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बस चाय तक ! सीझन 2, भाग-4, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज २०२२ भाग-5

बस चाय तक S2 P4  10/05/२०२२, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज २०२२ भाग-5

हेल्लो लेखनी हाव आर यु ? एन्ड हाव आर माय फ्रेन्ड्स ? हॉप एवरीथिंग इज फाइन|

चलिये आ जाइए हमारी टेबल पर चाय के लिये| हम लेट लतीफ़ ही सही......ग्रेट तो है|

ये पढ़कर गुस्सा न करना प्लीज....वैसे मै कितना भी मिन्नतें करू....यहा इस मंच पर एक तो है ही, जो गुस्सा करेंगे/गी ही...|

न न गुस्सा ठीक न होता सेहत और मन दोनों के लिये...नहीं मानते हो न... कैसे मानोगे/गी...जब तक समजाते नहीं, आप थोड़े ही समजने वाले/ली हो| चलिये आज उसी विषय पर बात करते है तब तक चाय बन रही है....बिस्कुट खा सकते है| (बिस्कुट से ‘वेलकम’ मुवी का डायलोग याद आ गया....साला आजकल बिस्कुट को भी ‘जी’ बोलना पडता है...’पारले-जी’)

होता क्या है जब हमारे मन का चाहा नहीं होता..या अपेक्षा से विरुद्ध कुछ भी होता है तब मन नदी के दो किनारों में फस जाता है| असमंजस की स्थिती में मन वही सोचता है जो बाहरी से हमें लगता है की ये होगा तो श्रेष्ठ ही होगा| जब सामनेवाला  ऐसा निर्णय लेता है जो आप को लगे की सही नहीं है या आप के लिए नुकासानकारक है या आप की नीजी फायदे से विरुद्ध जा रहा हो तक दिमाग की हड्डीया हील जाती है| (यहाँ हड्डीया की जगह ज्ञानतंतु पढ़ना)| और गुस्सा आने से फिर जुबान से जो अम्रितवाणी नीकलती है न उस की तो बात ही न पुछो। बस समजो कितना भी शाणा दिखता आदमी गुस्से मे अपनी असली औकात पर उतर आता है। यकीन नही होता तो एक इस्टोरी सुनाता हु....

अकबर बादशाह के दरबार मे सर्दीयो के मौसम मे एक कलाकार आया और 15 मिनिट मे अलग अलग भाषा मे अपनी जुबान से बाते की और फिर बादशाह को चेलेन्ज दिया की, ”महाराज, आप बताइये मेरी मातृभाषा कौन सी है?”

अकबर बादशाह के दरबार मे कुछ भी प्रोब्लेम हो, वाट हमेशा बीरबल की लगती थी। इस बार भी वो मन ही मन सोचता था की ये साले कहा कहा से आ जाते है जो मुजे चैन से जीने भी नही देते है...इतने मे ही अकबर ने फरमान कर दिया की कल तक इस का जवाब बीरबल देगा। बस फिर क्या था बीरबल मर गया जीतेजी।

बीरबल ने कितनी बातो मे उस कलाकार को उलझाया, गुस्सा करवाया, हसी मजाक किया, लिखाया, पढाया....साला वो हर एक मौके पर अलग अलग ही बोलता, लिखता और वर्तन करता था। बीरबल भी परेशान की ये गुस्से के वक़्त भी भाषा पर अजब गजब का कंर्ट्रोल कर लेता है। अब क्या किया जाये?

देर रात तक वो सोचता रहा...फिर उस के दिमाग की बत्ती जली (मेंटोस खा लिया होगा  या फिर बीरबल के दिमाग मे दो से ढाइ हजार की हेलोजन होती होगी शायद)। वो मध्य रात्री 3 बजे जागा और उस कलाकार के कमरे मे जाने से पहले दो चाकरो से एक कढाइ मे बिल्कुल ठंडा पानी लेकर आने को बोला। फिर धीरे से कमरे के अन्दर आया। दो चाकर धीरे धीरे बीना आवाज किये उस कढाइ को अन्दर तक ले आये और बीरबल के इशारे पर उस कढाइ का सारा पानी उस कलाकार पर फेका और बीरबल जल्दी से वापस भाग गया।

