उम्मीद
हमेशा की तरह दोस्तों के बीच बैठा हस बोल रहा था मैं
बस वक्त के खेल में कुछ यू गुम हो गया था मैं
फिर हुआ कुछ यूं की मोबाइल में आया एक नोटिफिकेशन और शांत हो गया
मैं फिर क्या दोस्त भी पूछ पड़े भाई क्या हुआ तुझे
और हमेशा की तरह मुस्कुरा के मैने बोला कुछ नहीं
मसला ये था कि दोस्त मेरे थे तुमसे अंजान
मुझे यूं शांत देख हो गए थोड़े से परेशान
मै उन्हें बताता भी कैसे की मेरी उम्मीद खो रही है
मै जितना भी समेटने की कोशिश करू वो रेत सी फिसल रही है
बस कुछ ऐसे ही वक्त के खेल में यूं गुम हो गया मैं
पर हम भी ठहरे ढीठ अन्त तक हार मानने वालो में कहा है
अरे हमारा भी अटूट विश्वास प्रयास करने में ही हमारा भला है
कोशिश कल भी थी कोशिश आज भी है
इतनी आसानी से हमे हार स्वीकार कहा है
हम तुम्हारे प्रेम की गंगा मे डुबकी लगाई पड़े है
तुम्हे छोड़ कही और कैसे जा सकते है
अगर तुम मिले हमे तो अपना साथ निभाते हुए पाओगे हमे
और अगर न मिले तो अपना इंतजार करते पाओगे हमे
बस ये उम्मीद लगाए बैठे है,एक दिन तुम ज़रूर साथ निभाने आओगे।