बिन ब्याही माँ
आज उसे कई सालों बाद देखा था, शायद दस या बारह साल! जब से वो मेरी ज़िंदगी से जुदा हुई मुझे दुनिया जमाने की कोई फिक्र ही नहीं रही। मेरी अपनी मजबूरियों ने मुझे लड़ने नही दिया, उसकी अपनी मजबूरियों ने उसे मेरा हाथ थामने नहीं दिया, बस किस्मत की बात थी।
आज एक दोस्त की जिद पर पास के शहर के छोटे से शॉपिंग मॉल में आया हुआ था, उसने बहुत जिद की , अब क्या करता मानना ही पड़ा। आधे घण्टे से उसका इंतजार कर रहा था मगर वह अब तक न आया, मैं कॉल पे कॉल किये जा रहा था मगर उसका शायद नेटवर्क इशू था। फिर मैंने सोचा थोड़ा टहल ही लेता हूँ, वैसे भी सारी जिंदगी दुनिया से कटकर तो नहीं रह सकते न!
अचानक मेरी नज़र उसपर पड़ी, दस साल बाद भी वह तनिक न बदली थी, उसकी वही चाल-ढाल वही अदाएं..! एक पल को मैं कहीं खो सा गया, उसे देखकर पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गया। ऐसा लग ही नहीं रहा था हम बरसों पहले जुदा हुए थे, लग रहा था मानो यह कल की ही बात हो!
मैं बस उसमें खोया हुआ सा उसे निहारे जा रहा था, अचानक जेहन में ख्याल आया कि अब वो मेरी नहीं रही, इस ख्याल ने पूरे शरीर में करंट दौड़ा दिया, मैं सट्ट मारकर वहीं का वहीं खड़ा रहा, मेरी नजरें झुक गयी, पुराने जख्म ताजे हो गए, मेरी हिम्मत न हुई कि मैं जाकर शिल्वी से बात भी कर सकूं।
वह एक कमरे में घुसी हुई थी, जब बाहर आई तो उसके साथ दो छोटी सी बच्चियां थीं, दोनों की उम्र लगभग आठ से दस के बीच की थी। बहुत ही प्यारी मासूम बच्चियां दोनों उसका हाथ पकड़े हुए चली जा रही थी, मैं बस उनकी मासूमियत निहारता रहा, दुनिया से कनेक्शन कट जाने के बाद पहली बार मुस्कुराते देखा था किसी को। वैसे भी हम अनाथों का होता ही कौन है, अगर मेरे भी परिवार होता तो फिर जुदा ही क्यों होना पड़ता!
"हाय प्रीतम!" यह आवाज सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई, मेरे सामने शिल्वी खड़ी थी, उसे देखकर मैं ऐसे उछला जैसे गर्म तवे पर पांव पड़ गया हो।
"कैसे हो कभी दिखाई नहीं देते!" उसने सवाल किया, उसकी वही पुरानी आदत, सवाल पर सवाल करते जाना, कोई जिम्मेदारी से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं! वह अब भी न बदली थी, मेरे मन में ख्याल आया कि इसका पति कैसे झेलता होगा इसे और हँसी निकल गयी।
"हाँ! शहर से बाहर रहता हूँ, अपनी ही दुनिया में!" मैंने नीरस स्वर में जवाब दिया। मुझे भी उससे बात करनी थी पर हिम्मत पूरी तरह जवाब दे चुकी थी।
"वाह! हर मुसीबत से लड़ने वाले प्रीतम को छुपकर रहने की जरूरत कब से पड़ने लगी?" उसने तंज कसा।
"जब हिम्मत साथ छोड़कर चली गयी हो तो...!" मैंने जानबूझकर कर अपनी बात अधूरी कही, उसका चेहरा नीला पड़ गया, उसे कुछ भी कहते नहीं बना।
"मम्मी! अब चलो, मुझे आइसक्रीम भी खानी है!" छोटी बच्ची ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा।
"हाँ बिल्कुल बेटा!" शिल्वी ने मुस्कुराकर कहा।
"और मुझे चॉकलेट्स भी चाहिए!" बच्ची ने अपनी डिमांड को आगे बढ़ाया।
"बिल्कुल!" शिल्वी ने अपना पर्स संभालते हुए कहा, बड़ी बच्ची कुछ नहीं बोल रही थी मगर छोटी बच्ची में मैंने शिल्वी का ही अक्स देखा, उसी की तरह मुस्कान, जिद्दी और डिमांड बढ़ाते रहने वाली।
"और मुझे...!"