रात्री का दुसरा प्रहर और सर्दीयो का मौसम और उपर से ठंडा पानी.....कलाकार हक्का बक्का उठा और सर्दी से शरीर काप रहा था और उस ने पास मे दो चाकर देखे। फिर क्या था....उन दोनो पर जो अम्रितबाणी बरसाइ है....क्षमा करे...सोशियल ग्रुप है इसिलिये वो सारा शब्दकोश यहा नही लीख सकते। लेकिन दुसरे दिन दरबार मे बीरबल ने बता दिया की उन की मातृभाषा वही थी जिन भाषा मे महाशय ने गालीयो की बौछार कर दी थी। कलाकार ने अपनी हार स्वीकार कर ली और वापस चल दिये।

कहने का मतलब है विपरित परिस्थितियो मे इन्सान जब अपना आपा खो बैठता है तब वो अपनी असली जात पर उतर आता है। वो कलाकर भुल गया था की अगर उस वक़्त अपने होश खो नही बैठता तो बात कुछ अलग हो सकती थी।

गुस्सा करने से पहले उस वक़्त इतना ही सोचना होता की सामनेवाली की स्थिति, परिस्थिति और इच्छा जब तक न जाने और जब तक सामनेवाले के जवाब से उस सामनेवाले को क्या फ़ायदा नुकसान हो रहा हो, उसे जब तक पूर्णतः नहीं पहेचान पाते तब तक गुस्सा नहीं करना चाहिये | सायकिल और जिदगी तब ही चल पाती जब उस में चेन हो|(गलती मत निकालना....भाव समज लो बस)|

एक किस्सा सुनाता हु... बात पुरातन काल की है लेकिन हम शब्दप्रयोग आज के ज़माने का ही करेंगे इसीलिए माफी चाहता हु अगर कीसी को ठेस पहुचे तो......

भारतवर्ष में जैसे प्रधानमंत्री सर्वे मंत्री के राजा होते है ( ऐसा कहा और मान लिया जाता है, जब की आज कल तो किंगमेकर का जमाना है) ठीक वैसे ही स्वर्ग में देवो का राजा इन्द्र होता है| इन्द्र राजा बदलता रहता है| एक काल में रावण के पुत्र मेघनाद भी इन्द्र रह चुके थे...इसीलिए उस का नाम इन्द्रजीत था क्युकी मेघनाद ने एक बार युद्ध में उस वक़्त के इन्द्र को हराया था | होता है न कभी कभी हम सोचते है उस से विपरीत पार्टिया भी राज कर लेती है (हमारे देश में भी...ठीक वैसे ही इन्द्र भी बदलते रहते है) | वैसे आप में से कीसी ने महादेव सीरीज देखी हो तो पता चलेगा की देवो में भी इन्द्र विलन का ही काम करता था उस सीरीज में| (सत्ता कीसी को शांती से बैठने नहीं देती....कमी_...बहुत बुरी चीज होती|

बस ठीक वैसे उस समय इलेक्शन में कोई ऐसा इन्द्र आ गया था जो भोग विलास में मस्त रहा करता था और संतो, साधुओ रीषीमुनिओ पर ध्यान नहीं देता था तो असुरो की ज्ञाति बढ़ चुकी थी और परिणाम स्वरूप रीषीमुनियो के तप जप यज्ञ में बाधाये बढ़ रही थी|

होता है न की अपने इलाके, महोल्ले में कोई सरफिरा आये तो लोग एकजुट हो ही जाते है और फिर ढूढते है कीसी बकरे को हलाल के लिये (मेरा मतलब है कीसी केप्टन को)।

उस समय दुर्वासा मुनि निकट थे तो उन्ही के पास सर्वे रीषीगण पहुच गये और बीनती कर दी की वे कुछ उपाय करे और असुरो से बचाये|

