " मैं अब तुम्हारी गुलाम नहीं हूँ जिसको जब चाहा मार लिया, अब आयींदा अगर ये हाथ मुझ पर उठा तो या तो ये हाथ तोड़ दूँगी या फिर तुम्हे ज़िन्दगी भर के लिए जैल की सलाखों के पीछे बंद करवा दूँगी फिर पीसते रहना वहा पर चक्की "
ये सब 13 साल का आरुष अपनी नेनी ( बच्चों को पालने वाली ) मारथा के साथ खड़ा देख रहा था ।
सुधा की नज़र आरुष पर गयी तब उसने अभिनव का हाथ झटटक कर छोड़ा और आरुष आरुष कहती हुयी उसकी तरफ दौड़ी। आरुष जो उदास चेहरा लिए अपनी नेनी के साथ कोर्ट रूम के अंदर चला गया बिना वहा रुके।
अभिनव भी उसके पीछे दौड़ा लेकिन वो उनसे बिना मिले ही कोर्टरूम के अंदर चला गया ।
" आह अभिनव आह , पता नहीं मुझे किया हुआ था जो तुम जैसे इंसान से मेने शादी की थी । तुम्हारी वजह से आज मेरा बेटा मुझसे दूर हो गया " सुधा ने गुस्से में कहा।
" मैं भी तुम्हारे बारे में यही राय रखता हूँ सुधा मैडम, ना जाने कौन सा बुरा मुहूर्त था जब मेने तुम्हे शादी के लिए प्रोपोज़ किया था नहीं जानता था की तुम एक गुस्सैल, खुदगर्ज़ और अपने आप मे जीने वाली लड़की हो जिसे अपना करियर , अपनी दोस्ते अपनी शॉपिंग सबसे ज्यादा प्यारी थी जिसने कभी घर को घर बनाने की कोशिश ही नहीं की। उन्ही चारदीवारी में 14 साल गुज़ार दिए और अब तलाक ले ली " अभिनव ने गुस्से में उसकी आँखों में आँखे डालकर कहाँ।
" घर को घर बनाने के लिए पति पत्नि दोनों को साथ देना पड़ता है तब जाकर मकान घर बनता है । लेकिन तुमतो सब कुछ मुझसे ही करवाना चाहते थे । " सुधा ने कहा
"तुम पढ़ी लिखी लड़कियों की यही सब से बड़ी परेशानी है की वो चार किताबें पढ़ कर अपना पत्नि धर्म निभाना भूल जाती है " अभिनव ने कहा
" तुम आदमियों की गुलामी करती रहे सारी ज़िन्दगी कहाँ जाना है , क्या पहनना है , क्या खाना है , किससे मिलना है ,कब उठना है , मायके कब जाना है और ससुराल कब आना है तुम्हारी पसंद के खाने बनाते रहना है नौकरो की तरह " सुधा ने कहा
" जिसे तुम गुलामी कह रही हो ये एक पत्नि का धर्म है जो उसे एक भारतीय सभ्यता के अनुरूप उसे ये सब करने की अनुमति देता है लेकिन तुम कहा भारतीय सभीयता को समझोगी तुम तो आज कल की पढ़ी लिखी लड़की हो " अभिनव ने कहा
" अच्छा भारतीय सभीयता के अनुरूप सिर्फ पत्नियों को ढलने की अनुमति है पतियों को नहीं, वो जो दिल चाहे करे मारे, पीटे, गाली गलोच करे " सुधा ने कहा
इससे पहले की अभिनव कुछ कहता तभी उसका वकील मिस्टर सुभाष वहा आते और कहते " अभिनव सुनवाई का समय हो रहा है चलो कोर्टरूम में चलते है "
सुधा की भी वकील मिसिस जैस्वाल वहा आती और कहती " चलो सुधा बहुत देर हो गयी अब अंदर चलते है सुनवाई बस शुरू होने वाली है "
