चरित्र
“चरित्र”
पन्नों में छिपे कई चरित्र
पन्ने खुलते ओर उभरते चरित्र
कुछ दबे,छुपे कुछ भूले
कुछ उधड़ते ओर कुछ बुनते चरित्र
लगते सब वास्तविक हैं
मगर कल्पना के क़रीब हैं
जानती हूँ मैं
सभी चरित्र काल्पनिक हैं
मगर इन पन्नों में सिमटा इतिहास है
बीते कल का एहसास है
आने वाले पलों का पूर्वाभास है
कभी तड़पाते कभी बहलाते ये चरित्र
जज़्बात नये जगाते ये चरित्र
कभी रच देते नया संसार ये चरित्र
चरित्र गढ़ देते फिर कुछ नए पन्ने
और कभी सब कुछ हो जाते
ये चरित्र ये पन्ने
-------- शहला जावेद
Pawan kumar chauhan
09-Jul-2021 12:06 PM
बहुत खूब
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Satendra Nath Choubey
09-Jul-2021 09:45 AM
खूबसूरत रचना शहला जी।
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Niraj Pandey
08-Jul-2021 08:21 PM
वाह👌
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