Sonia Jadhav

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रिश्तों की राजनीति- भाग 4

भाग 4
अक्षय एकलौता वारिस नहीं था जगताप पाटिल की मिल्कियत का, उसकी एक बड़ी बहन भी थी सिद्धि जगताप पाटिल जिसने अभी-अभी वकालत के आखिरी साल की परीक्षा दी थी। अक्षय और सिद्धि कहने को तो सगे भाई-बहन थे लेकिन स्वभाव में बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत थे। सिद्धि बचपन से हर परीक्षा में अव्वल आती थी जबकि अक्षय बस जैसे-तैसे पास हो जाता था। सिद्धि समझदार थी और अक्षय थोड़ा ज़िद्दी, थोड़ा लापरवाह सा था।

जगताप पाटिल को यूँ तो अपने दोनो बच्चों से बराबर प्यार था लेकिन अक्षय उनका लाडला था। वो चाहते थे उनका बेटा राजनीति के क्षेत्र में उनसे भी आगे जाए, उनकी अधूरी महत्वकांशाओं को पूरा करे। वो अक्षय की हर जायज़-नाजायज़ मांग को पूरा करते थे, जिसके कारण अक्षय एक अलग ही रास्ते पर चल पड़ा था।

कई बार सिद्धि ने अपने बाबा को समझाया था कि अक्षय की गलत हरकतों को शह ना दें, कहीं ऐसा ना हो कि वो ऐसे रास्ते पर निकल जाए जहाँ से लौट पाना मुश्किल हो। पर जगताप पाटिल के कानों पर जूं नहीं रेंगती थी और अक्षय इस बात का फायदा भरपूर फायदा उठाता था।

सिद्धि ने अब अपने बाबा और अक्षय दोनों को ही समझाना बंद कर दिया था। अब उसका सारा ध्यान अपनी वकालत पर था। उसका एक ही सपना था वो एक सफल और ईमानदार वकील बने और गरीबों की मदद कर सके। इतने बड़े घर में सिद्धि नितांत अकेली थी। जब वो जूनियर कॉलेज में पढ़ रही थी तभी उसकी माँ की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी।

वो अक्सर अपनी आई को याद करके अकेले में रोया करती थी। एक आई ही तो थी जो उसे समझती थी। वो उसकी आई कम मैत्री अधिक थी। बाबा के लिए कुछ जरुरी था तो वो सिर्फ पार्टी का काम, बच्चे तो उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे अंतिम स्थान पर थे। आई की मृत्यु का सबसे ज्यादा बुरा असर अक्षय पर पड़ा था। अब उसे रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था। बाबा के लिए वो उनकी सत्ता को संभालने वाला एकलौता वारिस था।

इधर सान्वी ने रिया के साथ कॉलेज जाना शुरू कर दिया था। अभिजीत अब अकेला बाइक पर जाता था। घर से कॉलेज, कॉलेज से कोचिंग और कोचिंग से घर और घर में पढ़ाई, बस यही उसकी दिनचर्या थी। अक्षय जितना सम्भव हो कॉलेज में सान्वी के आसपास दिखने की कोशिश करता ताकि वो सान्वी की नज़र के साथ-साथ उंसके दिल में भी घर कर सके। एक बार सान्वी कॉलेज से अकेले घर जा रही थी तो अक्षय ने कहा कि अगर वो चाहे तो वो उसे घर छोड़ सकता है। लेकिन सान्वी ने कहा कि उसे आदत है अकेले जाने की, वो अकेले चली जायेगी।

अक्षय अपनी कार में बैठ कर सान्वी को जाते हुए देख रहा होता है और मन ही मन सोच रहा होता है…..लड़की में कुछ बात तो है, साधारण कपड़ों में भी सुंदर लगती है। इन मध्यमवर्गीय लोगों को संस्कार और खूबसूरती कुछ ज्यादा ही मात्रा में दे देता है भगवान।

चलते-चलते सान्वी की चप्पल टूट जाती है और आसपास कोई मोची भी नहीं होता जो उसकी चप्पल को ठीक कर दे। टूटी चप्पल पहनकर बेचारी सान्वी घिसट-घिसट कर चल रही होती है और मन ही मन सोच रही होती है काश! वो अक्षय से लिफ्ट ले लेती तो कम से कम उसे ऐसे तो चलना नहीं पड़ता।

इधर सान्वी के दिमाग में यह सब चल रहा होता है, उधर अक्षय की मन मांगी मुराद पूरी हो जाती है। वो अपनी कार  सान्वी के पास जाकर रोक देता है और कहता है….इस तरह चलने से तो अच्छा है तुम गाड़ी में बैठ जाओ। मैं इतना खराब दिखता हूँ कि तुम्हें मेरे साथ बैठने से शर्म आती है या फिर मैं भूत हूँ जो तुम्हें अकेला देखकर खा जाऊँगा।

