Priyanka06

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लेखनी कहानी -30-Apr-2022 होली के रंग

रचीयता-प्रियंका भूतड़ा

शीर्षक-होली के रंग
(यह कविता होली के रंग के द्वारा जात पात में होने वाला भेदभाव को मिटाने के लिए व्यंग पेश किया गया है।)

होली का रंग होता है अनेक
पर लगने के बाद लगता है एक
सतरंगी रंगों से बनता है इंद्रधनुष
बिन मौसम का इंद्रधनुष
आज  धरती पर बना
ना रंग है ना वेश
एकता में अनेकता का है देश
पहनते हैं होली को सफेद
सफेद नहीं होता , नजर आता है रंगीन
सब का खून बनाया एक
इंसान ने बनाई जाती अनेक
लेकिन हम क्यों करें सब में भेद
इस खून की तरह तुम  भी सब एक हो
भेजो सबको यही संदेश
ना करो तुम गोरे काले का भेद
ना खेलो जात पात का खेल
ना करो तुम जिंदगी में खेद
आज तो होली है भाई
शुरू कर दो रंगों का खेल
बना दो सतरंगी रंगों का मेल
दूर बैठे हैं उनको पास बुलाओ
उनको तुम गुलाल लगाओ
गले लगा कर बोलो तुम
होली की शुभकामनाएं हैं मेरे भाई

सप्ताह की 23 वी कविता

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5 Comments

Abhinav ji

30-Apr-2022 09:45 PM

Very nice👍

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Simran Bhagat

30-Apr-2022 09:27 PM

👏👏

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Arshi khan

30-Apr-2022 09:09 PM

👌

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