"मिसिस जैस्वाल मुझे अपना बच्चा हर हाल में वापस चाहिए इस अभिनव से चाहे आपको साम, दाम,दंड भेद सब चीज़ो का इस्तेमाल ही क्यू ना कर जाए मेरी ज़िन्दगी भर की ज़मा पूँजी ही क्यू ना लग जाए लेकिन इस अभिनव से हार नहीं सकती में " सुधा ने गुस्से में अभिनव की तरफ देख कर कहाँ
" आप भरोसा रखिये सुधा , कानून एक माँ को उसके बच्चे से दूर नहीं कर सकता " मिसिस जैस्वाल ने कहाँ
अभिनव ने भी अपने वकील से जी तोड़ कोशिश करके अपना बच्चा हासिल करने को कहा। अब आरुष को हासिल करना उन दोनों की अना का मसला बन चुका था । वो एक दूसरे को हारता हुआ देखना चाहते थे ।
कोर्ट के अंदर काफी लोग बैठे थे । उन्ही में आरुष भी अपनी नैनी मारथा के साथ बैठा था। मारथा उसे समझा रही थी गॉड पर भरोसा रखो वो सब कुछ ठीक कर देगा।
घड़ी में दस बजे एक ज़ोर दार अलार्म बजा उसी के साथ उस कोर्टरूम में कार्यवाही शुरू हुयी जज को सब कुछ मालूम था बस आज फैसला सुनाना था। जो बहुत ही मुश्किल काम था ।
बच्चे की कस्टडी किसी एक को देने का मतलब की उस बच्चे को ज़िंदा क़ब्र में दफन कर देना जहाँ सिर्फ अंधकार ही अंधकार हो और उजाले की कोइ किरण उस बच्चे पर ना पड़ रही हो। क्यूंकि बच्चे की परवरिश तभी अच्छे से होती है जब बच्चा माँ और बाप दोनों के साये में परवान चढ़े । किसी एक के साये में जवान होने का मतलब ज़िंदा अँधेरी क़ब्र में रहते हुए उजाले की उम्मीद रखना जो कभी उस तक नहीं पहुंच सकता ।
कटघरे में खड़े सुधा और अभिनव अभी भी एक दूसरे की ही खामिया निकालने में लगे थे । और उनके वकील अपने मुआक्कील को सही साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे । और झूठ का सहारा ले रहे थे ।
वो दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने और खुद को सही साबित करने में इतना खो गए की भूल बैठे की उनका 13 साल का बेटा जो इस वक़्त इसी कोर्टरूम में बैठा है और वो अच्छी तरह से जानता है की कौन सही है और कौन गलत ।
काफी देर तक भी कोइ फैसला नहीं सुनाया गया तो आरुष अपने कानो पर हाथ रखकर जोर से चीख कर बोला " बंद करो ये सब भगवान के लिए ये सब बंद करदो मैं थक गया हूँ आप लोगो को यूं मेरे लिए लड़ता हुआ देख कर एक बार मुझसे तो पूछ लिया होता की मैं किस के साथ रहना पसंद करता हूँ "
कोर्टरूम में सिर्फ और सिर्फ आरुष की आवाज़ आ रही थी । बाकी सारे लोग एक टक आरुष को देख रहे थे
आर्डर, आर्डर
जज साहब ने कहाँ। ये सुनते ही कोर्टरूम में ख़ामोशी पसर गयी ।
"आयुष तुम्हे जो कुछ भी कहना है इस कटघरे में आकर कहो " जज ने कहा
आयुष अपनी नैनी मारथा की मदद से कटघरे तक आया । उसके हाथ में कुछ था ।सामने उसकी माँ सुधा ख़डी थी जिसके चेहरे पर हलकी मुस्कान थी क्यूंकि वो सोच रही थी आयुष उसी के पास जाने को कहेगा ।
और दूसरी तरफ अभिनव था जो सोच रहा था की उसका बेटा उसके साथ रहने को कहेगा।
जज ने पूछा " आरुष बेटा तुम किसके साथ रहना पसंद करोगे अपनी माँ या फिर पिता के साथ "
