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शायरी

अधुरी ख्वाहिशो से शुरू हुई थी जिंदगी मेरी
मैं कैसे मुक्कमल हो सकता हूं
जिंदगी का राज़ भी सायें की तरह है
उम्मीद की तरह कभी साथ नहीं छोड़ता
 इन अनचाही खुशीयों से मिला तो सबकुछ
पर सबकुछ की मुझे चाह नहीं थी
जिंदगी कभी रूकी नहीं और मैं कभी जिया नहीं
ये ऐसा सफर है जिसमें मंजिल नहीं
यह कैसे रिवाज और बंधन है तेरे मेरे बीच
जिसके पागलपन ने हमें मिलने न दिया
मैं समझता था हम जी लेंगे अलग अलग  
आज तेरी आंखों को पढ़कर भ्रम दूर हो गया
#chetanshrikrishna

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15 Comments

Wahhhh बेहतरीन उत्कृष्ट,,,, अधूरी,,,, खुशियों,,,, शब्द में त्रुटि है सही कर दीजिए

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Seema Priyadarshini sahay

14-May-2022 06:51 PM

बहुत खूबसूरत

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Anam ansari

14-May-2022 09:42 AM

Nice

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