रेडियो
एक कमरे में कैद हो
बना लिए उसको अपना घर
मोबाइल लैपटॉप के आसपास
घूमती है तेरी जिंदगी भी
धमनियों में बहती लहू अब तो
बिजली बन दौड़ रही तन मन में
एहसास तेरे हो रहे धूमिल
मानवता पर पड़ गई है धूल
चलो उस कमरे के एक कोने में
रख देते हैं रेडियो फिर से
जब बजेंगे गीत पुराने तो
खो जाओगे बचपन में तुम
हर गाने में यादों की खुशबू है
हर गाने में छुपी पहेली है
गानों के संग उभरेगी शक्ल
जानी पहचानी सी लगेगी वो
आँचल में समेटे कई मधुर धुन
गुनगुना कर करती थी काम अपने
व्यंजनों मेँ होता था अनोखा स्वाद
जिसमे घुल मिल गया था सरगम
रेडियो के संगीत फिजाओं में
कर देगी तन मन तर तेरा
हो जाओगे मदमस्त फिर तुम
उमंगें जवां हो जाएगी
लौट आयेगा वो दौर फिर से
सपनों में जो अब बसता है
अर्चना तिवारी
Chirag chirag
09-Dec-2021 04:49 PM
बहुत खूब
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Ankit Raj
29-Oct-2021 11:43 PM
Wahh
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