दुर्वासा मुनि ने सब रीषीगण को सांत्वना दी और चले इन्द्र के पास। जब वे इन्द्रलोक पहुचे तब देवो के राजा इन्द्र सुरापान कर रहे थे| ये सोने के पैमाने मे पेग पे पेग चल रहे थे और आसपास अप्सराये नृत्य कर रही थी (ये अजीब होता नहीं ? जहा सत्ता होती....मन बहलाने वाली अप्सराये हमेशा हाजिर ही होती...)...बीच में एक छोटा सा हास्य ले लेता हु...गाव के चौराहे पर बुजुर्ग लोग हुक्कापानी कर रहे थे....(ये बुढाव जब कुछ काम के नही रहते तो उसे मजबुरन चौराहे पर ही क्यु भेज देते होंगे ?) और उस वक़्त वहा धर्म की चर्चा हो रही थी| एक वक्ता कुछ ज्यादा ही धार्मिक था तो देव..अप्सराये...जप तप... की बाते कर रहा था तो कुछ बुजुर्गो ने आपस मे सोच विचार और परामर्श किया और एक तो बोला भी,”भाई हमने सोचा की अब तो जीवन जी लिया...संसार से अब रिटायर होने का समय आ गया है...सोच रहे है की हिमालय में चले जाये|

उस वक्ता को बड़ा आश्चर्य हुवा और पूछा,”अरे दादा हिमालय जाकर का करोगे?

“तप करेंगे”

“तप और हिमालय में, काहे ?

पाइप में से धुँआ उड़ाते हुवे बूढ़े एक दुसरे को देखकर बोले,”सूना है हिमालय में अपसराए आती है तप भंग करवाने के लिये...”

“ओये, बूढ़े....वो विश्वामित्र के लिए केवल मेनका आयी थी और वो भी विश्वामित्र के तप, ध्यान साधना से इन्द्र को डर लग गया था की ये मेरी गद्दी छीन लेगा इसीलिए मेनका नाम की अप्सरा को भेजा था| तुम क्या अपने आप को विश्वामित्र समजते हो हे ?  अबे सालो ठंडी में सिकुड़ जाओगे...मर जाओगे...कोई नहीं होती अप्सरा बप्सरा...और तुम जैसो के लिये वो फ्री बैठी होगी का? साले हवसी कही के|”

उस का जवाब सुन ने के बाद बूढ़े लोगो ने एकसाथ पाइप बूजाई और उन में से एक धीरे से बोला,”तो फिर काहे हिमालय जाना....यही ठीक है...वो तो क्या है हमने सोचा था की तपभंग करने मेनका जैसी कोई मिले तो बरसों के बाद तरसे मन को सुकूने मिले”

लो कल्लो बात....जीवन के अंतिम पड़ाव में भी बुढाव को अप्सराये नहीं छूटती.....

चलिये लौटते है अपने मूल प्वाइंट पर...

हा तो हमारे इन्द्र साहब सुरापान कर रहे थे और अप्सराये नाच रही थी| और क्रोध का दूसरा स्वरूप मुनि दुर्वासा पहुचे स्वर्गलोक में| दूर से मुनि दुर्वासा को देखकर ही इन्द्र भाईसाहब की चढी सारी उतर गई| (आई मीन शराब...)| किन्तु देवो के केप्टन इन्द्र का मुह उतरता देखकर अप्सराओ को लगा की उन के नृत्य मे कुछ कमी है और राजा खुश नहीं है तो वे सब तो लगी जोर जोर से उछलने ता...धिन..तीना...ता..धिन तीना...और....हादसा हो ही गया। एक अप्सरा की कोहनी मुनि दुर्वासा को छू गई|

वैसे कोई और होता तो खुश हो जाता (क्यु नहीं होता अप्सरा हाथ लगाये ये कीस को अच्छा नहीं लगेगा....बस बस अपने मुह में आये पानी को पौछ लो भाइओ...) किन्तु ये थे क्रोध के सरदार मुनि दुर्वासा......न आव देखा न ताव दे दिया अभिशाप...श्राप....।

‘जा तुजे उछलने और कूदने का बहुत शौख है न, तो जा आज से तु पृथ्वी लोक पर घोडी बन जायेगी’ (इस की तो.....अब इधर घोडी बनाने का का मतबल...मेरा मीनिंग है मतलब...)”

