Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹

जब से मिल गया मुज़दा उनकी आशनाई का।
रोग लग गया हमको तब से जां फ़िदाई का।

बद नज़र न लग जाए तुझको ऐ ह़सीं दिलबर।
इस क़दर नहीं अच्छा शौक़ ख़ुदनुमाई का।

बाज़ुओं में बल आए मुड़ गई कलाई भी।
मिल गया मज़ा उनको हमसे हाथापाई का।

कुछ तो बोलिए दिलबर कुछ तो मुस्कुरा दीजे
ह़क़ अदा तो कर दीजे मेरी लबकुशाई का।

कट रहे हैं दिन जिनके दोस्तो अमीरी में।
वो कहाँ समझते हैं फ़लसफ़ा गदाई का।

साँस भी नहीं जिनकी हाय अपने क़ब्ज़े में।
कर रहे हैं वो दावा आज कल ख़ुदाई का।

जो फ़राज़ रखते हैं ख़ौफ़े किब्रिया दिल में।
ज़िक्र वो नहीं करते अपनी पारसाई का।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद।

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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

25-May-2022 01:59 PM

बहुत ही बेहतरीन रचना

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Sandeep Sharma

24-May-2022 02:26 PM

सुभान अल्लाह। बहुत खूब। जयश्रीकृष्ण

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Gunjan Kamal

24-May-2022 12:52 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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