ख्वाहिश
मन कितना संघर्ष करते हो तुम ,
कभी खुद के लिए तो कभी दूसरो के लिए ,
प्रश्न चिन्ह बन जाते हो तुम।
कभी अपनो का साथ, कभी अपनो की दूरियां ,
कभी निश्छल प्रेम तो कभी उलाहना,
जीवन डगर की राह पर सह जाते हो तुम ।
नीड़ कहू या आशियाना ,जिसे संवारते हो तुम
पतझड़ में भी बंसत की बहार लाते हो तुम,
उम्मीद की एक डोर बन जाते हो तुम।
कह दो सबसे चंद लम्हे ,चंद सांसे है,
कुछ अरमान, कुछ हसरतें ,कुछ फरियादें है ।
सिलसिला रूकने से पहले पूरी करनी है आस।
बुनने है कुछ नये ख्वाब, सतरंगी सपनो के,
जिन हाथों को थाम रखा है हमने लिए उनके,
न छूटे साथ, संग की आस।
कुदरत कैसे बुन लेते हो कुछ खास, कुछ अलग,
हर एक के लिए प्राकृतिक भाव अलग- अलग,
दर्द नही होता उनके लिए जिनको मिलते काँटे।
क्यों हमें कठपुतली बना कर रख दिया हाँ,
हम है तो सही पर डोर कौन हिला रहा हाँ,
उधडे़ हुए जो रिश्ते ,अब उनको कौन टांके।
दे दो नई उमंग -तरंग
दे दो नई जीवन -लहर
दे दो नई कल्पना -दृष्टि
दे दो नये इंद्र -धनुष।
राजेश्वरी ठाकुर
छत्तीसगढ़