अप्सरा ने पीछे मुड़कर देखा तो क्रोधाग्नी में कापते हुवे दुर्वासा मुनि को पाया| अब सत्ता के आगे शानपटी तो भैया उस जमाने में भी अलाउड़ नहीं थी| वो अप्सरा तो हाथ जोडकर बोली, ”महर्षी..आप का श्राप मेरे सर पर लेकिन मै तो अपना कार्य, अपनी ड्युटी ही निभा रही थी....मै नहीं आई हु आप के आश्रम...आप आये हो इन्द्रलोक| हमे तो कोइ सुचना भी नही है की आप आ रहे हो, तो बताइये हमे कैसे पता चलता की आप पीछे खडे हो भला ?”

बात तो सच्ची थी...मेहमान खुद मेजबान की वाट लगा रहे थे (लगा चुके थे)| दुर्वासा का क्रोध जैसे ही शांत हुवा और सोच ने के बाद जवाब दिया,”सोरी बेटी....लेकिन अब श्राप दे दिया तो दे दिया...एक बार कमिटमेन्ट कर दिया तो हम खुद का भी नहीं सुनते| (ये दबंग शब्द की शुरुआत वही से हुइ होगी.... शायद)।”

“कुछ तो उपाय बताओ...कब तक घोडी के अवतार मे जीवन व्यतीत करना होगा ?” अप्सरा ने पूछा| (मन में तो गालीया फुट रही होगी लेकिन क्या करती....सामने क्रोध का दादा खड़ा था और वो अकेली अबला नार.... सोरी अप्सरा...)

“जब पृथ्वी पर एक साथ साढ़े तीन वज्र इकठ्ठे हो जायेंगे उस दिन तेरा उद्धार होगा और तु वापस अप्सरा के रुप मे इन्द्रलौक मे लौट पायेगी| मुनि दुर्वासा ने इतना बोलकर इन्द्र की ओर मुह मोड़ लिया....(आगे इन्द्र महाशय का क्या हाल हुवा होगा वो सब वाचक अपनी अपनी मती के अनुसार सोच लीजियेगा...(हमे जब नेता पीटे जाते है तो पढना और देखना नही चाहिये)| हमारा मुल मुद्दा है ‘क्रोध’..तो उसी के बारे मे चर्चा करेंगे।

वो काल था महाभारत के युद्ध के बाद का और मेच जीतने के बाद पांडव के मेनेजर भगवान श्री कृष्ण द्वारिका में आराम फरमा रहे थे और पांडव हस्तिनापुर मे| द्वारिका और हस्तिनापुर के बीच पक्का तो पता नही है लेकिन शायद पांचाल देश ही होगा जहा यमुना नदी के उस पार ये अप्सरा घोडी का अवतार बनकर उतरी |

इस राज्य के राजा का नाम था डान्गेव महाराज जिन का राज चल रहा था| नदी के इस पार राजा के घोड़े लंच ले रहे थे और नदी के उस पार दिव्य घोडी को देखकर सब घोड़ो ने खानापीना छोड़ दिया (फर्स्ट साईट अट्रेक्शन तो जानवरों में भी होता है भाई...)।

लेकिन यहाँ कोई लव शव की बात नहीं थी..बस दिव्य घोडी के स्वरूप में शायद घोड़े उस को पहेचान गये थे| (इन धीस वे एनिमल इज ओल्वेज बेटर धेन ह्युमन बीइंग, धे नेवर गो फोर व्होट इज नेवेर फोर धेम) और इन्सानो मे तो लव शव की बात आती तो मर्डर तक बात पहुच जाती है।

तीन चार दिन ऐसा चला और राजा को पता चला की घोड़े लंच डीनर छोड़ चुके है| तो अश्वपाल को बुलाया...पूछा तो दिव्य घोडी के बारे में पता चला और राजा उस घोडी को अपने गृह ले आये और खुद अपने हाथो से देखभाल की| रात के दुसरे प्रहर में घोडी ने अप्सरा का स्वरूप लिया और राजा ने देख लिया और उस ने तलवार निकाली..”कौन... कौन... हो तुम ? चुड़ैल.....राक्षसी या की भुतनी.. प्रेतनी (ये शब्द सही है वो मुजे पता नही...लेकिन कोमन सेन्स से इतना सोचा की प्रेत की नारी जाति प्रेतनी हो सकती....बाकी आप लोग जो समजे वो ही बेटर रहेगा) ?..

