Astha Singhal

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सुलोचना का सफर # शॉर्ट स्टोरी चैलेंज # स्त्री विमर्श

#शार्ट स्टोरी चैलेंज

जॉनर- स्त्री विमर्श
कहानी - सुलोचना का सफर

सारा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज रहा था। सुलोचना सबका आभार व्यक्त कर रही थी।

"अब मैं चाहूंगी कि सुलोचना जी आकर अपने जीवन की यात्रा हमारे साथ साझा करें।" 

सुलोचना ने माइक पकड़ नम आंखों से सबको देखा। 

"जीवन तो बचपन में ही समाप्त हो गया था। जब मेरे माता-पिता ने चार साल की उम्र में मेरी शादी दूसरे गांव के सरपंच के बेटे से कर दी। बीस की हुई तो गौना करने का समय निकट आ गया।" ये कह सुलोचना जी अतीत में खो गईं।
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सुलोचना कॉलेज जाने के लिए घर से निकली कि तभी एक युवक बाइक पर सवार हो उसके सामने रुका और बोला,"बैठ बाइक पर। यूं अकेली ना जाने दूंगा।" 

"मेरे रास्ते से हट जा। मुझे नहीं जाना तेरे साथ।" सुलोचना ने उस युवक को झिड़कते हुए कहा। 

उस युवक ने उसका हाथ ज़बरदस्ती पकड़ा और सुलोचना को उसकी बाइक पर बैठना पड़ा।

ये युवक था युवराज, दूसरे गांव के सरपंच का बेटा, जिससे बचपन में सुलोचना का ब्याह हो गया था। युवराज एक आवारा और अय्याश लड़का था। सुलोचना उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। 

एक दिन वो उछलती कूदती घर लौटी। आज द्वितीय वर्ष के सैमिस्टर के परिणाम घोषित हुए थे। जिसमें सुलोचना प्रथम आई थी। अपने माता पिता को ये खुशी बता पाती इससे पहले ही उसकी नज़र युवराज और उसके पिता पर पड़ी। वो सहमी सी वहीं रुक गई।

"अरे! पैर छू आकर। तेरे ससुर जी पधारे हैं।" सुलोचना की मां ने उसे इशारे से समझाते हुए कहा।

सुलोचना ने डरते हुए उनके पैर छुए और अंदर चली गई। युवराज ललचाई नज़रों से उसे देख रहा था। 
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"मां, मैं नहीं जाऊंगी। मैं नहीं मानती इस ब्याह को। भारत सरकार भी इसे गैरकानूनी करार देती है। मां, मत भेजो मुझे।" सुलोचना दुल्हन के जोड़े में खड़ी फूट-फूट कर रो रही थी। 

"चुप कर छोरी। दिमाग खराब हो गया है क्या तेरा? अब वो ही तेरा घर है। यही रिवाज़ है हमारे समाज का।" सुलोचना के माता पिता ने उसे डांटते हुए कहा। 

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नर्क से भी बद्तर जीवन हो गया था सुलोचना का। घर में उसका स्थान केवल काम करने वाली बाई का था। सारा दिन सास-ससुर की सेवा करना, घर के सारे काम करना, भैंसों और बकरियों की देखभाल करनी। और रात में एक ज़िन्दा लाश बनकर युवराज का भोग बनना। 

साल भर तक सुलोचना ने ये सब अत्याचार सहे। शरीर जवाब दे गया था। मन और आत्मा पर जो आघात हुआ था उसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। 

"बस अब बहुत हो गया। मैं अपना जीवन ऐसे बर्बाद नहीं होने दूंगी। मैं इतनी कमज़ोर नहीं हूं कि खुद की देखभाल ना कर सकूं।" एक दिन सुलोचना ने अपने आप से ये वादा किया कि अब इस जहन्नुम से निकल कर ही दम लेगी। 

उसे एक दिन अवसर मिल गया। सारा परिवार साथ वाले गांव में शादी पर गया था। बस उसने मौके का फायदा उठाया और अपने पास इधर-उधर से चुराए रुपयों को लेकर वो स्टेशन की तरफ दौड़ी और पहुंच गयी मुम्बई नगरी।

