NEELAM GUPTA

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जुदाई

जुदाई

तुझसे जुदाई का सोचते ही।
आखें मेरी गीली हो जाती हैं।
दो दिन की जुदाई भी ।
मुझ से सहन न होती हैं।

तेरी स्मृतियाँ रातभर ।
निगहबान बन तड़पाती है।
करवटें पलटते पलटते।
न जाने कब सुबह हो जाती हैं।

पलकें बिछाए तेरी राहों में।
तेरी राह तकते तकते।
बिना सोलह श्रृंगार किए।
फिर से दुल्हन बन जाती हूँ।

तेरी आहट सुनने को बैचेन।
मेरा दिल चुपके से चौक जाता हैं।
देखकर चेहरा तेरा जब
इम्तिनान मेरे जिगर को आता हैं।

नीलम गुप्ता(नजरिया)




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3 Comments

Ravi Goyal

15-Jul-2021 11:00 PM

Bahut khoob 👌👌

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Swati chourasia

15-Jul-2021 10:26 PM

Very beautiful 👌

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Sangeeta

15-Jul-2021 10:23 PM

सुंदर भावों से भरी रचना

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