अप्सरा मन में बोली....जहा देखो क्रोध क्रोध क्रोध...फिर उस ने राजन को पुरी बात बताई और कहा, ”राजन ये सीक्रेट..सीक्रेट ही रहना चाहिए...अगर कीसी और को पता चला तो मै आजीवन घोडी के अवतार मे ही रहुंगी।“

“अरे डोन्ट वरी मेरे पुत्र तक को नहीं बताऊंगा बस एन्जॉय योरसेल्फ....” राजा ने बोल दिया|

“वन मिनिट योर ओनर...आप मुझे कीसी को भेट भी नहीं दे सकते” अप्सरा ने फिर से उसे रोककर उस के उत्साह को देखकर धीरे से बोला|

“डन....आई वील नोट गिफ्ट यु एनीबडी... बस प्रोमिस...” महाराज क्षत्रिय धर्म से बंध गये|

अप्सरा तो विचरने लगी सब अन्य घोड़े और घोडियो के साथ|

लेकिन द्वारिकाधीश के पुत्र प्रद्युमन का पुत्र अनिरुद्ध एक दिन इस दिव्य घोडी को देख लेता है और श्री कृष्ण से वो घोडी मांगता है.....दुसरे दिन कान्हाजी की ओर से एक कुरियर राजा को पहुचता है, ”भाई श्री डान्गेव ब्रधर...या तो घोडी दो या युध्द के लिए तैयार रहो....।” (नेताओ मे एक ये भी अवगुण होते..अपने संतान के लिये सब भुमि गोपाल की समजते...ओह नो...ये तो खुद गोपाल का ही पौत्र था न...भुल गया....इन फेक्ट सारा संसार उसी का ही हुवा न और हम छोटी छोटी चीजो के लिये लडते रहते...सनकी कही के..बोले तो मै...)

कुरियर को राजसभा मे जैसे पढा गया और डान्गेव साहब की नींद उड़ गयी और सीधे दौड़े हस्तिनापुर सम्राट युधिष्ठिर के पास.,”शाब...आप के भाई भीमसेन और अर्जुन को भेजो न कुछ सैनिको के साथ...एक लड़ाई हो सकती है|

भीमसेन गदा लेकर खड़े हुवे, “कौन है वो माई का लाल.....जिस ने हस्तिनापुर के दोस्तो को परेशान करने की जुर्रत की है....नाम बताओ...नाम समेत पूरा राज्य ही मिट्टी में मिलाइ देंगे...।

राजा ने बोला, ”वो जाने दो ना भीम भाइ...सिर्फ काम से काम रखते न....”

भीमसेन बोले, “ अबे...नाम बतायेगा तभी तो उस के साथ लडाइ लडॅने जायेंगे ना....तुम नाम नही बताओगे तो क्या अन्धेरे मे तीरे चलायेंगे हे भाइ ?”

भीम जी को गुस्सा देखते हुवे डांगेव मन मे ही बोल उठे.”नाम बताया तो वैसे भी साथ नही चलनेवाले...।“

उसे सोचते हुवे देखकर सम्राट युधिष्ठिर खडे हुवे और बोल उठे,”राजन आप निश्चिंत रहे...आप हमारे मित्र है और मित्र पर संकट की घडी मे हम सब भाइओ आप के लिये जान की बाजी लगा देंगे...आप निर्भयी होकर नाम बताइये।“

अब डांगेव साहब के पास दुसरा कोइ चारा भी न था इसिलिये बताया, “श्री कृष्ण....”