आरुष ये सुन खामोश रहा और बोला " किसी के साथ नहीं नाही माँ के साथ जिसने मुझे जन्म दिया और ना ही पिता के साथ "
सुधा और अभिनव भी हैरान थे अपने बेटे के इस फैसले को सुन कर
जज ने हैरानी से पूछा " ऐसा क्यू "
आयुष बोला "जज साहब मुझे दोनों के पास नहीं रहना क्यूंकि एक तरफ मेरी माँ है जिसने मुझे पैदा तो किया लेकिन कभी माँ का प्यार नहीं दिया। जिसने मुझे जन्म देते ही मेरी नैनी मारथा की गोद में रख दिया दो साल तक तो मुझे यही लगा कि मारथा मेरी माँ है क्यूंकि वही थी जो मुझे गिरने पर उठाती थी , मेरे रोने पर मुझे चुप कराती थी मुझे भूख लगने पर अपना खाना छोड़ मेरा पेट भर्ती थी । मेरे लिए रात को जागती थी कि कही में गीला ना हो जाऊ और मुझे कही सर्दी ना लग जाए।
जिस समय रात को मुझे अपनी माँ कि गोद कि ज़रूरत थी उस समय ये सामने खड़ी मेरी माँ देर रात तक चलने वाली बिज़नेस पार्टीज में व्यस्त रहती थी । इनके लिए मुझे पालने से बढकर अपना करियर था क्यूंकि इन्हे एक सक्सेफुल्ल औरत बनना था जिसके चक्कर में ये अपनी माँ का फर्ज़ भूल बैठी ।
जब मैं थोड़ा बढ़ा हुआ और पता चला की मारथा मेरी माँ नहीं है मेरी माँ तो कोइ और है जिसने मुझे जन्म दिया और नैनी के हवाले कर दिया।
तभी मुझे पता चला की मेरे एक पिता भी है जो हमेशा अपने काम में व्यस्त रहते है । जिनके पास इतना भी समय नहीं कि अपने बच्चे को देख सके ।
जब थोड़ा और बढ़ा हुआ तो एक दिन कुछ आवाज़े सुनी जो कि मेरे माता पिता के कमरे से आ रही थी। डरते डरते पास पंहुचा तो देखा ये दोनों आपस में लड़ रहे थे उस दिन वो पहली बार था जब मेने इन दोनों को लड़ते देखा। फिर उसके बाद ये सिलसिला चलता ही रहा ।
मैं स्कूल जाने लगा । मारथा ही मुझे तैयार करती उसे ही पता था कि मुझे नाश्ते में क्या पसंद है और लंच में क्या लेकर जाता हूँ। क्यूंकि मम्मी तो उस वक़्त सौ रही होती थी और पापा सवेरे ही मम्मी के उठने से पहले ही जान छुड़ा कर भाग जाते थे ऑफिस को।
आपको अगर यकीन नहीं हो तो जज साहब आप सामने खड़ी मेरी माँ से पूछ सकते है कि मुझे नाश्ते में क्या पसंद है और क्या नहीं।
ये सुन जज साहब ने सुधा कि तरफ देखा , सुधा ने सर झुका लिया क्यूंकि उसे पता ही नहीं था कि नाश्ते में आरुष को क्या पसंद है ।उसने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की
कोर्ट रूम में उस वक़्त खामोशी छायी हुयी थी सब लोग नम आँखों से आरुष को ही सुन रहे थे
जज साहब क्या ऐसी होती है माँ, मेरे दोस्तों की माये तो ऐसी नहीं है वो तो उनकी पसंद और ना पसंद सब जानती है।
मैं 13 साल का लड़का जब स्कूल से घर आता तो अक्सर देखता मेरी माँ अपनी सहेलियों के साथ अक्सर किटी पार्टीज में व्यस्त रहती । मैं जब जब उनके पास जाता उनकी गोदी में सर रख कर लेटने के लिए तभी वो एक आवाज़ निकाल ती " मारथा कहा हो आरुष को यहाँ से ले जाओ हमें परेशान कर रहा है "
