लेखनी कहानी - घूंघट
घूंघट
विदिशा की नई नई शादी हुई थी। उसका ससुराल एक गांव में था। अच्छा खाता पीता परिवार था। धन धान्य की कोई कमी भी नही थी। पति भी गांव में ही सरकारी अध्यापक थे।
विदिशा जब दुल्हन बनकर अपने ससुराल आई ,तो उसकी सास ने उससे कहा," देखो बेटा, ये गांव है, यहां पर हमारे सभी से बहुत अच्छे रिश्ते हैं। यहां पर सभी औरतें घर के बड़े बुजुर्गों से घूंघट करती हैं। मैं तुमसे भी यही उम्मीद करती हूं कि तुम इस बात को समझोगी। तुम शहर में पली बढ़ी हो। हो सकता है कि तुम्हे ये सब थोड़ा अजीब लगे, पर अभी नया नया है, कुछ दिनों में तुम यहां के माहौल में ढल जाओगी। इसके अलावा और कोई बंधन नहीं है।"
विदिशा इस बात को समझती थी। वैसे तो वो घूंघट प्रथा के बिल्कुल खिलाफ थी। पर यहां ससुराल में नई नई थी तो कुछ कह भी नही सकती थी।
दिन कब महीनों में, महीने साल में बदल गए, पता ही नही चला। विदिशा अपने ससुराल के तौर तरीकों में घुल मिल गई। घूंघट की भी उसे आदत हो गई थी। सबसे मिल जुल रहना उसने सीख लिया। सास और पति उसको पूरा सम्मान और इज्ज़त देते थे। मजाल है कि कोई विदिशा के खिलाफ कुछ गलत बोल सके।
सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन विदिशा के ससुर की तबियत बहुत बिगड़ गई। घर पर सिर्फ सास और विदिशा ही थे। बिगड़ती हालत के कारण उन्हें जल्द से जल्द शहर के हॉस्पिटल में दाखिल करवाना था। घर पर कोई था नहीं। ऐसे में विदिशा ने हिम्मत दिखाई। घूंघट ओढ़े अपने कंधे का सहारा देकर उन्हें कार में बिठाया, साथ में सास बैठ गई। खुद उसने कार की स्टीयरिंग संभाली और कार चलाने लगी। घूंघट के कारण उसे थोड़ी परेशानी हो रही थी। उसकी सास ये सब देख रही थी। उन्होंने आगे होकर विदिशा को घूंघट हटाने को कहा। विदिशा ने घूंघट आंखों के ऊपर किया और हॉस्पिटल पहुंची।
उसने ससुर को एडमिट करवाया और बाकी की फॉर्मेलिटी पूरी की।समय पर हॉस्पिटल पहुंचने के कारण उसके ससुर की हालत स्थिर हो गई।
विदिशा की सास उसे गले लगाते हुए बोली, "आज तूने बहू के साथ साथ एक बेटे का फर्ज भी निभाया है। तुझ जैसे बहू पाकर मैं धन्य हो गई।अब से तुझे घूंघट करने की कोई जरूरत नहीं,"ऐसा कहते हुए उनकी आंखें भर आईं।
विदिशा अपनी सास की बातें सुनकर बोली, " मां जी, आपसे जो प्यार, सम्मान और अपनापन मुझे मिला है, ये मैं कभी नहीं भूल सकती। आपने मुझको एक ही बंधन में बांधा, वो है घूंघट। पर आज मैं इसे बंधन नहीं, आपके लिए मेरी श्रद्धा समझती हूं।" ऐसा बोल विदिशा अपने सास के गले लग कर रो पड़ी।
वही हॉस्पिटल के कोने में खड़े विदिशा के पति ऐसी पत्नी पाकर खुद को गौरवान्वित कर रहे थे। घूंघट में छुपी अपनी पत्नी के विचारों को सुन उसके प्रति सम्मान और बढ़ गया था।।
स्वरचित
प्रियंका वर्मा
11/5/22
Priyanka Verma
12-May-2022 07:46 PM
🙏💐 thank you so much all of you for your valuable reviews...
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Seema Priyadarshini sahay
12-May-2022 07:09 PM
👌👌👌👌
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Neelam josi
12-May-2022 06:08 PM
👏👏👌
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