सारे के सारे बैठ गये अपनी जगह पर..और भीम को तो गुस्सा आ गया, “अबे सनकी कही के...भाइ भाइ को लडवायेगा क्या ? और केवल एक घोडी के लिये हे? ये नही हो सकता हो भाइ...आप नीकलो जैसे आये हो वैसे ही”।

महाराज ने बाजी बिगडती हुइ देखकर पुरी कथा सुनाई और बोले, ”साब हमने आप का नमक खाया है...आप को नियमित 31 मार्च पहले टेक्स चुकाते है..रक्षा करो...।”

भीम, अर्जुन समेत सम्राट बोले, ”ब्रधर....हम ने इतिहास का सब से बड़ा युद्ध महाभारत कान्हाजी साथ में थे तब ही जीत पाये थे...और रिश्ते में वो हमारे चचेरे भाई लगते है...नाम है श्रीकृष्णा...उन के सामने हथियार नहीं उठा सकते...तुम घोडी दे दो और यहाँ से पलायन कर लो...माफ़ करो...एक धोडी के लिए भाई को भाइ के हाथो ही मरवाओगे क्या? (आजकल हर पड़ोसी राज्य में यही चलता है...पता नहीं क्यु?)|”

राजा निराश लौट गये....इधर भीमसेन बोले,”बड़े चले आते है भाइयो में फुट डालनेवाले....निकम्मे कही के।”

राजा ने सोचा की नदी किनारे स्युसाइड कर लेता हु...मरने के बाद घोडी जाने और उस का नसीब...मेरे जीते जी आंच नहीं आयेगी और मरने के बाद अपुन को कोई लेना देना नहीं...हर सूरत में मेरी प्रतिज्ञा कायम रहेगी|

राजा ने किये लकडे इकट्ठे और यमुना तट पर खुद की चिता सजाई....जैसे ही आग लगाइ और कुदने गये.....उतने में ही अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित जो केवल 5 साल का था उस का आगमन हुवा...था तो 5 साल का लेकिन बुध्धी 55 साल की थी| उस ने राजा को मरने से रोका और सारी बात जानकर इतना ही बोला,”हम क्षत्रिय है..रक्षा करना हमारा धर्म है...आप चिंता न करे...हम सारे दादा को समजाते है...(ये दादा, दादी हमेशा फेमीली मे समस्या ही क्रियेट करते रहते है....उन्हे समजाना पडता है हमेशा आज की पीढियो को) ”

इधर डिनर में परीक्षित को नहीं देखकर युधिष्ठिर महाराज ने बारी बारी नकुल और सहदेव को भेजा....लेकिन परिक्षित ने ऐसे ऐसे ताने मारे की दोनों भाई उधर ही बैठ गये| अब अर्जुन आये...उसे परीक्षित ने बोला,”दादू...कहा गया आप का गांडीव ?...आप के पास आनेवालों की रक्षा नहीं कर पाते का? जिस ने गीता सुनाई थी की लड़ते वक्त रिश्ते नाते कुछ माइने नहीं रखते आज उन के सामने लड़ने की बात आई तो गीता भूल गए का?” और बस इतने ताने ही भारी पड रहे थे तो अर्जुन भी वही नदी किनारे चुपचाप बैठ गये|

अब आये भीमसेन...बालक बोलता है,” दादू...बूढ़े हो गये हो का? आप कीं चंगी गदा का पावर खत्म हो गया का? इतने हाथीयो के बलवाले भीमसेन एक सामनेवाले के नाम से डर गये और हथियार चलाने से मना किया और आश्रय मे आये हुवे मित्र के हेल्प करने से इन्कार कर दिया? आप का क्षत्रिय धर्म किथे गया हे?” और इतना सुनकर भीमसेन भी बैठ गये ताने खाकर...

अब सम्राट युधिष्ठिर खुद आये...इस बार बालक ने वो वो किस्से याद किये (यहा नही लिखता...आखीर धर्मराजा की बात है यारो) लेकिन बालहठ के सामने तो उन की भी एक न चली| आखिर में फिक्स हुवा की कान्हा के सामने युद्ध किया जाये...मौत मिलेगी तो भी तो त्रिभुवन नाथ के हाथो ही न...|

अन युद्ध तय हुवा तो व्युहरचना के बारे मे भी चर्चा हुइ। युद्ध की चिंता पांडवो को नही थी बल्की चिंता थी सुदर्शन की| क्युकी श्रे क्रिष्ना क्रोधित हुवे तो सुदर्शन प्रयोग निश्चिंत होगा ही।

इस बार भीमसेन ने कहा, ”बीडू उस का इलाज है अपुन के पास...मै महादेव का परम भक्त हु और सुदर्शन के सामने केवल महादेव का त्रिशुल ही चलता।“

युधिष्ठिर ने अपनी नजर भीमसेन उपर घुमाइ और हाथ जोडकर बोले, ”भ्राता..केवल एक रात में हों जायेगा ? एक रात मे महादेव को पटा लोगे ?”

