हत्या

हत्या

हत्या का ये सिलसिला कब से जारी है
रोज रोज दिल की कितनी हसरतें हमने मारी हैं।

हर सुबह नए ख्वाब नई उम्मीदें जन्म लेती हैं
शाम होने तक जिंदगी उनका गला घोंट देती है।

कभी कभी कोई नया ख्याल पनप जाता है
वक्त का झंझावत उसे वहीं दफन कर आता है।

जरूरतें जब नागफनी सी अपना सर उठाती हैं
कितने अरमानों की बलि इनपर चढ़ाई जाती हैं।

जिंदगी में झूठी खुशियां पाने को हररोज
आम इंसान खुद के वजूद को खुद ही मार देता है।

सच तो ये भी है यारों जिंदा रहने की खातिर
हम रोज सफर करते है तिल तिल मौत की ओर बढ़ते हैं।

आभार – नवीन पहल – ०७.०५.२०२२ 🙏🙏

# प्रतियोगिता हेतु

   25
15 Comments

Shnaya

09-May-2022 06:18 PM

Nice 👍🏼

Reply

Reyaan

09-May-2022 04:57 PM

Very nice

Reply

Gunjan Kamal

08-May-2022 09:50 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

Reply