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गमे दिल मेरा बढ़ाते तो कुछ और बात होती

गमें-दिल मेरा बढ़ाते तो कुछ और बात होती,
तुम बाम पर न आते तो कुछ और बात होती।

दिल में लगी जो आतिश सोजिश बनी है कबसे,
तुम गर उसे बुझाते तो कुछ और बात होती।

बस हम तुम्हें मनाये ये नहीं है तौर-ए-उल्फ़त,
कभी हमको तुम मनाते तो कुछ और बात होती।

लहजे से उसके दम टपकता है रस गुलों का,
वो शेर गुनगुनाते तो कुछ और बात होती।

तेरे बदन के बारे बताया किसी ने ऐसा,
हम वो बात ज़बाँ पे लाते तो कुछ और बात होती।

चुप करके नग़मा-गर को उसने कहा था 'तनहा',
की कुछ तुम सुनाते तो कुछ और बात होती।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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9 Comments

Neelam josi

21-May-2022 03:59 PM

Very nice 👌

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Reyaan

20-May-2022 02:46 PM

👏👌

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Swati chourasia

19-May-2022 06:53 PM

Very beautiful 👌

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