“अरे फिकर नोट...हम है तो क्या गम है....” और भीमसेन चले महादेव की तपस्या करने|

आधी रात तक मेहनत की...महादेव नहीं उठे....भीमसेन ने सोचा,”ये देवो के देव है...मामूली तपस्या में तो रात चली जायेगी...कुछ जुग्गाड तो बनता है।“

इसिलिये एक नदी के बीच भीमसेन सो गये| नदी का पानी रुक गया और शिवालय के गर्भद्वार में घुस आया शिवलिंग पर| और महादेव व्याकुलता से उठे, ”ए भाई भीम...काहे तप ध्यान में विघन डाल रहे हो? का चाहिबे तुम का?

“भगवान जी सोरी जी..किंतु आप का त्रिशूल चाहिबे”

“मेड हो का? जानत हो त्रिशूल कोई खेलने की चीज नाही...उपयोग किया तो श्रुष्टी का विनाश हो जाइब|”

“अरे देव...हमें उपयोग केवल एक दिन ही करना, और जरुरत पडी तब ही|

“न...हम न देने वाले” महादेव ने मुह फुला लिया और आगे बोले,”तुम जानत हो की त्रिशुल का वार नही किया जा सकता..प्रुथ्वी का विनाश हो जाता है।“

भीमसेन पुछे,” वार नही किया जाता किंतु वार के आगे त्रिशुल खडा तो कर सकत है न ?”

तभी मा पार्वती पधारे और बोले,”अब बच्चे की जान लोगे क्या? जन्दगानी में एकही बार तो माँगा है दे दीजिये न त्रिशूल, केवल वार के आगे खडा ही तो करना है।”

“अरी पारवती, वो लाइसेन्स वाला है”

“कोनो बात नहीं...एक दिन में का फर्क पड जावत” मा पार्वती ने जो जोर डाला और दोस्तों दुनिया में कोई पति पैदा नहीं हुवा जो पत्नी की बात टाल पाया हो....मतबल...भीमसेन को त्रिशूल मिल गया|

इधर युध्द की व्यूह रचना बनाई जा रही तो भीमसेन ने वापस आकर पुछा, ”मुझे क्या करना है?

नकुल ने उंगली कर दी,”भ्राताश्रीआप को कल खाना नहीं है? क्युकी आप खाना खाने के बाद सो जाते हो...इसलिए आप को जागना है”

सम्राट ने कहा,”भ्राता भीम आप सेना के पीछे रहोगे और जैसे ही सुदर्शन का वार होगा तो आप को त्रिशूल आड़े ले आना है|

“ओके आई अन्डरस्टेंड” और भीम जी पहुच गये सेना के पिछले हिस्से में|

और दोनों ओर से सेना आ गई व्हीसल मार लिया गया दोनो ओर से और युद्ध शुरू हो गया| शुरुआत तो फुलजडिया और सुरसुरी पटाखों से हुई...फिर तो आने लगे...बम्ब पे बम्ब...अब कान्हा की सटकी...और उस ने सुदर्शन निकाला और चिल्लाए, ”आता माजी सटकली....” और कर दिया वार सुदर्शन का|

उसी वक्त पीछे से “हर हर महादेव” चिल्लाते हुवे भीम ने त्रिशूल का प्रहार किया| सुदर्शन और त्रिशूल टकराने से प्रलय शुरू हुवा और देखो दोस्तो दंगे में नेता लोग जिन्दा रहते और प्रजा हमेशा मरती| वही हुवा...सब टपकने लगे एक के बाद एक...|

प्रलय को देखकर कृष्ण धीरे से नजदीक आये और पांडव को पूछ लिए, ”अरे भाइओ काहे इतना जोर हम पर डाल रहे हो की त्रिशूल का उपयोग कर लिया और वो भी एक घोडी की खातिर हे ?

