रिश्तों की राजनीति- भाग 5
भाग 5
पुणे की नाईट लाइफ का अपना ही एक मज़ा था। अक्षय अक्सर शनिवार की रात अपने दोस्तों के साथ कोरेगांव पार्क में स्थित कोको-सुशी एंड बार नाईट क्लब में ही बिताता था। पूरी रात नाच-गाना शराब चलती थी। अक्षय का वर्तमान भी सुरक्षित था और भविष्य भी। उसे सपने देखने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी, उसके बाबा ने पहले से ही उसके लिए सपने देखे हुए थे और वो उन्हीं सपनों की पृष्ठभूमि तैयार करने में लगे हुए थे।
देर रात जब अक्षय घर लौटा तो बाबा जगे हुए थे। उन्हें यूँ देर रात तक जागता हुआ देखकर वो हड़बड़ा गया।
वो कुछ कहता इससे पहले बाबा ने कह दिया….अपने कमरे में जाकर चुपचाप सो जाओ, सुबह बात करते हैं।
जगताप पाटिल को सुबह 10 बजे पार्टी मीटिंग के लिए निकलना होता है। आठ बजे तक वो अक्षय का अपने कमरे में इंतज़ार करते हैं। जब वो नहीं आता तो वो गुस्से से उसके कमर की ओर चल पड़ते हैं। अक्षय को उठाने की कोशिश करते हैं, जब वो नहीं उठता तो जग में पड़ा ठंडा पानी उसके मुँह पर फैंक देते हैं। अक्षय एकदम हड़बड़ाकर उठ जाता है। गुस्सा तो मन ही मन उसे बहुत आ रहा होता है, लेकिन बाबा को सामने देखकर अपने गुस्से को किसी तरह नियंत्रण में कर लेता है।
जल्दी से यह ब्लैक कॉफी पियो और फ्रेश होकर आओ, मुझे तुमसे बात करनी है।
जी बाबा....
अक्षय फटाफट ब्लैक कॉफी पीता है और 10 मिनट में फ्रेश होकर बाबा के सामने बैठ जाता है।
हाँ, क्या गुरुमंत्र दिया था तुझे कॉलेज की शुरुवात में, याद है कि नहीं?
याद है बाबा……"चोरी ऐसे करो कि पकड़े ना जाओ, ऐश करो पूरी लेकिन साधुओं में गिने जाओ"।
याद है ना तो फिर नाईट क्लब में जाकर इतनी शराब क्यों पी कि लड़खड़ाते हुए घर आया?
तू एम.एल.ए जगताप पाटिल का बेटा है, किसी अमीर व्यापारी का नहीं। अगर किसी पत्रकार ने तेरी शराबियों वाली हालत में फोटो खींच ली और अखबार में इस हैडलाइन के साथ फोटो डाल दी " एम.एल.ए जगताप पाटिल का बेटा शराब और शबाब के साथ मस्ती करता हुआ नाईट क्लब में देखा गया" तो सोच मेरी इज़्जत का क्या होगा। मेरा तो राजनीतिक कैरियर बर्बाद हो जाएगा। पेपर खत्म होने के बाद तेरे विदेश घूमने का इंतज़ाम कर दूँगा, जितनी ऐश करनी है वहाँ जाकर कर। यहाँ तेरी छवि पर एक दाग भी नहीं आना चाहिए। तेरी छवि पर दाग मतलब मेरी छवि पर दाग। समझा कि नहीं?
समझ गया बाबा....
अगले होने वाले चुनाव में मैं तुझे टिकट दिलवाने के चक्कर में लगा हूँ और तू नाईट क्लब में फंसा पड़ा है। कॉलेज में अपनी अच्छी छवि बनाकर रख, आगे काम आएगी और थोड़ा सामाजिक कार्यों में ध्यान दे। नाईट क्लब जाने की बजाय सप्ताह में एक दिन अनाथाश्रम या वृद्धाश्रम में एक-दो घँटे बिता, कुछ दान-पुण्य कर। मीडिया वाले अपने आप पहुँच जायेंगे फोटो खींचने और तेरी छवि एक अच्छे युवा की बन जायेगी।
जगताप पाटिल ने आँख मारते हुए कहा…कुछ भेजे में गया कि नहीं तेरे?
