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तलाश

तेरे नाम में अक्सर मैं अपना नाम ढूंढ़ता हूँ 

हवाओं की सरसराहट में तेरा पैगाम ढूंढ़ता हूँ 

दुनियाँ ढूंढती है खुदा को मुझे क्या मतलब 

मैं तो बस अपने यार को सुबह शाम ढूंढ़ता हूँ 


और जो पता दिया है किसी उजाले ने तेरा 

अँधेरे में उसको रात भर तमाम ढूंढ़ता हूँ

कर बैठा हूँ गुनाह कर के मोहब्बत मैं यारों

लग जाए कोई मुझ पर भी इलज़ाम ढूंढ़ता हूँ 


इब्लीस भी करता मोहब्बत तो खुदा हो जाता 

नफरतों से क्या होगा उसका अंजाम ढूंढ़ता हूँ 

शराब के प्यालों से जो वफ़ा मिल जाती शायद 

फिर क्यूँ वही पैमाना मैं हर शाम ढूंढ़ता हूँ 


यूँ तो दिखाया था आईना कई बार ज़माने ने 

अपनी सूरत को तेरी नज़रों में हर बार ढूंढ़ता हूँ 

उजड़े हुए बाग का माली हो गया हूँ तो क्या 

कभी तो उसकी रहमत से होगा गुलज़ार ढूंढ़ता हूँ 


ग़ुलाम' को तो इन दिलासों ने ज़िंदा रखा है हुज़ूर 

कैसे गुज़री है उम्र मुश्किल में उसकी तमाम ढूंढ़ता हूँ 

इसी उम्मीद में चल रही है साँसे मेरी अब तलक

के वो खुद चल के आएगा जिसे सरेआम ढूंढ़ता  हूँ 


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17 Comments

Renu

13-May-2022 10:29 PM

बहुत ही बेहतरीन

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Ghulam Hazir hai

15-May-2022 07:59 AM

thanx a lot

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Haaya meer

13-May-2022 10:03 PM

Amazing

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Neha syed

13-May-2022 08:49 PM

👌👌

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