जिस माँ को अपने बच्चे का पास आना उसे परेशान करना लगता हो तो वो आखिर कैसे उस माँ के पास रह सकता है ।
मदर्स डे पर मेने एक ड्राइंग बनायीं थी जो मैं अपनी माँ को दिखाना चाहता था की शायद वो समझ जाए की मैं अब बढ़ा हो रहा हूँ और मुझे अब मारथा की नहीं उसकी ज़रूरत है । मैं वो ड्राइंग लेकर माँ के पास गया तो देखा वो फ़ोन पर किसी के साथ चैटिंग कर रही है ।
मैं जानता था कि अगर माँ के पास गया तो वो फिर मुझे मारथा के हवाले कर देगी लेकिन फिर भी मेने एक कोशिश कि और बोला " माँ देखों मेने आज एक ड्राइंग बनायीं है तुम्हारे लिए "
लेकिन इन्होने ये कह कर उसे देखने से मना कर दिया कि " अभी नहीं बेटा अभी मैं किसी के साथ बात कर रही हूँ मोबाइल में व्यस्त हूँ जब फ्री हो जाउंगी तब देख लूंगी अभी जाओ मारथा के साथ खेलो "
मेरा अरमानो भरा दिल टूट गया और उदास चेहरा लेकर बाहर आ गया तब सामने से पापा को आते देखा जो हाथ में ऑफिस का बेग लिए काफी गुस्से में आ रहे थे नौकरो पर चिल्लाते हुए ।
मैं उनके पास गया और अपनी ड्राइंग दिखाना चाही मेने उन्हें आवाज़ दी लेकिन उन्होंने सुना नहीं और मुझे अनदेखा करके माँ के कमरे में चले गए ।
जहाँ से फिर वही लड़ाई कि आवाज़े आने लगी जिन्हे मैं पिछले कई सालो से सुन रहा था । लेकिन इस बार बात कुछ ज्यादा आगे बढ़ गयी थी ।
पापा ने मम्मी को थप्पड़ मार दिया था । क्यूंकि पापा मम्मी से चाय बना कर लाने का कह रहे थे लेकिन मम्मी फ़ोन में व्यस्त थी जिसके चलते पापा ने सारा गुस्सा फ़ोन पर उतार दिया और उसे तोड़ दिया ये कह कर कि कोनसे अपने आशिक से बात कर रही है । मेने सिर्फ इतना ही सुना।
और फिर लड़ाई कि आवाज़ के बीच में थप्पड़ो कि आवाज़ आने लगी । मेरी वो ड्राइंग मेरे हाथ में ही रह गयी और मैं अपने कान बंद कर वहा से भाग कर मारथा की गोद में आ गया।
मेरा सपना अपने पापा के साथ क्रिकेट खेलने का अधूरा ही रह गया जब भी कभी पापा से कहाँ की चलो क्रिकेट खेलते है तब तब पापा ने कहा " मारथा इसे अपने साथ पार्क ले जाओ मेरे पास समय नहीं है इसके इन फ़िज़ूल से खेलो के लिए मुझे ये घर भी चलाना है और बिज़नेस भी "
अब आप ही बताये जज साहब इन सब में मेरा क्या कसूर था बस इतना की मैं उस घर में पैदा हो गया था जो घर कभी घर जैसा था ही नहीं। जिसकी सुबह झगड़ो एक दूसरे की बराबरी करने से शुरू होकर रात को दोबारा झगड़ो पर ख़त्म हो जाती है ।
जहाँ एक बच्चे के माँ बाप होते हुए भी उसे नैनी के साथ सोना पड़ता है , सारे दुख सुख उसे ही बताना पड़ते है ।
जज साहब मैं इन दोनों में से किसी के साथ भी नहीं रहना चाहता ।