अक्षय ने भी मुस्कुराते हुए कहा…..जी बाबा, अच्छे से समझ गया।
अक्षय को अपने बाबा की "साधु में शैतान" वाली छवि पसन्द थी। वो खुली आँखों से सपना देख रहा था…….सफेद कुर्ता पायजामा पहने हुए अक्षय जगताप पाटिल खुद को एम एल ए की कुर्सी पर देख रहा था। सत्ता का भी अपना नशा है, जिसको इसकी लत लग जाए, वो अंतिम सांस तक इसे पाने की लालसा में किसी भी हद से गुज़रने के लिए तैयार रहता है।
अक्षय अपने बाबा के जाते ही गहरी नींद में सो जाता है।
अक्षय जब दोपहर के समय भी खाना खाने के लिए नहीं उठता, तो उसकी बड़ी बहन सिद्धि उसके कमरे में उसे उठाने आती है। जैसे ही उसके ऊपर से चादर हटाती है तो एकदम से उसकी नाक में शराब की गंध का भभका आता है। वो उसे डाँटते हुए कहती है…..झोप झाली कि नाही झाली? उठ अत्ता (नींद पूरी हुई कि नहीं हुई, उठ अब)
अक्षय चल उठ, खाने का समय हो गया है।
सिद्धि ताई सोने दो न? मुझे भूख नहीं है।
अरे! भूख कैसे नहीं है? शराब पीने वालों को तो ज़्यादा खाना चाहिये। ऐसे खाली पेट रहने से लीवर खराब हो जायेगा, फिर बाबा की कुर्सी कौन सम्भालेगा?
ताई ताना मारना जरुरी है क्या? बेवड़ा नहीं हूँ मैं, बस कल ज़रा सी ज़्यादा हो गयी।
ठीक है, नहीं मारती ताना, जल्दी से नीचे आ जा खाना खाने।
कुछ ही देर में अक्षय खाना खाने नीचे पहुँच जाता है।
खाने में क्या बना है ताई?
वरन भात आणि भाकरी-मेथी ची भाजी (दाल चावल और ज्वारी की रोटी- मेथी की सब्जी)….
ये क्या ताई, रविवार के दिन भी कोई वरन भात खाता है। मैं नहीं खाऊंगा यह खाना।
अक्षय गुस्से में टेबल से उठकर जाने लगता है, तभी सिद्धि उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लेती है और कहती है…..अरे मैं मज़ाक कर रही थी। मैंने खुद तेरा मनपसन्द मटन-भाकरी, भात बनाया है। फटाफट खाकर देख और बता कैसा बना है?
अक्षय खाते ही बोलता है…..वाह ताई, मटन तो एक नम्बर बनाया है आपने, मज़ा आ गया खाकर। लेकिन आपने क्यों मेहनत की, काका है न बनाने के लिए।
हाँ, वो हैं बनाने के लिए, बस आज मन किया अपने भाई के लिए उसका मनपसन्द खाना बनाने के लिए। आज माँ जिन्दा होती तो वो हमें बनाकर खिलाती। यह कहते-कहते सिद्धि की आँखें नम हो गई।
अब रोओ मत ताई, चलो साथ मिलकर खाना खाते हैं। आज मैं तुम्हें अपने हाथ से खाना खिलाऊँगा। दोनों भाई बहन प्यार से बैठकर एक दूसरे के साथ खाना खाते हैं। खाना खाकर अक्षय वापिस अपने कमरे में चला जाता है और सिद्धि मन ही मन सोचने लगती है……अक्षय दिल का बुरा नहीं है लेकिन बाबा के जरूरत से ज्यादा लाड़ प्यार ने उसे गलत राह की तरफ धकेल दिया है। बाबा उसकी गलत हरकतों पर समझाने की बजाय उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं। इसी कारण अक्षय बिगड़ता जा रहा है। बाबा की राजनीति कहीं अक्षय की जिंदगी पर भारी न पड़ जाए। ऐसी राजनीति भी किस काम की जो औलाद पर भारी पड़ जाए।
❤सोनिया जाधव
Haaya meer
10-May-2022 05:53 PM
Amazing
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Muskan khan
10-May-2022 05:34 PM
Very nice
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नंदिता राय
10-May-2022 04:52 PM
👏👏
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