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आगे का सफर आसान नहीं होने वाला था। पर सुलोचना के इरादे बहुत पक्के थे। वहां पहुंच उसे ये तो समझ में आ गया कि बिना नौकरी उसे कहीं रहने को नहीं मिलेगा। इसलिए उसको दो हफ्तों तक रेलवे के गेस्ट रूम में ही निकालने पड़े। जमा किए पैसे भी खत्म हो रहे थे। फिर उसे एक कार के शो रूम में सेल्स गर्ल की नौकरी मिल गई। नौकरी मिलते ही उसने एक वूमेन हॉस्टल में एक कमरा दो और लड़कियों के साथ किराए पर ले लिया। 

सुलोचना दिल लगा कर मेहनत कर रही थी। उसने पांच महीने में इतने पैसे जोड़ लिए कि वो फिर से कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर सके। चूंकि वो अपने दो साल के सर्टिफिकेट नहीं दिखा सकती थी इसलिए उसे फिर से प्रथम वर्ष से ही शुरुआत करनी पड़ी। दूरसंचार कॉलेज में दाखिला लेने के बाद उसने और अधिक मेहनत करनी शुरू की। शाम को घर -घर जाकर ट्यूशन पढ़ाना आरंभ किया। 

देखते ही देखते तीन साल गुज़र गये और अब सुलोचना ने तय कर लिया कि वो एक वकील बनेगी और औरतों पर ज़ुल्म करने वालों को सज़ा दिलवाएगी। 

लॉ कॉलेज में दाखिला लेने के बाद सुलोचना को जीवन यापन के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ी। क्योंकि सुबह कॉलेज होता था तो उसकी नौकरी भी छूट गई। अब उसने शाम को ट्यूशन और अधिक बढ़ा दीं। एक छोटा सा कमरा किराए पर ले ज़्यादा बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। रात में वो अपनी पढ़ाई पूरी करती। 

वक्त गुजरता गया और सुलोचना ने एल.एल. बी की डिग्री हासिल कर ली। क्योंकि सुलोचना एक बहुत होशियार विद्यार्थी थी इसलिए एक बहुत बढ़िया लॉ फर्म ने उसे बतौर एसिस्टेंट एडवोकेट अपने यहां इंटर्नशिप पर रख लिया। 

समय का पहिया घूमने लगा। सुलोचना ने कुछ साल इंटर्नशिप के बाद स्टेट बार काउंसिल की परीक्षा उत्तीर्ण की और कोर्ट में प्रेक्टिस शुरू की। 

सुलोचना ने कई ऐसे केस लड़े जिसमें उसने घरेलू हिंसा का शिकार लड़कियों और विवाहित युवतियों को न्याय दिलाया। बाल विवाह के खिलाफ गांव - गांव जाकर प्रचार किया, उन्हें लड़कियों को पढ़ाई कराने पर ज़ोर दिया। शादी सही उम्र में ही करने के फायदे सिखाए। और जो परिवार बाल विवाह करवा रहे थे उन्हें उचित सज़ा दिलवाई। 

ये सब बताते हुए वो अतीत की परछाइयों से बाहर निकली। आज पंद्रह साल बाद सुलोचना एक नामी वकील है। महिलाओं के लिए आदर्श। 

"आज मैं सोचती हूं कि यदि उस दिन मैंने घर से भागने का वो कदम ना उठाया होता तो मेरी ज़िंदगी नरक हो चुकी होती। या फिर शायद…खत्म। मैं आज इस मंच के माध्यम से हर लड़की को बताना चाहती हूं कि अपने हक के लिए आवाज़ उठाना गुनाह नहीं है। यह आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। अपने ऊपर उठने वाले हर हाथ को रोकने की हिम्मत आपको खुद करनी पड़ेगी। मैं उस वक़्त अपनी परिस्थितियों से भाग खड़ी हुई, क्योंकि तब कोई और चारा नहीं था मेरे पास। पर, आज कानून, समाज, पुलिस सब औरतों के प्रति हो रहे अपराध को लेकर सतर्क हैं। इसलिए, यदि आपके साथ कुछ ग़लत हो रहा हो, या किसी और औरत के साथ, कानून का सहारा लीजिए और गुनहगारों को सज़ा दिलवाएं।" ये कह सुलोचना ने सबको प्रणाम किया और मंच से उतर गई। 

समाप्त 🙏

आस्था सिंघल

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3 Comments

Fareha Sameen

07-May-2022 02:06 PM

Nice

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Renu

06-May-2022 10:15 PM

👍👍

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Gunjan Kamal

06-May-2022 07:03 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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