भीमसेन बोले, ”सोरी यार लेकीन तुम्ही ने तो शुरुआत करी....”

“वो तो सब ठीक है लेकिन अब का करे?” सम्राट बोल उठे|

और श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराये और पांडव के रथ की और इशारा किया जहा ध्वजा में हनुमान बीराजमान थे|

केवल एक इशारा देखकर हनुमान हाथ जोड़कर बैठ गये त्रिभुवन नाथ के पास और सजल नयनो से बोले,”पिछले युग मे तो आप ने पूरा उपयोग किया था भगवन, इस युग में एक काम भी नहीं दिया? इतना नाराज हो अपने दास से का?

“अब वो सब बाद में हनुमान...इस सुदर्शन और त्रिशूल को केवल आप ही रोक सकते...इसीलिए रोको” कान्हा ने ऑर्डर दिया|

“मै खुद बज्र हु इसीलिए एक क्षण में एक हाथ से सुदर्शन और दुसरे हाथ से त्रिशूल रोक सकता हु क्युकी मै ही महादेव का आठवा स्वरूप रूद्र हु| लेकीन फिर मै जब पृथ्वी पर गीर रहा होता तो कोई रोकनेवाला तो चाहिए न...वरना तीन वज्र हो जायेंगे तो केवल विनाश ही होगा|

भीमसेन आगे आये और बोले,”मै आधा बज्र हु...रोक सकता हु|”

“अरे रोकना नहीं बीडू...केवल हाथ रखो...हमें लेंडिंग के वक्त केवल सहारा चाहिए और कछु ना ही...”

और हनुमान आकाश की ओर जम्प लगाए...एक ही पल में एक हाथ से सुदर्शन और दुसरे हाथ से त्रिशूल समेत...नीचे लेंड किये तो भीमसेन धरा पर सो गये और उस के एक हाथ से हनुमान उस पर गीरे और उसी पल....

सुदर्शन एक...त्रिशूल दो....हनुमान तीन....और भीमसेन आधा......साढेतीन बज्र इकठ्ठे हुवे.....और वो घोडी फिर से अप्सरा बनाकर फुर्रर हो गई आकाश में....सीधी इन्द्रदेव के सभा में...और कुछ वर्षो के लिये... ले लिया....केज्युअल लीव....बोले तो छुट्टी....वेकेशन....|

 

अब का ?....किस्सा खतम...

सुबह हो गई मामू......मेरी चाय खल्लास तो इस्टोरी ख़तम.....अरे भाईलोग काहे गुस्सा कर रहे हो हम पर? इस्टोरी का मुद्दा क्या था....याद करो...ज्यादा गुस्सा अच्छा नहीं....एक दुर्वासा रीषी के गुस्से से तीनो लोक का सर्वनाश....भाई भाई की लड़ाई...मित्र सखा के बीच महायुद्ध हो गया...तो भाई लोग का समजे..गुस्सा करने से पहले सोचने का...एक गिलास ठंडा पानी पीने का...फिर सोचना की गुस्सा करे या नहीं? तो हम चले का ? वापस फिर कभी मिलते है...लेकिन अगली बार मिलेंगे....सिनेमा टोक पर.....मुघल-ए-आझम की सलीम और अनारकली की प्रेमकथा के पास....अगले सप्ताह मे.....तब तक....ब..बाय...। ओये अपनी अपनी चाय तो पीते जाओ....।


# नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज 2022 (पोस्ट 5)

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42 Comments

Shnaya

12-May-2022 04:06 PM

👌👏🙏🏻

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PHOENIX

12-May-2022 05:08 PM

Thanks

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Soniya bhatt

11-May-2022 07:16 PM

👌👌

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PHOENIX

11-May-2022 07:17 PM

Thanks

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Neelam josi

11-May-2022 05:44 PM

बहुत खूब

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PHOENIX

11-May-2022 07:16 PM

Thanks

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