"आपको जो चाहिए मिलेगा बेटा! आप यहां बैठ जाओ।" शिल्वी ने उसे बेंच पर बिठाते हुए कहा। "ऊप्स सॉरी! इनके बारे में तो बताना ही भूल गयी। ये प्रीता है, और ये नटखट सिमरन है।" वह मेरी ओर मुखातिब हुई, प्रीता अब भी कुछ नहीं बोल रही थी, मगर अब मेरा बात करने का मन नहीं हो रहा था।
"बहुत प्यारा नाम है, वैसे तुम्हें जल्दी जाना चाहिए, इनके पापा को भी तुम्हारा इंतज़ार होगा न?" मैंने उससे दूर जाने के इरादे से कहा। परन्तु पता नहीं क्यों शिल्वी की आँखों में आँसू निकल आये, उसने सिमरन को गोद में उठाया और प्रीता का हाथ पकड़कर खींचते हुए बाहर निकल गयी, मैंने देखा वह बाग में सिसक रही थी, अंदर से बहुत बुरा लग रहा था। मुझे नहीं पता मैंने क्या गलती की, मैंने तो ऐसी वैसी कोई बात भी न की मगर जाने क्या उसे बुरा लगा। मैं बस उससे सॉरी बोलने जा रहा था।
"गंदे अंकल! दाढ़ी वाले अंकल गंदे!" सिमरन मुझे नरम हाथो से मारते हुए बोली।
"मैंने क्या किया बेटा? ये चॉकलेट लो!" मैंने उसे प्यार से पुचकारते हुए कहा।
"नहीं! मम्मी ने किसी अजनबी के हाथ से कुछ भी लेने से मना किया है, आपने तो उन्हें रुलाया है। मैं नहीं लुंगी।" उसके मासूम से स्वर में दृढ़ता थी।
"पर मैंने कोई गलती नहीं की है बेटा।" मैंने उसे समझाना चाहा पर वह मुझे मारते ही रही।
"आप नहीं जानते कि हम मम्मी की असली बेटियां नहीं है?" प्रीता ने मेरी ओर सिर उठाकर ताकते हुए गम्भीर स्वर में बोली।
"क्या मतलब?" मैं बुरी तरह हैरान था।
"मेरी मम्मी ने शादी नहीं की है, फिर हमारे पापा कहां से आएंगे?" उसने कठोर स्वर में कहा, मैं बस हैरान हुए जा रहा था, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था।
"मेरी असली मम्मी पता नहीं कब छोड़कर चली गयी, जब मैं इत्ती सी थी।" उसने अपने हाथों से नापकर बताया, उसकी आंखों में आँसू छलक रहे थे। "मैं अपनी मम्मी से बहुत नाराज थी, वो हमें छोड़कर चली गईं फिर हमें शील मम्मी ने पाला पोसा। उस टाइम सिमरन बहुत छोटी थी इसलिए कुछ नहीं जानती पर मैं थोड़ा बहुत जानती हूँ। शील मम्मी दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी हैं, उनके जैसा कोई नहीं! आपने उन्हें रुलाया है, बुरे अंकल!" कहते हुए वह फफक पड़ी, मेरा दिल किया दोनों को सीने से लगा लूँ। शिल्वी, जो लड़की खुद को भी नहीं संभाल सकती थी उसने दो अनजान बच्चियों को संभाला, वो बिन ब्याही माँ, बहुत बड़े सम्मान की हकदार थी। मेरी आँखों में पानी भर आया था, मैंने उन्हें रोकने की कोशिश भी न की, बह जाने दिया। बहुत हिम्मत के बाद मैंने उसकी ओर कदम बढ़ाया, दिल हुआ कि कह दूं, कि मुझे भी इन बच्चियों के बाप बनकर जीने का एक मौका दे, मुझे प्यार लौटा दे, मगर मेरी हिम्मत न हुई..मैं बस शुरू से ही गलत था और अपनी गलतियों की सजा शिल्वी को देता रहा। जबकि वो बिन ब्याही माँ बनी, माँ के सारे फ़र्ज़ अदा कर रही थी, वो ग्रेट थी, शायद हमेशा से।
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©मनोज कुमार "MJ"
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Sahil writer
11-Jul-2021 09:45 AM
👏👏👏👏👏
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मनोज कुमार "MJ"
19-Jul-2021 05:48 PM
Thanks
Reply
Aliya khan
11-Jul-2021 09:15 AM
Gjb
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मनोज कुमार "MJ"
19-Jul-2021 05:48 PM
Shukriya
Reply
Niraj Pandey
09-Jul-2021 09:12 PM
👌👌👌
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मनोज कुमार "MJ"
19-Jul-2021 05:48 PM
Thanks
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