सान्वी मुस्कुराते हुए कहती है…..नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है, बस मैं आपको तकलीफ नहीं देना चाहती थी अक्षय।
अक्षय गाड़ी चलाते-चलाते तिरछी नजरों से सान्वी की तरफ देख रहा होता है बार-बार और सान्वी खिड़की से बाहर देख रही होती है।

अक्षय कहता है….मैंने तुम्हें अपना फोन नंबर दिया था लेकिन आज तक उस पर ना तुमने कोई कॉल किया ना ही मैसेज भेजा। मैं इंतज़ार करता रहा तुम्हारे थैंक यू मैसेज का लेकिन वो कभी आया ही नहीं। मैं तो तुम्हें अपना दोस्त समझता था, लेकिन शायद तुम मुझे अपना दोस्त नहीं समझती।

सान्वी…..दरअसल बात यह है कि मैंने कभी किसी लड़के से दोस्ती नहीं की है। मेरी सारी दोस्त लड़कियाँ ही हैं। यूँ तो मैं फोन करके आपको थैंक यू कहना चाहती थी उस दिन के लिए , लेकिन फिर ना जाने क्यों थोड़ी हिचक सी महसूस हुई, इसलिए फोन नहीं किया।
अभी तक तो मैंने अपने दादा को भी नहीं बताया है उस दिन कॉलेज में हुए हादसे के बारे में।

अक्षय हैरान होकर पूछता है क्यों?

सान्वी…..दादा को अजित के बारे में पता चल गया तो वो उसे छोड़ेंगे नहीं। वैसे ही उनके कॉलेज का यह आखिरी साल है, मैं नहीं चाहती वो किसी मुसीबत में फँसे।

अक्षय …..नाम क्या है तुम्हारे दादा का?

सान्वी….अभिजीत महेश सावंत

अक्षय मन ही मन सोचता है….ओह! तो यह उस अभिजीत की बहन है, उसके साथ तो एक पुराना हिसाब बाकि है। चलो अच्छा है मौका खुद चलकर मेरे पास आ गया है।

सान्वी अक्षय को चुप देखकर पूछती है….क्या आप जानते हैं मेरे दादा को?

अक्षय…….अभिजीत को कौन नहीं जानता, सेकंड ईयर में टॉप किया था उसने। वैसे तुम्हारा भाई हर चीज़ में होशियार है। जब मैं फर्स्ट ईयर में था और वो सेकंड ईयर तब हमारे बीच फुटबॉल का मैच हुआ था जिसमें तुम्हारे भाई की टीम जीत गयी थी।

सान्वी खुश होकर कहती है दादा तो बने ही हैं जीतने के लिए।

तभी अक्षय से अचानक ब्रेक लग जाती है और वो मन ही मन कहता है……..बहुत मज़ाक उड़ाया था तूने मेरा, अबकि बार जीत मेरी होगी और हार तेरी अभिजीत महेश सावंत।

क्या हुआ अचानक से चलते-चलते यह ब्रेक क्यों मार दी?
कुछ नहीं अभिजीत के साथ खेला वो मैच याद आ गया। बड़ा ही मजबूत खिलाड़ी है तुम्हारा भाई।

सान्वी अपने भाई की तारीफ सुनकर खुश हो जाती है।
सान्वी अक्षय को घर से थोड़ा दूर उतारने को कहती है और उसे थैंक यू कहकर घर चली जाती है।

अक्षय को कोई जल्दी नहीं थी सान्वी से नजदीकियां बढ़ाने की, उसे धीरे-धीरे हलाल करना पसंद था।

सान्वी आज पहली बार किसी लड़के की कार में उसके साथ बैठी थी। उसे अच्छा लगा था अक्षय का यूँ उसे घर छोड़ना। अजित से उसकी इज़्जत बचाकर वो पहले ही उसके दिल में अपनी जगह बना चुका था।

सान्वी अब अक्षय के बारे में सोचने लगी थी। बार-बार अपने फोन में सेव अक्षय के नंबर को देख रही थी। तभी अभिजीत की आवाज़ आती है….सान्वी थोड़ी देर किताब खोलकर भी देख ले, वरना किताब नाराज हो जायेगी।

सान्वी अपनी कल्पना की दुनिया से बाहर आ जाती है और किताब खोलकर पढ़ने लगती है।

❤सोनिया जाधव

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

02-May-2022 09:55 PM

बहुत बेहतरीन

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Gunjan Kamal

02-May-2022 01:03 PM

बेहतरीन भाग

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