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साहित्य क्या है?

साहित्य क्या है?

साहित्य के बारे में यह विवेचना करना भी साहित्य है। साहित्य किसी न किसी रूप में हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हम जब भी उलझते हैं या अपनी बातें किसी से कह सकते में असमर्थ होते हैं तब हम साहित्य की ओर रुख करते हैं। साहित्य हमारी हर उलझन को सुलझाता है, हम जो किसी से न कह सकें वह खुद से कह सकते हैं, साहित्य के रूप में सँजोकर।

साहित्य समाज का दर्पण है, जिसमें मनुष्य अपने भूतकाल की गलतियों एवं प्रसिद्धि के साथ वर्तमान की समस्याओं से निजात एवं भविष्य को सौंदर्य से परिपूर्ण बनाने आदि को पढ़ता, देखता एवं समझता है। साहित्य, समाज को उसके अच्छे बुरे पहलुओं से रूबरू कराता है, हर वो चीज जो कागज पर या ताम्रपत्र अथवा ताड़पत्रों पर, शैलचित्रों के रूप में उकेरी गई है, वही साहित्य है। जिस समाज ने साहित्य को अनुग्रहित किया वह सदैव फला-फूला ही है और जिसने भी साहित्य की अपेक्षा की वह भीड़ में दबकर रह गया।

साहित्य हमारे जीवन के सभी कष्टों का निवारण है, साहित्य प्रश्न भी है और उत्तर भी है। हम सभी के जीवन में साहित्य का अद्वितीय स्थान है, क्योंकि हम सभी किसी न किसी से प्रभावित होते हैं। किसी के विचारों पर चलते हैं। रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत गीता, वेद, पुराण, उपनिषद आदि उच्च कोटि के साहित्य हैं। मेरे विचार में ईश्वर ने सृष्टि से पहले साहित्य का निर्माण किया होगा, तभी तो उनके मन में सृष्टि को सुंदरता और कुरूपता के बीच, कमियों एवं खूबियों के बीच रखकर छोड़ दिया जो साहित्य की मदद से दिन-प्रतिदिन फलती-फूलती रही और विकास की ओर अग्रसर होती रही। जहां एक ओर साहित्य का सदुपयोग विकास की ओर आगे बढ़ने में सहायक है वहीं कुंठित मानसिकता के लोगो द्वारा इसका दुरुपयोग सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश का कारण बन सकता है।

साहित्य :  समाज का हित अर्थात वह वस्तु है जिसका निर्माण संसार के हित के लिए हुआ, जो समाज के लोगों को आपस में जोड़ने के लिए आवश्यक है। संसार के अनेक श्रेष्ठ बौद्धिक क्षमता वाले मनुष्यों ने अपनी क्षमता के अनुसार साहित्य की सेवा की। हालांकि वक़्त वक़्त पर साहित्य का रूप बदलता रहा, यह कल्पनाशीलता एवं वास्तविकता के मध्य एक विशाल सेतु का कार्य करता है। आप जैसा पढ़ते हैं, सुनते हैं और देखते हैं ठीक वैसा ही बनने की कोशिश करते हैं। संसार के कई महान आविष्कार साहित्यिक कारणों एवं महत्वों को दृष्टि में रखकर हुए हैं। देखा जाए तो साहित्य के बिना मनुष्य पशुओं से भी बुरे स्तर में होता, क्योंकि साहित्य से ही सीखने की क्षमता आती है।

हम सब साहित्य से जुड़े हुए हैं, हम किसी वास्तविक अथवा काल्पनिक पात्रों की तरह बनने का प्रयास करते हैं। मैं जब करीबन साढ़े चार साल का था तब मेरे चाचा जी ने मुझे "सुपर कमांडो ध्रुव" की पहली कॉमिक "प्रतिशोध की ज्वाला" पढ़ने के लिए दिया। हालांकि तब मुझे क ख ग... भी नहीं आता था, मगर छः महीनों की लगातार कोशिशों से मैंने धीरे धीरे एक एक शब्द को तोड़ते जोड़ते पढ़ ही लिया। और धीरे धीरे कॉमिक्स से गहरा जुड़ाव हो गया, मैंने ध्रुव की तरह बनना चाहा। मुझे कॉमिक्स और कहानियां, उपन्यास आदि पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। यदि मुझे चाचा जी ने वह कॉमिक नहीं दिया होता तो शायद मैं आज कुछ लिख भी नहीं रहा होता।

साहित्य आपकी मानसिकता, विचारधारा आदि को बदलकर विराट करने की क्षमता रखता है, आप जितना सीखेंगे और दूसरों को सिखाएंगे, बताएंगे साहित्य उतना ही अधिक विस्तृत होगा।

साहित्य,  समाज में नासूर बन चुके तत्वों का रामबाण इलाज है। यह लोगो को अपनी बात रखने का मौका देता है। कुछ लोग लिखकर अपनी बात दूसरों तक पहुँचाते हैं, कुछ उसे पढ़कर उसके विचारों से अवगत होते हैं। सदियों साहित्य का प्रयोग वास्तविकता की समस्याओं एवं खूबसूरती को दिखाने के साथ कल्पनालोक से अवगत कराने में बखूबी होता रहा है, और हमारे महान साहित्यकार नित इसकी सेवा में जुटे हुए हैं।

#MJ
#साहित्य

©मनोज कुमार "MJ"

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18 Comments

Mahendra Bhatt

14-Jul-2021 05:27 PM

बेहतरीन

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Dhanyawad

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🤫

12-Jul-2021 11:27 AM

सुंदर.....विचार प्रस्तुति!

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Dhanyawad

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Kumawat Meenakshi Meera

12-Jul-2021 05:18 AM

बहुत सुंदर

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Shukriya

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