कोर्टरूम में सन्नाटा पसर गया था 13 साल के बच्चे का फैसला सुन। सुधा जो की रो रही थी और अभिनव भी शर्मिंदा था अपने बेटे से ये सब सुनने के बाद।
आरुष के हाथ में एक ड्राइंग थी जो उसने कभी मदर डे पर बनायीं थी । जिसमे उसका एक हाथ उसकी माँ पकडे हुयी थी और दूसरा हाथ अभिनव उसने वो ड्राइंग दिखाते हुए कहा " ये ड्राइंग मेने इस उम्मीद में बनायीं थी की शायद कभी तो आप लोग मुझे समझ पाओगे की मुझे मारथा से ज्यादा आप दोनों का साथ चाहिए जिंदगी में, लेकिन आप दोनों अपनी निजी ज़िन्दगी में इतना उलझ बैठे की भूल ही गए की आप दोनों का एक बेटा भी है जो गलती से इस दुनिया में आ गया है , हाँ गलती से ही अगर मर्ज़ी से आता तो यूं इस तरह आज कोर्टरूम में ना खड़ा होता और आप दोनों भी आज पति पत्नि होते ना की तलाक शुदा ये कह कर उसने उस ड्राइंग में से खुद को अलग करते हुए कहा "ये लो आज मैं आप दोनों की ज़िन्दगी से खुद अपने आप को अलग कर रहा हूँ इस ड्राइंग से भी और हकीकत में भी "
ये कह कर वो बेहोश हो कर नीचे गिर गया ।
सुधा और अभिनव उसकी तरफ दौड़े तब मारथा वहा आयी और बोली अभी उसकी नैनी ज़िंदा है जो उसकी देखभाल कर सकती है पहले पेसो के लिए करती थी लेकिन अब अपना बच्चा समझ कर करूंगी तुम दोनों जाओ मेरी गॉड से दुआ है की तुम दोनों हमेशा ऐसे ही अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त रहो मोबाइल में, शॉपिंग में, किटी पार्टीज में और अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने में।
वहा एम्बुलेंस आ गयी थी उसे अस्पताल ले जाया गया । जहाँ एक खबर ने सब को रोने पर मजबूर कर दिया जब डॉक्टर ने कहा इसे ब्लड कैंसर है और इसका बच पाना ना मुमकिन है इसको कोइ गम था जो इसे अंदर ही अंदर खा रहा था उसी की वजह से इसे ब्लड कैंसर हुआ है ।
सुधा और अभिनव बोले " डॉक्टर साहब हमारी सारी दौलत ले लो लेकिन हमारे बेटे को बचा लो हम उसे अपनी वजह से मरता नहीं देख सकते "
"अब बहुत देर हो चुकी है अब ना पैसा काम आएगा और ना ही दवा अब जितनी भी सांसे उसके पास बची है उन्ही में भगवान का शुक्र अदा करो और हो सके तो अपने गुनाहो की माफ़ी भी मांग लो उससे शायद वो माफ करदे तुम दोनों को।" डॉक्टर ने कहा
सुधा और अभिनव हार चुके थे आज अपनी ही नज़रो में। कोर्टरूम में जो फैसला होता वो होता लेकिन भगवान की अदालत ने जो फैसला सुना कर जो उन्हें सजा दी है उसे काट पाना दोनों के लिए आसान नहीं था इस गम के साथ जीना की अपने ही बेटे की मौत के ज़िम्मेदार वो दोनों है। किसी भी माँ बाप के लिए आसान नहीं।
प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी
Shrishti pandey
30-Apr-2022 10:32 AM
Nice
Reply
Punam verma
30-Apr-2022 09:03 AM
बहुत खूब
Reply
Zainab Irfan
30-Apr-2022 02:28 AM
👏👌🙏🏻
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