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नाम

परखता है रोज़ मेरे इरादों को 

गम जो थमने का नाम भी लेता 

बड़ा ढीठ है कमबख्त ज़ालिम 

ज़रा बदलने का नाम नहीं लेता 


परवाज़ रखते थे आसमाँ से ऊँची 

गिरे है आज पाताल से नीचे

गिर कर उठेंगे एक दिन यारों 

ये हौंसला तो मिटने का नाम नहीं लेता 


मेरे हिस्से के गम मेरी खुशियां 

जो कुछ भी है मेरा मुझको दे दो 

ये मेरे तेरे कि बंदर बाँट ही तो है 

जो किसी से जुड़ने का नाम नहीं लेता 


तूफान आया तो तबाही लेकर 

तिनका भी न बचा आशियाने का 

बड़ी मुश्किल से सजाया था 

ऐसा बिखरा सिमटने का नाम नहीं लेता 


'ग़ुलाम' को बेफिक्र कहने वालों 

तुम क्या जानो हाल इस पागल का 

जहाँ गम मिले वही से गुज़रता है बार बार 

कोई और होता तो गुज़रने का नाम नहीं लेता 


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13 Comments

Renu

13-May-2022 10:30 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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Haaya meer

13-May-2022 10:03 PM

Amazing

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Shnaya

13-May-2022 09:14 PM

Very nice 👍🏼

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