Priyanka06

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लेखनी प्रतियोगिता -18-May-2022 विधवा की आवाज

रचयिता-प्रियंका भूतड़ा

शीर्षक-विधवा की आवाज

नम थी ये आंखें,
थम नहीं रही थी अश्रु की धारा,
अंतर्मन में हो रही थी पीड़ा,
रची विधाता ने कैसी माया।

जिसके लिए आई थी,
हो गया वो दुनिया से रुकसत,
मिली मुझे दुनिया से  नई पहचान,
कहलाई गई मैं विधवा।

सफेद लिबास में लिपटा,
आज मेरा बदन,
है अब मेरी यही पहचान।

होता रोज संवाद,
होता रोज विवाद,
दिए जाते नित नए नाम।

तो कोई कहता मनुष, तो कोई कहता डायन,
यही हो गए आज मेरे नाम,
हर रोज किया जाता कलंकित,
छीन ली तूने अपने पति की आयुष।

यह था भाग्य का तकदीर,
हाथों में थी   लकीर,
लकीर में था मृत्यु का वरण,
यमराज के लेख से हुआ उनका मरण।

फिर मैं कैसे मनुष,
मैं हूं तुम्हारी पुत्र वधू,
हुआ आज मेरे साथ अन्याय।

लिबास बन गया रंगहीन,
छिन गए मेरे सोलह श्रृंगार,
जिस से बंधा था मेरा प्यार,
छिन गया आज मेरा यार।

क्या कसूर था मेरा,
छिन गई मेरी खुशी,
सज गई माथे पर आज यही लकीर,
लिख गया आज मेरा यही नसीब।




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14 Comments

Neelam josi

21-May-2022 03:47 PM

Very nice 👌

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Seema Priyadarshini sahay

19-May-2022 06:04 PM

बहुत खूब

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Punam verma

19-May-2022 01:16 PM

Nice

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