क्षणिकाएं–४

क्षणिकाएं –४
(१)

शब्दों के इस बवंडर में
रिश्तों को घिरते देखा है।
रिश्तों को बनते देखा है
रिश्तों को बिखरते देखा है।।

(२)

एक के पास नमक है दूसरे के पास मरहम है

कमबख्त तलाश लेकिन दोनों को घाव की ही है।।

(३)

रात भर जिन ख्वाबों को हम बुनते रहे
सुबह उठे तो सपने टूट गए
सच्चाई के धरातल पर गिर कर चकनाचूर हुए।।

आभार – नवीन पहल – ०९.०५.२०२२ 💐👍🌹🙏

# नॉन स्टॉप 2022


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9 Comments

Haaya meer

10-May-2022 06:28 PM

Amazing

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Neha syed

10-May-2022 11:35 AM

Very nice

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Simran Bhagat

09-May-2022 08:03 PM

Nyc🔥🔥

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